महात्मा गांधी ने कहा था कि सिद्धांतों के बिना राजनीति पाप है। भारतीय राजनीति का उद्भव प्राचीन काल से हुआ है,किंतु इसकी प्रकृति में परिवर्तन तब आया जब भारत विश्व स्तर पर एक आधुनिक राज्य के रूप में स्थापित हुआ। भारतीय राजनीति में स्वतंत्रता के पूर्व नैतिकता एवं संस्कृति की एकता के दम पर स्वतंत्रता संग्राम पर विजय प्राप्त की थी। विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री,सरदार वल्लभभाई पटेल, लाला लाजपत राय और ना जाने कितने महान व्यक्तियों ने नैतिकता और संस्कृति में एकजुट होकर ब्रितानी हुकूमत को देश से भगाया था। देश का स्वतंत्रता संग्राम जनप्रतिनिधियों को नैतिकता के पालन के लिए प्रोत्साहित करता रहा है। जब भारत में स्वतंत्र लोकतांत्रिक राजनीति का आरंभ हुआ तो नैतिकता का पतन, क्षरण आरंभ हो गया। राजनीति धीरे धीरे सिद्धांत से विमुख होती गई तथा इसकी दशा और दिशा मैं नैतिकता का क्षरण तथा पतन धीरे-धीरे प्रारंभ हो गया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात यह माना जाता रहा है की राजनीति में अनैतिकता के पनपने के दो प्रमुख कारण माने गए धनबल और बाहुबल। राजनीति में ऐसा कहा जाता है कि जिसके पास धन होता है उसके पास बल भी होता है, और भारतीय राजनीति में और कई प्रदेशों के संदर्भ में यह बात सर्वथा उचित प्रतीत होती है। भारतीय राजनीति में धनबल और बाहुबल का नकारात्मक प्रभाव नैतिकता के पतन के रूप में सामने आया है। स्वतंत्रता के पश्चात राजनेताओं में स्वयं के लिए धन एकत्र करना एवं येन केन प्रकारेण सत्ता स्थापित करने के प्रयास के कारण नैतिकता धीरे-धीरे स्खलित होती गई है। नेताओं का बेईमानी और भ्रष्ट कार्य में लिप्त होना भी राजनीति में नैतिकता के पतन का प्रमुख कारण है,और यही कारण है कि आज अधिकतर भारतीय राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं, एवं उन पर मुकदमा भी चल रहा है। यह सर्व विदित है कि सार्वजनिक संपत्ति को अपनी स्वयं की संपत्ति बनाने की होड़ में राजनेताओं को कर्तव्य पथ से विमुख होते देखा गया है। राजनीति में राजनेताओं ने इसे संपत्ति कमाने का जरिया ही मान लिया है।
सार्वजनिक संसाधनों का पूरा नियंत्रण राजनेताओं के पास होता है इसका उपयोग में अपने संसदीय, विधानसभा क्षेत्र के लिए करते हैं। इस तरह पूरे राज्य स्वदेश के संसाधनों का किसी एक क्षेत्र में निवेश करते जाते हैं, जो अनैतिकता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। राजनीति में भाई भतीजावाद एक सामान्य बहुत चर्चित लक्षण है, कोई भी राजनेता आज यह चाहता है कि योग्यता हो ना हो कोई भी बड़ा पद उसके भाई, भतीजे ,पत्नी ,बेटे आदि को मिल जाए, इतना ही नहीं कई बार सगे संबंधियों के अपराधी होते हुए भी राजनीतिक पद अथवा चुनावी टिकट दिलाने का प्रयास करते हैं। भारतीय राजनीति में क्रोनी कैपिटलिस्म यानी उद्योगपतियों एवं राजनीतिज्ञों का आपस में गठजोड़ को क्रोनी कैपिटलिस्म माना जाता है। इसमें उद्योगपति राजनीतिक चंदा का हवाला देते हुए राजनेताओं से देश की नीतियों को अपने पक्ष में करवा लेते हैं और इस तरह जनता का शोषण शुरू हो जाता है। भारतीय राजनीति में इस तरह के आरोप लंबे समय से लगते आ रहे हैं।
राजनीति में उच्च नैतिक मूल्यों का महत्व घटने के साथ-साथ राजनीतिक मापदंड शासन को राजनीति आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में नकारात्मक रूप से प्रभावित करता जा रहा है। राजनेताओं से अपेक्षा होती है कि वह समाज के प्रति प्रतिबद्ध होकर काम करें किंतु अनैतिक राजनीति इस प्रतिबद्धता में एक बड़ी बाधा है, और इसके साथ ही राजनेता अनैतिक प्रथाओं का समावेश कर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने मैं कतई गुरेज नहीं करते हैं। इतना ही नहीं राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप की भाषा भी निम्न स्तर तथा अनैतिक होते जा रही है, और यही कारण है कि राजनीति में अयोग्य लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। विडंबना यह है कि भारत में प्रत्येक पेशेवर व्यक्ति के लिए कार्य करने के लिए योग्यता निर्धारित की गई है, किंतु जनता पर शासन करने वाले जनप्रतिनिधियों की कोई भी योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। संविधान में ही योग्यता निर्धारित नहीं है। लेकिन संसद द्वारा पारित जनप्रतिनिधि अधिनियम 1991 में भी इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया। इसीलिए संविधान तथा इस अधिनियम में जनप्रतिनिधियों की शैक्षणिक योग्यता एवं एवं अपराधिक निर्योग्यता का प्रावधान किया जाना चाहिए जिससे राजनीति थोड़ी साफ सुथरी हो और नैतिकता तथा आत्मबल में वृद्धि हो।
पढ़े लिखे, शिक्षित लोगों की राजनीति में आने से वहां का वातावरण थोड़ा शुद्ध होने की संभावना बनती है और देश के विकास को भी बल मिलता है। यह बात महत्वपूर्ण है कि सामान्यता अपराधी प्रवृत्ति लोगों को विधानसभा या लोकसभा में टिकट नहीं दी जानी चाहिए, जिससे उनका राजनीति में प्रवेश प्रतिबंधित हो सके। प्रायः देखा गया है कि अनैतिकता की शुरुआत अधिक धन के संचालित होती है। इसीलिए सभी राजनीतिक दलों के प्राप्त चंदे को ऑडिट के दायरे में लाना जाकर लाया जाना चाहिए, ताकि नैतिक चंदे से राजनीति भी नैतिक हो सके। सदनों की नियमावली में परिवर्तन करते हुए सूचना के अधिकार के अंतर्गत जिसमें पार्टियों की गतिविधियां भी आर,टी,आई के दायरे में लाई जा सके। जिससे राजनीतिक पारदर्शिता को बल मिलेगा। हाल ही में भारतीय संसद की निष्पादन क्षमता में भारी कमी आई है, क्योंकि प्रत्येक राजनीतिक दल संसद का प्रयोग राजनीतिक लाभ के लिए करने लगे हैं, इसीलिए नियमावली में परिवर्तन के साथ इस पर लगाम लगाई जानी चाहिए। इससे राजनीति में नैतिकता का क्षरण ना हो। प्रसिद्ध विचारक हेनरी एडम ने कहा है कि “मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनैतिक शिक्षा का आदि और अंत है”
संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़