चलते चीते चाल।।

माना चीते देश में, हुए सही आयात। मगर करेगा कौन अब, गदहों का निर्यात।। आये चीते देश में, खर्चे खूब करोड़। भूखी गाय बिलख रही, नहीं मौत का ओड़।। सौरभ मेरे देश में, चढ़ते चीते प्लेन। गौ मात को जगह नहीं, फेंक रही है क्रेन ।। भरे भुवन मे चीखती, माता करे पुकार। चीतों पर चित आ गया, कौन करे दुलार।। क्या यही है सभ्यता, और यही संस्कार। मांग गाय के नाम पर, चीता हिस्सेदार।। ये चीते की दहाड़ है, गुर्राहट; कुछ और। दिन अच्छे है आ गए, या बदल…

Read More

गाँव-गाँव अब रो रहा, गांधी का स्वराज। भंग पड़ी पंचायतें, रुके हुए सब काज।।

महिलाओं तथा दूसरे पिछड़े और हाशिये पर खड़े समाज के सशक्तिकरण जैसी उपलब्धियों के बावजूद विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया काफी धीमी, सुस्त और असंतोषजनक है। इन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाना जहां एक ओर इस विविधताओं वाले इस देश में बरसो से हाशिये पर पड़े समाज को मुख्यधारा में समावेशित किये जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था वहीं अब इस सिलसिले में केन्द्र और राज्य के राजनीतिक हुक्मरानों की ओर से एक परिवर्तनकारी और ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत है। उम्मीद की जा सकती है कि आने…

Read More

स्वास्थ्य सेवाओं को वंचित एवं गरीब तबके तक पहुँचाया जाये

सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ हाशिए पर स्थित लोगों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है| ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य तंत्र का अधिक से अधिक आधुनिकीकरण होना चाहिए। हालाँकि भारत ने स्वास्थ्य पर काफी तरक्की की है पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। निजी क्षेत्र आज लगभग 60%  स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करता है जो कई बार आम आदमी की पहुँच से बाहर होती है। हमें सार्वजनिक क्षेत्र को सुद्रढ़ करना होगा। निवेश बढाने के साथ-साथ हमें स्वास्थ्य सुविधाओं  को गाँवों तक ले जाना होगा। नयी…

Read More

दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है – डॉ सत्यवान सौरभ

दादा-दादी बच्चों के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं, जिनके साथ वे अपने रहस्यों को खुलकर साझा कर सकते हैं। दादा-दादी भगवान का एक उपहार है जिसे हमें संजोना चाहिए। हम आज की दुनिया में अपने दादा-दादी के मूल्य को भूल गए हैं क्योंकि हम सभी को एकल परिवारों की जरूरत है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि वे ईश्वर के अमूल्य उपहार हैं जो हमें दूसरों का सम्मान करना और भविष्य में एक सभ्य जीवन जीना सिखाते हैं। दादा-दादी जिम्मेदार व्यक्ति होते हैं जो हमें भविष्य में जिम्मेदार नागरिक बनना…

Read More

10 सितंबर – विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस विशेष

आत्महत्या मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण क्यों है ? अब समय आ गया है कि हम अपने शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र को नए अर्थों, जीवन जीने के नए विचारों और नई संभावनाओं को संजोने के तरीकों से नए सिरे से तलाशने की कोशिश करें जो अनिश्चितता के जीवन को जीने लायक जीवन में बदल सकें। आत्महत्या को रोका जा सकता है। आत्महत्या के बारे में सोचने वाले युवा अक्सर अपने संकट की चेतावनी के संकेत देते हैं। माता-पिता, शिक्षक और मित्र इन संकेतों को समझने और सहायता प्राप्त करने के…

Read More