️ मनीश वर्मा ‘ मनु ‘
स्वतंत्र टिप्पणीकार और विचारक
अधिकारी, भारतीय राजस्व सेवा
आज सुबह जैसे ही आँखें खुली, खिड़की खोलते ही एक तीखी चूभती हुई महक ने स्वागत किया, वो भी बिना पूछे। यह खुशी भरी

स्वतंत्र टिप्पणीकार और विचारक
अधिकारी, भारतीय राजस्व सेवा
ताज़गी नहीं थी, बल्कि प्रदूषण की चुभन थी।
हम अक्सर कहते हैं कि “हवा साफ़ नहीं है,”
पर , क्या हम सच में जानते हैं कि यह हवा हमारी ज़िंदगी का हिस्सा कैसे बन गई है ?
प्रदूषण अब सिर्फ़ अख़बारों की सुर्ख़ियाँ नहीं रही बल्कि यह तो हमारी साँसों में घुस गया है, हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है और वो बिना किसी अनुमति के। शहरों के गलियों में धुएँ की परतें और गाड़ियों की बेतहाशा कतारें। हम रोज़ हम इनके साथ उठते बैठते और सोते हैं।
क्या हमने कभी पूछा कि “हमारी ज़िम्मेदारी कितनी है ?” अब तो हवा भी कहने लगी है – मैं थक गई हूँ तुम्हारे इस अमानवीय व्यवहार से ।
हवा भी बोल सकती है अगर कोई सुनने वाला हो।
सोचिये, जब हमारा पेट साफ़ पानी माँगता है, तो हम उसे देते हैं। लेकिन जब हवा हमारी फेफड़ों से सिर्फ़ साफ़ साँस मांगती है, तो हम उसे क्या देते हैं ? धूल, धुआँ, और गंदगी भरे छोटे-छोटे कण जिन्हें हम नंगी आँखों से देख भी नहीं सकते हैं और फिर कहते हैं, “सर्दी-खाँसी…” क्या इन रोगों का सीधा कारण सिर्फ़ मौसम है ? या यह हमारी बेपरवाह जीवनशैली का असर भी है ? क्या यह ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ सरकार की है । हमारी कोई जबाबदेही नहीं बनती है ?
हर बार आप जिम्मेदारी सरकार से जोड़ते हो ? पर जहाँ धुएँ की मोटी परत घर की छत तक आती है, वहाँ हम सबकी रोज़मर्रा की आदतें इसका मूल कारण हैं।
धड़ल्ले से हम गाड़ियों को यूज़ करते हैं – तो प्रदूषण बढ़ता है
अधिक मिट्टी के तेल/कोल का इस्तेमाल – धुआँ बनता है
कचरा खुले में जलाते हैं – ज़हरीली गैसें फैलती हैं
क्या यह सच नहीं है ?
हम अक्सर कल्पना करते हैं कि “अगर मैं अमीर होता…”, “अगर शहर साफ़ होता…”
लेकिन कल्पना तब मायने रखती है जब हम वास्तविकता को बदलने का प्रयास करें।
जरा सोचिए, साफ़ हवा और खुला नीला आसमान किसे नहीं चाहिए । किसे नहीं चाहिए साफ सुथरी खिड़कियां और ऐसा शुद्ध वातावरण जिसे हमारी अगली पीढ़ी भी साँस ले सके।
हम में से हर कोई थोड़ा-थोड़ा बदल कर बड़ा परिवर्तन ला सकता है। पैदल चलना, साइकिल चलाना, कचरा जलाने से बचना, हर घर के पास कम से कम एक पेड़ लगाना, प्लास्टिक, धुआँ और अनावश्यक संसाधन उपयोग कम करना। ये छोटे-छोटे कदम आज की ज़रूरत हैं, भविष्य की चाहत नहीं।
प्रदूषण सिर्फ़ “एक विषय” नहीं है,
यह हमारी साँस, हमारी ज़िम्मेदारी और हमारी समझ का प्रतिबिंब है। हम हवा में खड़े नहीं रह सकते, हमें हवा को साफ़ करना होगा, न कि सिर्फ़ शिकायत करना।
और याद रखें- बदलाव तभी संभव है, जब हम खुद बदलें।
