भारतवर्ष के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है 15 अगस्त 1947

          सुनील कुमार

15 अगस्त 1947 ई0 भारतवर्ष के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। सैकड़ों वर्ष की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 ई0 की प्रातः कालीन सूर्य की किरणें, पक्षियों का कलरव एवं अमृत रूपी नदियों की कल-कल करती प्रवाह ध्वनि देश के लिए एक नया सन्देश लेकर आयी। लाल किले पर ब्रिटिश ब्लैक झण्डे के स्थान पर साहस, बलिदान, त्याग, सत्यनिष्ठा , विचारों की पवित्रता, समृद्धि, प्रगति और गतिशीलता का प्रतीक भारत का गौरवमयी तिरंगा झण्डा लहराया। सम्पूर्ण भारतवर्ष खुशियों के प्रवाह में बह रहा था। उस दिन हम आजाद देश के आजाद नागरिक कहलाए। इस स्वतंत्रता- दिवस को चिरस्मरणीय एवं अमर बनाये रखने के लिए हम प्रतिवर्ष 15 अगस्त के इस पवित्र दिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं।

पराधीनता एक जघन्य अभिशाप है जो किसी भी राष्ट्र के रक्त और उसकी ऊर्जा को खत्म करता है। जब हम पराधीन भारत के इतिहास के पृष्ठों को उलटते हैं तो हमारे सामने असंख्य बलिदानों की कहानियाँ, अमर शहीदों की वीर गाथाएं, न्यूज-रील की भाँति नाचने लगती हैं। 1600 ई0 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी महज व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आई। उसी समय हमारे देश का भाग्य चक्र विपरीत दिशा में चला गया। 1757 ई0का पलासी-युद्ध हमारे सौभाग्य के इतिहास का पटाक्षेप था। हमारे स्वतंत्रता का अवसान था। पलासी युद्ध में विजयी होने के बाद अंग्रेजों ने भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए हर तरह का प्रयास प्रारम्भ कर दिया। ठीक 100 वर्ष बाद 1858 ई0 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को तोड़कर ब्रिटिश सरकार ने भारत पर अपना प्रत्यक्ष शासन स्थापित कर दिया। तब से हमारे कष्टों, दुःखों और यातनाओं की कहानी दिन दूनी रात चैगुनी गति से बढ़ती गई। हम पर अनेक काले कानून लादे गए। मुट्ठी भर अंग्रेजों के लिए हमसे ’कर’ के रूप में प्रचुर मात्रा में धन-राशि वसूल की गई। जब हमने विरोध की आवाज उठाई तो अंग्रेजी सरकार ने बड़ी सख्ती व क्रूरता के साथ उसका दमन कर दिया। वह स्वतंत्र होने के लिए हमारे हर प्रयास को कुलचती रही। हमारे नेता, नौजवान, नवयुतियाँ, बच्चे या तो मौत के घाट उतारे जाते रहे या ब्रिटिश सरकार की जेलों में बन्दी बनकर अनेक प्रकार की क्रूरतम यातनाओं के शिकार होते रहे। फिर भी हमारे दीवाने स्वतंत्रय-वीर झुके नहीं। उनका सिर्फ एक ही नारा था –

“सर कटा सकते हैं लेकिन
सर झुका सकते नहीं, हम अपनी आजादी को
हरगिज मिटा सकते नहीं।

सचमुच हमारे वीरों ने सर नहीं झुकाए भले ही खुद को मिटा दिया। बाल गंगाधर तिलक, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस, लाला लाजपत राय, सुभाष चन्द्र बोस आदि शूरवीर हॅसते-हॅसते राष्ट्र की आजादी की बलिवेदि पर कुर्बान हो गए। सरदार भगत सिंह ने फांसी के तख्ते पर चढ़ते हुए कहा थाः-

सरफरोसी की तमन्ना
अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना
बाजुए कातिल में है।।
वक्त आने पर बता देंगे
एै आसमां,
अभी से क्या बताएं
क्या हमारे दिल में है।।

गाँधी जी का सविनय अवज्ञा- आन्दोलन और असहयोग आन्दोलन, तिलक का गृह-शासन आन्दोलन, 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन ये सभी आन्दोलन भारत से ब्रिटिश सरकार को खत्म करने के लिए किए जा रहे थे। ब्रिटिश सरकार ने इन आन्दोलनों को कठोरतापूर्वक दबा देने की पूरी चेष्टा की, परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के निमित्त भारतीयों की कृतसंकल्प आत्मा को कुचल नहीं सके।

हमारे वीर नौजवान एवं क्रांतिकारी योद्धाओं ने अपने सर पर कफन बाँधे स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देते रहे। अन्त्तोगत्वा, ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की मांगो को स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ा। 1945 ई0 के आम-चुनाव के बाद इंग्लैण्ड के लॉर्ड एटली ने प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के बाद भारतवर्ष को अविलम्ब सत्ता हस्तांतरित करने की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप 4 जुलाई 1947 ई0 को ब्रिटिश के इस शांतिपूर्ण हस्तांतरण के कारण ही स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीयों ने लॉर्ड माउण्टवेटन को ही स्वतंत्र भारत का प्रथम गर्वनर जनरल नियुक्त किया।

प्रतिवर्ष 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं। स्कूलों, कॉलेजों तथा सरकारी संस्थानों/दफ्तरों में इस दिन ध्वजारोहण किया जाता है। इस दिन दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री तथा देश के विभिन्न राज्यों की राजधानियों में राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री ध्वजारोहण करते हैं।

इस अवसर पर सेना, अद्धसैनिक बल, पुलिस तथा एन0सी0सी0 के अधिकारियों एवं जवानों द्वारा ’परेड’ की जाती है और राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी जाती है। स्कूलों एवं कॉलेजों में खेल-कूद, नाटक, संगीत तथा मनोरंजन के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। छात्र-छात्राओं में मिष्ठान्न का वितरण किया जाता है तथा खेल-कूद या अन्य वाद-विवाद-प्रतियोगिताओं में विजित प्रतियोगियों को पारितोषिक क दिया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है और इस पर्व को हम हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह पर्व हमें उन वीरों तथा असंख्य युवकों, युवतियों एवं क्रांतिकारियों को याद दिलाता है, जिन्होंने हमारे स्वर्णिम आज के लिए अपने कल की कुर्बानी देकर देश की स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए। हमारी स्वतंत्रता की नींव उन्हीं की शहादत, त्याग और बलिदान पर डाली गई है। आज हमारे देश में अनेक कुप्रवृत्तियाँ पनप गई हैं तथा पनप रही हैं जिसमें भ्रष्टाचार का साम्राज्य, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाई-भतीजा वाद एवं धार्मिक उन्माद आदि दुर्गुण नागिन की तरह फन निकाल कर हर पल हमें डॅसने के लिए तैयार हैं। आज देश में व्याप्त अलगाववाद, नक्सलवाद एवं आतंकवाद जैसी भयावह समस्याएं जो हमारे देश को बर्बाद कर रही हैं, क्या इन्हीं दुष्परिणामों के लिए हमारे वीर क्रांतिकारियों द्वारा स्वतंत्रता हासिल की गई थी !

इस वर्ष हमारा पूरा देश आजादी के 75 साल अमृत महोत्सव के रूप में पूरे जोश और उमंग के साथ मना रहा है। आजादी के इस 76वें स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर भारत सरकार के ’हर घर तिरंगा अभियान’ के तहत देश के कोने- कोने, गली-मुहल्लों, गांवों, कस्बों एवं शहरों में 13 अगस्त से 15 अगस्त 2022 तक हर घर तिरंगा लगाने का पवित्र अभियान का आवह्न किया गया है। इस अभियान का उद्देश्य देश के हर व्यक्ति में देश भक्ति की भावना को जागृत करने के साथ-साथ आजादी के वीरों, देश की एकता, अखण्डता, भाई-चारे एवं देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर रखने के लिए अपना अतुलनीय योगदान देने वाले कर्मठ लोगों की महत्ता को बेहतर ढंग से जागरूक कराना है। हमारा देश आजादी के बाद से निरंतर आर्थिक, विज्ञान, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, चिकित्सा विज्ञान, कृषि क्षेत्र, परिवहन, कला एवं संस्कृति, खेल-कूद तथा सैन्य शक्ति आदि विभिन्न क्षेत्रों के विकास पथ पर अग्रसर रहते हुए आज विश्व के अग्रणी देशों की सूची में शामिल हो चुका है।

यह एक पवित्र अवसर है जब हम एकता, अखण्डता, भाईचारा तथा देश के प्रति निष्ठा एवं भक्ति की शपथ ले सकते हैं। केवल धूम-धड़ाके, खेल-कूद, नाच-गान के जरिये स्वतंत्रता-दिवस को मनाकर हम इसके महत्व, औचित्य तथा इसकी पवित्रता को बरकरार नहीं रख सकते। हमें सच्चे अर्थों में देश की समस्त बुराईयों एवं कुप्रवृत्तियों को दूर कर इसके सर्वांगीण विकास के लिए कृत संकल्प होना होगा। राष्ट्रीय ध्वज के सम्मुख हमें शपथ लेना होगा कि हम देश में किसी भी प्रकार के अलगाववादी तत्वों को प्रोत्साहन नहीं देंगे, हम अपने देश की एकता एवं अखण्डता बनाये रखने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा देंगे। स्वतंत्रता-दिवस मनाने का यही हमारा वास्तविक संकल्प होगा और तभी उसका सही औचित्य भी होगा।
जय हिन्द।
जय भारत ।
जय सीआरपीएफ ।।

सुनील कुमार,
पुलिस उप महानिरीक्षक,
केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल,
मध्य सेक्टर, लखनऊ ।

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