मातृभाषा ही वह भाषा होती है, जिसमें व्यक्ति सोचता है और अपने सपनों को बुनता है। सोच और सपनों की बदौलत विज्ञान में बड़े-बड़े आविष्कार हुए हैं। यह तो स्पष्ट है कि विज्ञान, इंजीनियरिंग, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, बायोटेक इत्यादि की पढ़ाई हिंदी या मातृभाषा में होने से विद्यार्थियों को निश्चित ही फायदा होगा, क्योंकि कोई व्यक्ति किसी विषय को अपनी भाषा में सर्वाधिक आसानी से समझ सकता है। विज्ञान तकनीक ऐसे विषय हैं, जिन्हें समग्रता में समझे बिना विशेषज्ञता हासिल नहीं की जा सकती है।
अंग्रेजी के पर्याप्त ज्ञान के अभाव में आती है समस्या
अंग्रेजी के पर्याप्त ज्ञान के अभाव में बहुत से छात्रों को तमाम तरीके की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें सबसे प्रमुख है भाषा की समस्या की वजह से उच्च शिक्षा से महरूम रह जाना। लेकिन अब इस समस्या का हल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने निकाला है। दरअसल, इग्नू की ओर से ऐसे विद्यार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण पहल की गई है जिसके तहत विश्वविद्यालय के शिक्षक व काउंसलर विद्यार्थियों को अंग्रेजी और हिंदी के साथ ही उनकी मातृभाषा में ही अध्यापन कार्य करेंगे। एक मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इग्नू ने यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया है।
इग्नू बना देश का पहला विश्वविद्यालय
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इग्नू में इस समय 13 भारतीय भाषाओं में अध्यापन कार्य शुरू हो गया है। इस आधार पर यह कहा जा रहा है कि ये पहल करने वाला इग्नू देश का पहला विश्वविद्यालय बन गया है। इग्नू की अध्ययन सामग्री अंग्रेजी या हिंदी में है। कई विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिए इन पाठ्य पुस्तकों का उसी भाषा में अनुवाद कराना जरूरी है। अनुवाद की प्रक्रिया जारी है। हालांकि इसमें अभी समय लग सकता है लेकिन विद्यार्थियों को तत्काल उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिए शिक्षक व काउंसलर को सीधे स्थानीय भाषा में पढ़ाने को कह दिया गया है।
ऑनलाइन उपक्रम भी होगा शुरू
इग्नू ने इस उपक्रम को ऑनलाइन भी शुरू किया गया है। यानि कि यह प्रारूप अब केवल किताबों या क्लासरूम तक ही सिमटकर नहीं रह जाएगा बल्कि विद्यार्थी यदि चाहेंगे तो वे इसे टीवी चैनल के माध्यम से भी पढ़ सकेंगे। विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, इसके लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत यह फैसला लिया गया है।
विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की भी ली जाएगी मदद
इस कार्य के लिए इग्नू की ओर से विश्वविद्यालय के शिक्षकों के अलावा विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की भी मदद ली जाएगी। वे स्थानीय भाषा में भी विद्यार्थियों को अध्यापन कार्य व मार्गदर्शन करेंगे ताकि विद्यार्थियों को विषय का सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त हो सके। इसके अलावा विद्यार्थियों को प्रायोगिक व व्यावहारिक ज्ञान भी मिल पाएगा और छात्र में कौशल विकास भी होगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के मुताबिक लिया फैसला
उल्लेखनीय है कि इग्नू ने यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के मुताबिक लिया है। अब अंग्रेजी की वजह से उच्च शिक्षा से दूर होने वाले विद्यार्थियों को अपनी ही मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का बल मिलेगा। इस पहल के तहत विद्यार्थियों को पारंपरिक पाठ्यक्रमों के साथ ही व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की भी शिक्षा प्रदान की जाएगी।
ग्रामीण विद्यार्थियों को होगा सबसे ज्यादा लाभ
इस पहल का लाभ शहरी विद्यार्थियों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को भी होगा। दरअसल कोई भी विषय हो यदि छात्र को उसकी मातृभाषा में समझाया जाए तो वह बेहद आसानी से समझ में आ जाता है। इससे छात्र में विषय के प्रति रुचि निर्माण होता है और छात्र संबंधित विषयों की परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।