बिहार (BIHAR) के गाँवों का सपना बहुत जल्द पूरा होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘‘हर घर फाइबर’’ काफी संघर्षों और वैश्विक महामारी के बीच तेजी से सफलता की ओर अग्रसर है।
‘‘फाइबर टू होम’’ (FTTH) कनेक्शन बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाकों में पहूंचाना एक बहुत हीं मुश्किल कार्य था। देश की आजादी के 70 सालों बाद भी जिन गाँवों में कोई सरकारी या निजी टेलिकॉम सेवाएँ नहीं पहूंच पायी वहाँ ‘‘हर घर फाइबर’’ की फाइबर मात्र 8 महीने में पहूंच गयी। आंकड़ों की माने तो लगभग 34 हजार कनेक्शन लाइव हो चुके हैं।
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के सामने डिजिटल क्रान्ति की मिसाल पेश की है
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के सामने डिजिटल क्रान्ति की मिसाल पेश की है। बिहार हमेशा से हीं बदलाव और क्रान्ति की भूमि रही है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की इस योजना ने भी बिहार के गाँवों में क्रान्ति लाने का काम किया है।
इस क्रान्तिकारी योजना की विस्तृत जानकारी के लिए हमारी टीम ने सुदूर गाँवों में जाकर लोंगो की प्रतिक्रिया जानी। हमारीे टीम ने पटना जिले का एक ब्लॉक के एक छोटे से गाँव पहूंची। यहाँ हमारी टीम की मुलाकात संगीता देवी से हुई। संगीता देवी जो एक महिला हैं और पटना जिले के सबसे अंतिम गाँव की निवासी हैं। उन्होने बताया कि यह गाँव किसी भी बाजार और शहर से बहुत दुर है। यहाँ फाइबर पहूंचाना बहुत मुश्किल का काम था। लेकिन ग्रामीणों के उत्साह और इस क्रान्ति में भागीदार बनने के लिए हमने प्रयास किया और हम सफल हुए।
ऐसे हीं कई गाँव ऐसे हैं जहां फाइबर पहुंचाना बहुत मुश्किल का काम था। वैसे जगहों पर ग्राम पंचायत से लगभग 40 हजार गाँवों में फाइबर पहूंच चुका है। लगभग 2 लाख फाइबर टु होम कनेक्शन के लिए फाइबर खींचा जा चुका है। अब इन्हें सिर्फ इंटरनेट से जोड़ना बाकी रह गया है। ये इन्टरनेट से जुड़ते हीं ये गाँव डिजिटल क्रान्ति की बुनियाद रखेंगे।
यह एक चुनौतिपूर्ण योजना- डा0 दिनेश त्यागी
इस कार्य का संचालन सूचना और तकनीकी मंत्रालय के अधीनस्थ कार्य कर रही कॉमन सर्विस सेन्टर (CSC) कर रही है। सीएससी के प्रबन्ध निदेशक डा0 दिनेश त्यागी इस बाबत बताते हैं कि यह एक ऐसी चुनौतिपूर्ण योजना है जो हमने बिहार से शुरू की। बिहार के हीं रहने वाले दशरथ मांझी ने पहाड़ काट कर रास्ता बनाया था। बिहार के लोग जुझारू और क्रान्तिकारी होते हैं। इस योजना की सबसे खास बात यह है कि यह किसी बड़ी कम्पनियों के द्वारा नहीं बल्कि स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित करने के बाद उनके द्वारा हीं करवाया जा रहा है। स्थानीय युवाओं को इससे रोजगार के साथ-साथ क्षेत्र में विकास के भी रास्ते खुलें हैं।
डा0 त्यागी के अनुसार बिहार के कुल 5 सौ 34 प्रखण्डों में 8 हजार 7 सौ 45 ग्राम पंचायत हैं। इनमें 41 हजार 1 सौ 15 गाँवों को लक्ष्य करके काम की शुरूआत की गयी थी। ये हमारी टीम की बहुत बड़ी उपलब्धि है कि महामारी और कई तकनीकी समस्या, सहयोग और असहयोग के बावजूद हमने तकरीबन 40 हजार गाँवों में फाइबर बिछा दी है।
लगभग 2 लाख के लक्ष्य में 1 लाख 80 हजार से अधिक कनेक्शन के लिए फाइबर बिछाने का कार्य पूरा
डा0 त्यागी कहते हैं कि (FTTH) कनेक्शन के लिए 2 लाख 5 हजार 4 सौ 10 का लक्ष्य निर्धारित था, जिसमें 1 लाख 80 हजार 7 सौ 89 कनेक्शन के लिए फाइबर बिछाने का कार्य पूरा किया जा चुका है। इस क्रम में सरकारी संस्थानों जैसे- अस्पताल, पुलिस थाना, आंगनबाडी केन्द्र, विद्यालय आदि में 30 हजार से अधिक कनेक्शन देकर वहाँ इन्टरनेट की शुरूआत कर दी गयी है।
डा0 त्यागी बताते हैं कि इस योजना को पीएम नरेन्द्र मोदी ने सितम्बर 2020 में लांच की थी, जिसे 31 मार्च तक पुरा करने का लक्ष्य था। परन्तु कोरोना महामारी ने हमारी रफ्तार ब्रेक लगा दिया। हमारे ग्रामीण स्तर पर काम करने वाले सहयोगियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद हमने 8 महीने में अपेक्षित सफलता हासिल कर ली है।
उन्होंने घर तक फाइबर योजना की विशेषताएं बताते हुए कहा कि इस योजना का नाम घर तक फाइबर योजना इसलिए रखा गया है, क्योंकि यह गांव के सभी घरों तक तेज इन्टरनेट की सुविधा पहुंचाएगी। इस योजना की शुरुआत अभी टेस्टिंग के रूप में बिहार राज्य में की गई थी, इसलिए अभी केवल बिहार के सभी गांवों को इससे जोड़ा जायेगा, इसके बाद इसे अन्य राज्यों में शुरू किया जायेगा।
डा0 त्यागी कहते हैं कि भारत एक ऐसा देश हैं जहां पर सबसे ज्यादा ऑनलाइन ट्रांसेक्शन होते हैं। ऐसे में भारत के गांव क्षेत्र इससे अछूते कैसे रह सकते हैं। इसलिए इस योजना को गांव क्षेत्र के लिए शुरू किया गया है। इन्टरनेट आज की आवश्यकता है इसके बिना कोई भी काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है। अब तक यह सुविधा शहर के लोग तक ही सिमित थी किन्तु अब गांव में भी यह सुविधा पहुंच चुकी है।
गाँवों का डिजिटल क्रान्ति से जोड़ने में यह योजना मील का पत्थर
डा0 त्यागी इस योजना के लिए देश के पीएम नरेन्द्र मोदी, तात्कालीन विभागीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और वर्तमान केन्द्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का आभार प्रकट करते हुए कहते हैं कि गाँवों का डिजिटल क्रान्ति से जोड़ने में यह योजना मील का पत्थर साबित होगी।
डा0 त्यागी ने बताते हैं कि आखिर पीएम ने इस योजना के लिए सीएससी को हीं क्यों चुना। उनका कहना है कि देश के हर गाँवों में सीएससी सेंटर मौजूद होते हैं। इसलिए उन्होंने ऑप्टिकल फाइबर की कनेक्टिविटी के लिए सीएससी सेंटर को चुना। यह कार्य किसी भी बड़ी कम्पनी को दिया जा सकता था, परन्तु पीएम मोदी की दुरदर्शिता थी कि उन्होंने इस योजना के लिए स्थानीय युवाओं को चुना। इससे योजना के श्रम का फायदा और योजना के फल का फायदा दोंनो स्थानीय युवा और ग्रामीण उठा पा रहे हैं।
डा0 त्यागी घर तक फाइबर योजना के लाभ के बारे बताते हैं कि इस योजना के लांच होने से सबसे बड़ा लाभ यह है कि गांव में भी हाई स्पीड इन्टरनेट कनेक्टिविटी पहुँच रही है, जिससे गांव का भी विकास होगा। प्रत्येक गांव में इन्टरनेट कनेक्टिविटी होने से ई – कॉमर्स, ई – शिक्षा, ई – फार्मेसी, कॉल सेंटर, ऑनलाइन बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग जैसी सुविधा मिल रही है। उन्होने बताया कि गांव के किसान, छोटे उद्योगपति या जो नए उद्यमी हैं, वे सभी अपने सामान को ऑनलाइन ई – हार्ट के माध्यम से देश के विभिन्न लोगों तक पहुंचा सकेंगे, जिससे उनकी इनकम बढ़ेगी।
डा0 त्यागी कहते है कि गांव में उद्यमी के रोजगार एवं नौकरी के अवसर बढ़ रहे हैं।. उन्हें अपना घर बार छोड़ कर अब शहर नहीं जाना पड़ेगा। सरकार की योजनाओं का लाभ ऑनलाइन माध्यम से आसानी से और जल्दी प्राप्त कर सकेंगे।
डा0 त्यागी कहते हैं कि इस योजना के माध्यम से महिलाओं को भी बहुत लाभ होगा। वे अपना खुद का रोजगार गांव में रहकर शुरू कर रही है और साथ ही इसे ऑनलाइन माध्यम से बढ़ा भी सकेंगी।
सम्बन्धित विभागों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलना इस योजना में विलम्ब के कारण
हमारी टीम ने परियोजना को पुरा होने में विलम्ब होने के कारणों पर नजर डाली तो कई तकनीकी बातें सामने आयीं। स्थानीय स्तर पर कार्य कर रहे सीएससी सेंटर के संचालकों के अनुसार कार्य में विलम्ब का सबसे बड़ा कारण यह है कि सम्बन्धित विभागों का सहयोग अपेक्षित नहीं रहा। स्थानीय स्तर पर सीएससी सेंटर संचालकों में प्रखण्ड स्तर पर एक सक्रिय संचालक को चुना गया जो चैम्पियन वीएलई हुए। वे स्थानीय सक्रिय लोग हैं जो सीएससी सेंटर संचालक हैं।
उनसे बात करने पर उनलोंगो ने बताया कि ‘‘पुराने कचरे को हटाकर, बिलकुल नये तरीके से आमुल-चुल परिवर्तन में थोड़ा समय लगता हीं है। पहले के किये गये कार्य लोंगो के सामने है और विगत 8 माह में हमारे द्वारा किये गये कार्य भी सभी के सामने है। हमें अन्य सहयोगी विभागों बीएसएनएल और बीबीएनएल का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है।’’
स्थानीय ग्रामीणों और सीएससी के लोंगो के अनुसार जिन फाइबर केबल को बीबीएनएल को बदलना है उसमें महीने नहीं बल्कि साल लग जा रहे हैं और वे बदले नहीं जा रहे हैं जिससे उन क्षेत्रों में इंटरनेट की समस्या बनी रह रही है। वहीं बिहार में सैकड़ों ऐसे ओएलटी हैं जो बन्द पड़ी हुई है जिससे उन क्षेत्रों इन्टरनेट की समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। इतना हीं नहीं कई ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां बीएसएनएल ने अंडरग्राउंड केबलिंग किया तो जरूर पर अब वह केबल का पता हीं नहीं चल पर रहा है। ऐसे में सीएससी के संचालकों ने कई बार बीएसएनएल के अधिकारियों से केबल को ढूंढने में मदद की गुहार लगाई पर बीएसएनएल का सहयोग नहीं मिल पाया।
हमारी टीम ने स्थानीय स्तर पर बीएसएनएल के लोगों से भी बात करने का प्रयास किया पर उनसे सम्पर्क नहीं हो पाया। कुछ लोंगो से सम्पर्क हुआ भी तो उनका जवाब टाल-मटोल वाला रहा।
ब्यूरो रिपोर्ट / बिहार पत्रिका