किसके हाथ आएगी इस बार हरियाणा की सत्ता ? विधानसभा चुनाव की को लेकर पारा हाई।
बीजेपी बेहतर आर्थिक विकास, रोजगार के अवसर और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है। इसके अलावा भाजपा जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की भी कोशिश में लगी है। साथ ही भाजपा के बड़े नेता चुनाव प्रचार के दौरान किसानों के मुद्दों पर पार्टी की स्थिति को साफ कर सकते हैं, ताकि आंदोलन के कारण पैदा हुए असंतोष को कम किया जा सके। बीजेपी ने हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 46 पर सबसे ज्यादा वोट हासिल किए। हालांकि, एंटी इनकम्बेंसी, किसान आंदोलन, और जेजेपी से गठबंधन का टूटना बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है। विपक्षी दलों की एकजुटता और जातीय समीकरणों का का प्रभाव भी चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। अब देखना यह होगा कि क्या बीजेपी हरियाणा की सत्ता में लौट पाती है या नहीं?
–डॉ सत्यवान सौरभ
पिछले 10 साल से प्रदेश की सत्ता चला रही भाजपा तीसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। हरियाणा विधानसभा चुनावों में इस बार सत्ता की लड़ाई बेहद दिलचस्प हो गई है। क्या पिछले 10 सालों से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को इस बार भी सत्ता नसीब होगी। बीजेपी के चुनावी अभियान का प्रमुख चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं। उन्हें राज्य के मतदाताओं को लुभाना है। मोदी अपने चुनावी अभियानों में भ्रष्टाचार, विकास कार्यों, और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को जोर-शोर से उठाते हैं। क्या हरियाणा में भी इसी रणनीति के तहत, पार्टी प्रधानमंत्री के जरिए भ्रष्टाचार और विकास को मुद्दा बनाएगी। बीजेपी के नेता भी अपने चुनावी प्रचार में भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं। पार्टी मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है। इसलिए राज्य में पार्टी बिना किसी सीएम फेस के उतर रही है। बीजेपी बेहतर आर्थिक विकास, रोजगार के अवसर और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है। इसके अलावा भाजपा जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की भी कोशिश में लगी है। साथ ही भाजपा के बड़े नेता चुनाव प्रचार के दौरान किसानों के मुद्दों पर पार्टी की स्थिति को साफ कर सकते हैं, ताकि आंदोलन के कारण पैदा हुए असंतोष को कम किया जा सके।
सरकार और किसानों के बीच टकराव ने बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचाया। इसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी के वोट बैंक पर पड़ सकता है, क्योंकि कृषि राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। चुनाव में बीजेपी को इस असंतोष से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति बनानी होगी, ताकि वह किसान समुदाय का विश्वास फिर से जीत सके। इसके साथ ही खिलाड़ियों के विरोध प्रदर्शन का बीजेपी के चुनावी अभियान पर गहरा असर पड़ सकता है, खासतौर पर हरियाणा जैसे राज्य में, जहां खेल और खिलाड़ी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। महिला पहलवानों के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों, जो यौन उत्पीड़न के आरोपों और न्याय की मांग पर केंद्रित थे, राज्य में बीजेपी की छवि को झटका दिया है। बीजेपी को इन विरोधों से हुए नुकसान से निपटने के लिए संवेदनशीलता के साथ ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि वह खेल जगत के समर्थन को खोए बिना अपने चुनावी अभियान बिना अपने चुनावी अभियान को सफल बना सके।
विपक्षी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ अपने-अपने तरीके से गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं। यदि इन विपक्षी दलों के एकजुट होने का असर जमीन पर दिखता है तो बीजेपी के लिए चुनावी जीत की राह और कठिन हो सकती है। विपक्ष खासतौर पर, एक समुदाय वोट बैंक पर फोकस कर रही है, और उसने राज्य के भीतर जातिगत समीकरणों को साधने की रणनीति तैयार की है। हरियाणा की राजनीति में जातीय समीकरण का बड़ा महत्व है। एक समुदाय, जो राज्य की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, उसका एक बड़ा हिस्सा बीजेपी से नाराज चल रहा है। पार्टी को अन्य मतदाताओं पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ रहा है। वहीं, अन्य समुदायों के साथ गठजोड़ बनाना भी पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है। बीजेपी के सामने इस बार जातीय संतुलन साधने और सभी वर्गों को साथ लाने की बड़ी जिम्मेदारी है। बीजेपी को अपने दम पर अन्य ग्रामीण वोटों को आकर्षित करना होगा, जो आसान नहीं होगा। इनका अलग होना बीजेपी के लिए एक और मुश्किल खड़ी कर सकता है। 10 साल की सत्ता के बाद बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का बड़ा खतरा है। सत्ता में रहते हुए किसी भी पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है और बीजेपी इससे अछूती नहीं है। विकास कार्यों के बावजूद, बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के आरोप जैसे मुद्दे विपक्षी दलों द्वारा उठाए जा रहे हैं, जिससे जिससे मतदाताओं का असंतोष बढ़ सकता है।
खासकर, लोकसभा चुनावों में बीजेपी को हरियाणा की 10 में से सिर्फ 5 सीटें मिली थीं, जो पार्टी के लिए चेतावनी संकेत हैं। चुनाव के इतनी नजदीक मनोहर लाल खट्टर की जगह नए चेहरे नायब सिंह सैनी को सत्ता सौंपी गई। लेकिन क्या यह फैसला पार्टी के भीतर और जनता के बीच भी सत्ता के प्रति असंतोष को कम करने में मददगार साबित होगा, क्योंकि चुनाव के इतने करीब मुख्यमंत्री बदलने के फैसले का असर पार्टी के चुनाव परिणाम पर पड़ सकता है। विधानसभा चुनावों में, स्थानीय मुद्दों और जातीय समीकरणों का अधिक प्रभाव होता है, और यही कारण है कि बीजेपी को इस बार राज्य में अधिक मेहनत करनी पड़ रही है। हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी, जब उसने 47 सीटें जीतीं और स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई। 2019 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन उतना प्रभावशाली नहीं रहा, और उसे सिर्फ 40 सीटें मिलीं, जो बहुमत से कम थीं। इसके बाद जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई गई। इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी का विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन कैसा रहता है। हरियाणा में बीजेपी का पूरा फोकस प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार पर है, और पार्टी को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में पार्टी यहां लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी कर सकेगी। पार्टी अपने चुनाव प्रचार में जातीय समीकरणों को साधने, कांग्रेस के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने, और विकास कार्यों का हवाला देकर वोटरो को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करेगी।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सभी समुदायों नेतृत्व पर जोर दिया है, जबकि विपक्ष ने विशेष जाति कार्ड का खुलकर उपयोग किया है। भाजपा ने विभिन्न जातियों को टिकट देने की कोशिश की है। हरियाणा में भाजपा ने दस साल की सत्ता के साथ विधानसभा चुनावों में सत्ता विरोधी माहौल की काट के लिए इस बार सामाजिक समीकरणों का गणित तो बिठाया है, लेकिन इसकी केमिस्ट्री किस करवट बैठेगी इसे लेकर असमंजस कायम है। 2024 के लोकसभा चुनावों के मतदान के आंकड़ों के मुताबिक, विधानसभा चुनाव पर अनुमान लगाया गया है कि राज्य में त्रिशंकु सदन की भी स्थिति बन सकती है। लेकिन, अगर विपक्षी पार्टियां एक साथ आ जाती हैं तो वह बढ़त हासिल कर सकती हैं। वहीं अब विधानसभा क्षेत्र के स्तर पर बात की जाए तो हर एक लोकसभा में कई सारी विधानसभा सीटें होती हैं। बीजेपी ने हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 46 पर सबसे ज्यादा वोट हासिल किए। हालांकि, एंटी इनकम्बेंसी, किसान आंदोलन, और जेजेपी से गठबंधन का टूटना बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है। विपक्षी दलों की एकजुटता और जातीय समीकरणों का का प्रभाव भी चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। अब देखना यह होगा कि क्या बीजेपी हरियाणा की सत्ता में लौट पाती है या नहीं?
– डॉo सत्यवान सौरभ,
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट
नोट- आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं।