सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को आकार देती हैं पाठ्यपुस्तकें

एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें भारत की शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ वे छात्रों के सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ रहा है, समकालीन मूल्यों को प्रतिबिंबित करने और छात्रों के बीच अधिक समग्र समझ को बढ़ावा देने के लिए शैक्षिक सामग्री को लगातार संशोधित और अद्यतन करना महत्वपूर्ण है। मूल्य-आधारित पाठ्यक्रम शिक्षा के लिए एक संतुलित, समग्र दृष्टिकोण है जो राष्ट्रीय और व्यक्तिगत विद्यालय-केंद्रित पाठ्यक्रम के इर्द-गिर्द घूमता है ताकि एक ऐसा वातावरण बनाया जा सके…

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पौधरोपण से ज्यादा निगरानी की जरूरत

आज हमें पौधे लगाने के बाद उन्हें बचाने की ज्यादा जरूरत है। सोचना होगा कहीं हम नर्सरी में पल रहे शिशु पौधों की जान तो नहीं ले रहें। पर्यावरण पर हुए एक अध्ययन में जोर दिया गया है कि जंगलों और पारिस्थितिकी तंत्रों को बचाने के लिए पुराने पेड़ों को बचाना बहुत ज्यादा जरूरी और उपयोगी होगा। अध्ययन में बताया गया है कि सामान्य पेड़ों की तुलना में पुरातन पेड़ों को बचाना पर्यावरण संरक्षण और संधारणीय भविष्य के लिए ज्यादा उपयोगी और कारगर साबित होगा।पौधरोपण पर्यावरण बहाली प्रयासों का एक…

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उफ़ ये मोबाईल, रविवारीय में आज पढ़िए- बच्चों के हाथ में मोबाइल

आपने और हमने, हम सभी ने मिलकर उनकी ऊनिंदी आंखों में जहां भविष्य के सुनहरे सपने होने थे, हाथों में जहां ढेर सारे खिलौने होने थे, मोबाईल थमा दिया। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर उनकी सुबह – सुबह की प्यारी, अलमस्त सी मदमाती नींद छीन ली। ऐसा लगा गोया अगर दो चार दिन उनकी पढ़ाई ना हो पायी तो पता नहीं यह सुनामी क्या असर दिखाएगी। अरे! बड़े बच्चों को कोल्हू में बैल की जगह जोतो ना किसने रोका है, पर कम से कम इन बच्चों को जो अभी अभी…

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गुरुपूर्णिमा – शिष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन !

गुरुपूर्णिमा, शिष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन है, यह गुरु और गुरु तत्व का उत्सव है। यह गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है, जो हमें मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं व हमारा हाथ पकड़ कर हमें वहां तक ले जाते हैं । इस दिन गुरु-शिष्य परंपरा के संस्थापक आदि गुरु महर्षि व्यास की पूजा की जाती है। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई 2024 को रविवार के दिन मनाई जाएगी। गुरु ईश्वर का साकार रूप…

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मिट्टी में मिलते जा रहे, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के अरमान

मिट्टी के बर्तन बनाने के अलावा इनके पास और कोई दूसरा रोजगार नहीं है, न ही कृषि करने के लिए इनके पास भूमि है। और न अन्य साधन, जिससे आय का आवक हो पाए। यह जैसे-तैसे करके अपने परिवार को पाल रहे हैं। मौजूदा दौर में एल्युमीनियम, थर्माकोल व प्लास्टिक बर्तनों का खूब चलन चला है, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। हमारे पूर्वज अपने समय में मिट्टी, लोहे व काँसे के बने बर्तनों का उपयोग करते थे। इसलिए उन्हें मौजूदा दौर की बीमारियाँ नहीं हुईं। यदि…

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