“दुखवा मिटाई छठी मईया”, शारदा सिन्हा जी आपकी सकुशल वापसी का इंतजार कर रहा बिहार

सोशल मीडिया में जिस प्रकार जल्दबाजी की होड़ लगी रहती है यही कारण है कि लोगों की विश्वनीयता सोशल मीडिया पर से उठती जा रही है। बिहार के लोगों की दुआएं भगवान जरूर सुनेंगे। बिहार हीं नही पूरा देश आपकी सकुशल वापसी देखना चाहता है।

शारदा सिन्हा विशेष

बिहार और बिहारीपन की खुशबू लिए अपने अद्भुत आवाज से लोगों को भक्ति रस में सारोबार कर देने वाली शारदा सिन्हा को छठ कोकिला भी कहा जाता है। शारदा सिन्हा ने अपने करियर में संगीत के क्षेत्र में खूब योगदान दिया। छठ गीत की बात हो तो शारदा सिन्हा का नाम सामने आ जाता है। ऐसा लगता है कि शारदा सिन्हा ने छठ गीत को एक पहचान देने हीं इस धरती पर अवतरित हुई हैं।
जिस तरह स्वर कोकिला के बारे में पूरी दुनिया जानती है। ठीक इसी तरह, ‘छठ कोकिला’ का नाम भी देश के कोने-कोने में चर्चित है। वो गायिका जिन्होंने अपनी मीठी आवाज से छठ के गाने हर भाषी लोगों को जुबान पर चढ़ा दिए। शारदा सिन्हा ने अपने करियर में एक से एक हिट गाने दिए। देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजी गईं तो ढेरों फैंस को भी लोक गायिकी के लिए प्रेरित किया।

30 से 35 सालों के बाद अपने परिवार में बेटी के रूप में हुआ शारदा का जन्म

इनके परिवार में बिटिया के रूप 30-35 साल के बाद शारदा सिन्हा का जन्म हुआ था। शारदा का जन्म भी काफी मन्नतों के बाद हुआ। शारदा सिन्हा के हुनर की पहचान उनके पिता ने की और फिर बेटी को संगीत सिखाने का फैसला लिया। अपने पीहर से संगीत का सिलसिला शुरू हुआ और फिर ब्याह के बाद भी ये जारी रहा। उन्हें पति का सपोर्ट मिला तो ससुर ने भी खूब साथ दिया।

शारदा सिन्हा 8 भाईयों की इकलौती बहन हैं। शारदा सिन्हा शादी करके ससुराल आईं तो बड़ी बहू होने के नाते सास ने उन्हें छठ के एक-एक रीति-रिवाज और नियम-कायदे सिखाए। इसी तरह वह छठ को बारीकी से समझने लगीं और खुद भी इन रिवाजों को निभाने लगीं। इसी के साथ इन गानों में भी वह निपुण होती गईं।

शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के हुलस में हुआ। उनका ससुराल बेगुसराय में है। शारदा सिन्हा गायिका के साथ-साथ प्रोफेसर भी रही हैं। उन्होंने बीएड की पढ़ाई की और फिर वह म्यूजिक में पीएचडी करके वह समस्तीपुर के कॉलेज में प्रोफेसर बन गईं। वह हमेशा से ही गायिकी में रुचि रखती थीं और इसलिए उन्होंने इसे ही अपने करियर के तौर पर भी चुना। गायिका के तौर पर प्रसिद्धि पाने के भी वह अपनी नौकरी भी करती रही और कॉलेज से अवकाश प्राप्त भी हुईं।

परिवार और पति बृजकिशोर सिन्हा के सपोर्ट से उन्होंने भोजपुरी, मैथिली, मगही से लेकर हिंदी में खूब गाने गाए। पहला मौका था जब इस तरह विवाह व त्योहारों के गाने मार्केट में खूब धूम मचाने लगे थें।
‘हो दीनानाथ’, ‘सोना साठ कुनिया हो दीनानथ’, से लेकर ‘द्वार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ, यौ दुलरुआ भइया’ जैसे तमाम सुपरहिट गाने गाने वालीं शारदा सिन्हा को साल पहली बार बॉलीवुड में गाना गाने का मौका दिया राजश्री प्रोडक्शन ने खुद तारा चंद्र बड़जात्या ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। उन्होंने ‘मैंने प्यार किया’ का ‘कहे तो से सजना’ गाना गाया जोकि सुपरहिट रहा। आगे चलकर उन्होंने बॉलीवुड में तार बिजली से लेकर कौन सी नगरिया जैसे कई गाने गाए।

राजनीति में आने के ऑफर को को ठुकरा कर शारदा सिन्हा ने अपनी कला को चुना

शारदा सिन्हा की लोकप्रियता को देखते हुए कई राजनीतिक दलों ने भी उन्हें राजनीति में आने की पेशकश की, पर उन्होंने राजनीतिक में आने से इंकार कर दिया। शारदा सिन्हा के योगदान को देखते हुए उन्हें साल 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अगादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीय आहिल्या देवी अवॉर्ड, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार और 2018 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। खुद कई इंटरव्यू में शारदा सिन्हा ने इस बारे में बात की है कि उन्हें 53 साल के करियर में कई बार हर बड़ी राजनीतिक पार्टी से ऑफर आए लेकिन उन्होंने संगीत के रास्ते से खुद को नहीं भटकाया और हमेशा पॉलिटिक्स में आने के ऑफर को ठुकरा दिए।

शारदा सिन्हा का परिवार

1 अक्टूबर 1952 को जन्मीं शारदा सिन्हा के पति का नाम बृजकिशोर सिन्हा था। वह शिक्षा विभाग में क्षेत्रीय डिप्टी डायरेक्टर पद से रिटायर हुए थे। इसी साल उनका निधन हो गया था और तभी से वह भी सदमे में हैं। दोनों के दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी।
शारदा सिन्हा अभी जिंदगी की जंग लड़ रहीं हैं। बिहार में खास कर छठ व्रत पर उनकी ये स्थिति उनकी नई रिलीज गाने “दुखवा मिटाई छठी मईया” की याद दिला रही है।

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