शीला दीक्षित – उनके चेहरे पर हमेशा रहती थी एक चिर स्थायी मुस्कुराहट

हिमांशु नारायण

कर्मठता और विनम्रता की मिसाल शीला दीक्षित जी का अचानक जाना दुख दे गया। राजनीति में कम ही लोग होते हैं जिन्हें इतना सम्मान मिल पाया हो और लगभग बिना किसी कॉन्ट्रोवर्सी के जीवन के अंतिम क्षण तक सक्रिय राजनीति में योगदान करते रहे हों।

दिल्ली की राजनीति उनके बिना अधूरी थी

शीला जी का मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से समय वैसा नही गुजरा जिसकी वो हकदार थीं, राज्यपाल बनीं लेकिन सक्रिय राजनीति से दूर रहना रास नही आया तो केरल को अलविदा करके जल्द ही पुनः दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हो गईं, दिल्ली की राजनीति उनके बिना अधूरी थी और शायद ही कोई इसकी भरपाई कर सकेगा… ध्यान दीजिए कि उनकी सरकार जाने के बाद से कांग्रेस नीचे ही जाती गयी है।

दिल्ली को नया रूप देने का श्रेय इन्हें ही जाता है

दिल्ली को जानने वाले शीला जी को नही भूल सकते, वस्तुतः आज की दिल्ली यानि विकसित दिल्ली उनकी ही देन है, पूरे दिल्ली को फ्लाईओवर और अन्य साधनों से विकसित करने और दिल्ली को नया रूप देने का श्रेय इन्हें ही जाता है और यह बात कल प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी बोला जब वो इनके अंतिम दर्शन के लिए आये थे.. दिल्ली का विकास और शीला जी का नाम एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द बन गए।

उनके चेहरे पर हमेशा रहती थी एक चिर स्थायी मुस्कुराहट

विवाद से दूर रहने वाली शीला जी को कभी भी विवादास्पद कमेंट करते किसी ने नही पाया, हमेशा उनके चेहरे पर की एक चिर स्थायी मुस्कुराहट ही सामने वाले का स्वागत करती थी और यह वो गुण था जिसके कायल उनकी पार्टी के ही नही बल्कि पूरा विपक्ष भी रहा है.. व्यक्तिगत टकराव या विवादास्पद बयान तो मानों उनकी डिक्शनरी में था ही नहीं।

गंभीर कार्यक्रमों में रहती थीं बहुत सहज

गंभीर से गंभीर कार्यक्रम के दौरान भी बड़ा सहज होता था उनका व्यवहार, चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ। उनके विनोदी स्वभाव का एक उदाहरण देता हूँ… 2004 में दिल्ली फेडरेशन ऑफ आरडब्लूए की तरफ से एक भव्य आयोजन था, सेक्रेटरी जनरल होने के नाते मैं इस मंच का संचालन कर रहा था। अपने स्वागत भाषण में गलती से मंच पर उपस्थित सांसद श्री सज्जन कुमार जी का नाम उल्लेख करना मैं भूल गया। मेरा भाषण समाप्त होते ही शीला जी ने माइक अपने हाथ मे लिया और हंसते हुए बोली कि, हिमांशु जी गलती आपने की है और सजा मुझे मिलेगी कि मेरे इशारे पर आपने सज्जन जी का नाम नही लिया, यह हमारे वरिष्ठ नेता हैं तो अलग से इनको धन्यवाद दो आप और मैंने माफी मांगते गए यह भूल सुधार किया।

उनकी लोकप्रियता से शीर्षस्थ नेता भी हो गये थें चिन्तित

जब तक मैं दिल्ली वासी था मुख्यमंत्री कार्यालय के आरडब्लूए से सम्बंधित कक्ष में जाना लगा रहता था और बोल सकता हूँ कि शीला जी का आरडब्लूए को पूरी दिल्ली के एक एक मुहल्ले में फैलाने और इससे जुड़े रहने की नीति ने उन्हें तीन कार्यकाल दिलाने में सबसे अधिक योगदान दिया, हर घर मे वो चर्चा का विषय हुआ करती थीं.. जब कभी किसी भी समस्या को ले कर उनके पास गया तो तत्काल वो सम्बन्धित अधिकारी को निर्देश जारी किया करती थीं… दिल्ली के लोग मुफ्तखोरी के लालच में भ्रमित नही हुए होते तो शायद शीला जी को मुख्यमंत्री पद से विमुक्त करना बड़ा कठिन होता… मुझे स्मरण है कि तीसरे कार्यकाल में उनकी बढ़ती लोकप्रियता से चिंतित हो कर सोनिया गांधी ने कोशिश की थी कि वो मुख्यमंत्री ना बनें लेकिन यह प्रयास सफल नही हुआ ऐसी लोकप्रिय नेता थीं वो और ध्यान देने की बात है कि इस पूरे घटना के दौरान उनके चेहरे की मुस्कुराहट और उनकी विनम्रता वैसी ही बनी रही

मेरा श्रधेय सुमन और श्रंद्धाजलि इनकी आत्मा की शांति के लिए।

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