स्पेशल स्टोरी: अव्यवस्था पर भारी आस्था।

(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)

लोक आस्था का महापर्व आज से शुरू हो चुका है।ऐसे तो पूरे वर्ष हम बिहारवासी कई पर्व त्यौहार मनाते हैं। परंतु छठ पूजा की बात ही कुछ और है।बाकी सारे पर्व कहे जाते हैं,जबकि छठ पूजा को महापर्व कहा जाता है। हम समस्त बिहार वासियों का यह सबसे महत्वपूर्ण और महान आस्था का पर्व है।बिहार वासी पूरे साल चाहे जहां कहीं भी रहे,परंतु इस महापर्व में वह अपने गांव-घर जरूर आते हैं।

दिल्ली,मुंबई,गुजरात, पंजाब सहित पूरे भारतवर्ष में जहां कहीं भी बिहारी काम करते हैं, वो छठ पूजा के अवसर पर अपने घर आते ही हैं। ऐसा नहीं है कि यह कोई नई बात है। यह बात सारा हिंदुस्तान जानता है। हमारी सरकार भी जानती है। एक ओर हमारी सरकार चंद लोगों के लिए अरबों खर्च कर बुलेट ट्रेन लाने जा रही है। वहीं दूसरी ओर इस वक्त भारतीय रेल में यात्रा करते यात्रियों को देखकर भारतीय रेल की बदहाली पर रोना आता है।पिछले कई वर्षों से देखता आ रहा हूं कि किस तरह जानवरों की तरह ठूंस- ठूंस कर लोग दीपावली, छठ या फिर होली के समय ट्रेनों से अपने घर आते- जाते हैं। बाथरूम के बाहर और अंदर बैठे लोगों को देखकर भारतीय रेल की दुर्दशा नजर आती है।अफसोस होता है कि हमारी सरकार जरूरत के हिसाब से यात्रियों को सीट भी उपलब्ध नहीं करवा पा रही है। ट्रेनों में धक्के खाते हुए लोग किसी प्रकार अपने घर पहुंच रहे हैं।

इसी बीच जालंधर से बिहार के डेहरी ऑन सोन छठ पूजा करने अपने परिवार के साथ आ रही महिला की ट्रेन में हत्या की जानकारी मिली। जानकारी के मुताबिक लखनऊ के शाहजहांपुर के निकट ट्रेन में कुछ लड़के सिगरेट पी रहे थे।पचास वर्षीय महिला चिंता देवी ने उन युवकों को सिगरेट पीने से मना किया।मना करने पर वह मनचले महिला के साथ अभद्र व्यवहार करने लगे। इस पर महिला के साथ यात्रा कर रहे उनके पुत्र एवं बहू ने इसका विरोध किया। इस पर सभी मनचलों ने मिलकर तीनों के साथ जमकर मारपीट की।बुजुर्ग महिला की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।ट्रेनों में ये सब अब आम घटना हो चुकी है।रेल यात्रियों की सुरक्षा भगवान भरोसे है।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सारे महत्वपूर्ण कार्य छोड़ अभी नामकरण में व्यस्त हैं।शायद नाम बदल देने से प्रदेश विकसित और अपराधमुक्त हो जाएगा।

सरकार को पता है कि छठ पूजा के अवसर पर यात्रियों का हुजूम बिहार जाता है और छठ पूजा के उपरांत लौटता है। परंतु वर्षों से हमारी सरकार ट्रेनों की वैकल्पिक व्यवस्था कर पाने में असमर्थ रही है।या कहें कि बिहार के साथ सौतेला व्यवहार करती रही है।मुझे नहीं लगता कि यदि किसी अन्य प्रदेश में ये महापर्व होता तो सरकार ट्रेनों की व्यवस्था नहीं करती। हमारी सरकार को विलासिता संबंधित चीजें ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है। हमारी सरकार को तो 3000 करोड़ में मूर्ति बनवानी है, हमारी सरकार को बुलेट ट्रेन चलानी है। हमारे सरकार को ऐसे ऐसे काम करने हैं जिससे लोगों का मूलभूत मुद्दों से ध्यान भटक जाए। हमारी सरकार संवेदनाहीन हो सकती है, लेकिन बिहारी नहीं। चाहे तमाम कष्ट हो, परेशानी हो, परंतु बिहारियों की संवेदना अपनी मिट्टी से जुड़ी है। वह छठ में घर आएगा तो आएगा ही।उसकी भावना जुड़ी है,उसकी आस्था जुड़ी है इस महापर्व से। प्रदेश की सरकार भी इस महापर्व के लिए उदासीन ही नजर आती है।ताज्जुब होता है कि इस महापर्व की व्यवस्था के लिए प्रखंड मुख्यालयों सहित ग्रामीण इलाकों में सरकार एक रुपया भी नहीं देती है।

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