अपने अनुभव चाचा (काल्पनिक नाम) के पुराने मित्र राघव अपनी थर्ड हैण्ड पुरानी स्कूटर (तकरीबन 17-18 साल पुरानी) से अपनी बेटी को छोड़ने स्कूल जा रहे थें। अचानक अगली मोड़ पर 8-10 पुलिस वाले खड़े होकर गाड़ियों को रुकवा कर कागजात जाँच करते दिख गए। वो इतने घबड़ा गये कि पुलिस से बचने के लिये अपने स्कूटर को यूटर्न लेने के चक्कर में गिर पड़े। उनके पैर बुरी तरह जख्मी हो गये और उनकी बेटी भी चाटिल हो गयी। इसके बावजूद भी वो हड़बड़ी में उठें और किसी प्रकार पुलिस की नजरों से बचते हुए वहाँ से निकल गये।
घर आये तो उनकी चोट की खबर सुनकर पड़ोसी और रिश्तेदार मिलने पहूँचे। सभी ने नये मोटर वाहन नियम की शिकायत की, परन्तु उनमें एक-दो शख्स ने उन्हें दोषी ठहराते हुए कहा कि उन्हें गाड़ी की कागजात बना लेनी चाहिए। सरकार ने यह नियम आपलोंगो के लिए हीं बनायी है।
उन्होने भी इस बात को स्वीकार की गलती मेरी हीं है। तब अपने अनुभव चाचा ने बताया कि राघव जब गाँव से अपने बच्चों को पढ़ाने शहर आया था तब उसके पास कोई रोजगार नहीं था। उन्होनें उसे एक दुकान में बतौर सेल्स मैनेजर 4000 की नौकरी दिलवा दी और एक छोटा सा घर 1500 रूपये किराये पर दिलवा दिया। घर से दुकान की दुरी इतनी थी कि पहूँचने में घंटो लग जाते थें।
दुकान के मालिक ने राघव को अपना एक स्कूटर दे दिया और तेल के पैसे भी वेतन के अलावे देने लगा कि वह जल्दी दुकान पहूँच जाया करे।
इसी 2500 में राघव अपने घर चलाता और दो बच्चों को पढ़ाता था। राघव ने स्कूटर लेने के बाद स्कूटर की कागजात के लिए कई बार प्रयास किया परन्तु ड्राईविंग लाईसेन्स या इन्शोरेन्स या कागज अपने नाम से ट्रान्सफर करवाने में जितने पैसे लगने थें उसके पास एक भी कागज को बनाने के पैसे नहीं बच पाते थें। हालांकि इन सब कागजातों के लिए सरकारी शुल्क अधिक नहीं थें परन्तु ये सब बगैर दलाल के सम्भव नहीं थें। पुरानी स्कूटर रहने के कारण कुछ न कुछ परेशानी भी लगी रहती थी।
राघव ने सोचा कि उसे कहाँ बाहर जाना है किसी तरह दुकान से कमा कर बच्चों को पढ़ा ले। कागज का क्या करना है वो कोई अपराधी या क्रिमिनल थोड़े हीं है जो डरे।
पिछले 16 सालों में राघव को सिर्फ दो बार पुलिस ने गाड़ी की कागज जांच के लिए पकड़ा और वह महज 50 रूपये देकर छुट गया। इसलिए उसे कभी कागज की आवश्यकता नहीं पड़ी।
आज का वेतन 10000 रूपये है। पर राघव के बच्चे बड़े हो गये हैं और काॅलेज में पढ़ते हैं। नये मोटर वाहन कानून लागु होने के बाद खबरों के माध्यम से राघव को पता चला कि इसको लेकर कड़ी जांच और अधिक जुर्माने का प्रावधान हो गया है। सबसे अधिक तो घबराहट उसे पुलिस के द्वारा मार-पीट की खबर से हो गयी। वह फिर से कागज बनवाने निकल पड़ा। परन्तु इतने पुराने स्कूटर की कागजात बनवाना बहुत मुश्किल लगा। अंत में वह घबरा कर स्कूटर निकालना हीं छोड़ दिया। परन्तु उस दिन राघव की बेटी का कोई परीक्षा था जिसमें उसे समय पर पहूँचना जरूरी था इसलिए वह स्कूटर निकाला। सामने पुलिस वालों की जांच को देखकर इतना घबरा गया कि वह गिर पड़ा। राघव को कागज की जांच से ज्यादा डर ये था कि कहीं पुलिस वाले उसकी बेटी के सामने हीं उस पर हाथ न छोड़ दे या अपशब्द ने बोल दे। इसी घबराहट में राघव स्कूटर समेत गिर गया। उसकी बेटी की परीक्षा भी छुट गयी।
ये कहानी आज तकरीबन 75 प्रतिशत निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार की है। अनुभव चाचा अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि यह कानून सरकार ने दुर्घटना रोकने तथा राजकोष बढ़ाने के लिए बनाया है परन्तु इससे दुर्घटना पर कोई असर नहीं पड़ेगा और शुरूआती दिनों भलें हीं कोष सरकार का भरे परन्तु आगे चलकर कोष हमेशा की तरह पुलिस का हीं भरेगा। कानून तोड़ने वाले लोगों पर किसी कानून कोई असर नहीं होता है पर उस कानून के चक्कर में राघव जैसे मजबूर लोग पीस जाते हैं। राघव और राघव जैसे मजबूर लोग पहले 50 में छुटते थें अब 500 छुटेंगे, क्योंकि सरकार के पास अभी भी मुकम्मल साधन नहीं हैं कि राघव जैसे लोग निम्न माध्यम वर्ग से कम से कम माध्यम वर्ग में आ सकें।