कमी के समय कीमतों में कमी लाये सरकारी बफर स्टॉक

गेहूं और चने की खुले बाजार में बिक्री से अनाज और दालों की बढ़ती महंगाई को रोकने में मदद मिली है। बढ़ती जलवायु-संचालित आपूर्ति झटकों और मूल्य अस्थिरता के बीच बफर स्टॉक को अन्य प्रमुख खाद्य पदार्थों तक बढ़ाना समझदारी है। मूल्य वृद्धि को कम करने के लिए बफर स्टॉक को चावल, गेहूं और चुनिंदा दालों के अलावा तिलहन, सब्जियों और यहां तक कि दूध पाउडर को भी शामिल किया जाये. भविष्य में बाजार स्थिरीकरण के लिए पर्याप्त बफर स्टॉक बनाने हेतु अधिशेष वर्षों के दौरान खरीद बढ़ाने की वकालत…

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भगवान सर्वव्यापी हैं, रविवारीय में आज पढ़िए “भगवन्”

धार्मिक मान्यताओं और पीढ़ियों के विश्वास की अगर हम बातें करें तो हमारे 33 करोड़ देवी-देवता हैं, और हमारी पुरी की पुरी आस्था उनके साथ है। हम अपने बड़े बुजुर्ग से सुनते आए हैं, और शायद यह बात पीढ़ियों से चलती आ रही है कि देवी-देवता जिन्हें हम भगवान् मानते हैं। इष्ट देव का दर्जा दिया है हमने, वो हर जगह मौजूद हैं। भगवान् सर्वव्यापी हैं। बात भी सही है, पर एक बात है; अगर भगवान् सर्वव्यापी हैं, तो हमें मंदिरों में भगवान् को लाने की जरूरत क्यों पड़ी। हमने…

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तार्किक पाठ्यक्रम समय की मांग

कुल मिलाकर पाठ्यपुस्तकों से हटाई जाने वाली सामग्री, भारत के भूतकाल और वर्तमान की नकारात्मक धारणा पर आधारित है। यह मानसिकता कमजोर है, और केवल कुछ को हटाकर अपने इतिहास को बदलने का प्रयास करती है। इनके लिए भारतीय इतिहास के रचनात्मक, समावेशी, तार्किक, सुसंगत और विद्यार्थी अनुकूल संस्करण को लाना असंभव था, क्योंकि रचना में एक सकारात्मक गुण है, जिसे राजनीतिक ताकतें अक्सर कम आंकती हैं।  इसलिए यह आवश्यक है कि इतिहास में एकपक्षीय दृष्टिकोण से आगे बढ़कर चिंतन और तार्किक पाठ्यक्रम का विकास किया जाए। एनसीईआरटी से अपेक्षा…

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रविवारीय- आस्था, विश्वास, अंधभक्ति या प्रशासनिक नाकामयाबी कुछ भी कह लें, पर जानें तो चली गईं

हाल के दिनों में दो घटनाएं हुई। दोनों ही घटनाएं हृदयविदारक थीं। एक घटना में उत्तर प्रदेश के हाथरस के पास एक गांव में सत्संग के दौरान अत्यधिक भीड़ की वज़ह से कुचल कर लगभग 120 लोगों की जान चली गई। वो हाथरस जिसे हम जैसे कई लोग सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य के कवि काका हाथरसी के नाम से जानते हैं। वो काका हाथरसी जिन्होंने अपने मित्रों को कहा था कि उनके मरने के बाद उनकी अंतिम यात्रा में कोई शोक नहीं मनाएगा। हंसते और खिल-खिलाते हुए लोग उनकी अंतिम यात्रा…

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जातीय संघर्ष में ‘सुलगता’ मणिपुर

बीते दो-तीन महीने से मणिपुर में जातीय संघर्ष लगातार जारी है। इस हिंसा में सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है, इस राज्य का जातीय हिंसा से पुराना नाता रहा है, और इसी जातीय गुटबंदी का परिणाम रहा है कि कुकी-नागा, मैतेई- पंगाल मुस्लिम, कुकी-कार्बी, हमार-दिमासा, कुकी-तमिल, और व्यापारियों के विरुद्ध हुई संघर्ष को यहाँ वर्षों से देखा गया है। दरअसल, मणिपुर में मैतेई समाज की मांग है कि उसको कुकी की तरह राज्य में शेड्यूल ट्राइब का दर्जा दिया जाए। मणिपुर में तनाव तब और बढ़ गया कुकी समुदाय…

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