रविवारीय- सब कुछ अचानक ही तो होता है — जब जीवन एक क्षण में चुप हो जाता है

सब कुछ अचानक ही तो होता है…

कल तक सब ठीक-ठाक था। कोई चिंता नहीं, कोई अंदेशा नहीं। ज़िंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी — जैसे हर दिन चलता है। पर ये

मनीश वर्मा, लेखक और विचारक

ज़िंदगी… यह कब, किस मोड़ पर किसे चौंका दे, कोई नहीं जानता।
जो भी होता है, अचानक ही तो होता है। कोई आहट नहीं होती है । न वक्त चेतावनी देता है, न जीवन। और हमारे पास वाक़ई कहाँ होता है समय — कुछ समझने, कुछ सोचने या कुछ सँभालने का?

पल भर में दुनिया बदल जाती है।
आप सोचते रह जाते हैं — “कुछ क्षण पहले तो सब कुछ सामान्य था, फिर अचानक से यह क्या हो गया?”
लेकिन वर्तमान अपनी सख़्त और निर्विकार सच्चाई के साथ सामने खड़ा हो जाता है — जैसे एक ठंडा आईना, जिसमें कोई भाव नहीं, केवल यथार्थ है।
आपके विचारों की दिशा पलट जाती है। जीवन को लेकर आपका दृष्टिकोण ही बदल जाता है। सब कुछ अचानक ही तो होता है ।
अभी कुछ देर पहले तक वही शरीर — जिसमें जान थी, धड़कन थी, आवाज़ थी, संवेदनाएँ थीं — अब एक निर्जीव काया बन चुका है।
एक शब्द और सभी निःशब्द । मृत्यु ने आकर सबकुछ शांत कर दिया है।
जो व्यक्ति कुछ घंटे क्या कहें ! कुछ पल पहले तक जीवन का हिस्सा था, अब स्मृति शेष बन चुका है।
अब सभी की निगाहें समय पर टिकी हैं — इंतज़ार है कि यह नश्वर शरीर, जो अब केवल मिट्टी है, जितनी जल्दी हो सके, उसकी अंतिम यात्रा पूरी हो। मिट्टी का शरीर को मिट्टी में ही मिल जाना बदा होता है ।
आत्मा तो शायद कहीं और अपने नए बसेरे की ओर निकल चुकी है, पर अब पीछे रह गए लोग धीरे-धीरे उस शरीर से अपने मोह को तोड़ने लगते हैं।
धीरे-धीरे उनका मोह भंग होने लगता है ।
यही तो जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है —
वो सच्चाई जो किसी किताब में पूरी तरह नहीं उतर सकती।
जिसे केवल अनुभव से, एक झटके से, किसी अपने के जाने से ही समझा जा सकता है।
अब शुरू होती है अंतिम यात्रा की तैयारी —
मिट्टी को मिट्टी में मिलाने की प्रक्रिया।
चिता सजी है।
धीरे-धीरे अग्नि की लपटें तेज़ हो रही हैं। सभी चुपचाप शांत होकर मिट्टी को मिट्टी में मिलते बड़े ही निर्विकार भाव से देख रहे हैं । आप कितने भी सर्वशक्तिमान क्यों न हों, आपके अख़्तियार में कुछ भी नहीं हैं । आप महज़ एक कठपुतली हैं जिसकी डोर कहीं और है ।
कुछ ही समय में सब कुछ भस्म हो जाएगा। कुछ नहीं बचेगा । बचेंगीं तो और सिर्फ़ यादें ।
कुछ घंटे पहले जो ‘व्यक्ति’ था, वह अब राख बन जाएगा।
और फिर…
धीरे-धीरे जीवन पटरी पर लौटने लगेगी ।
लोग अपने-अपने कामों में लग जाएँगे। मशगूल हो जाएँगे अपनी दैनंदिन की ज़िंदगी में ।
जो आज आंखें नम हैं, वे कल किसी और के मुस्कान की वजह बन जाएँगी।
समय सब कुछ सिखा देता है — सहना भी, भूलना भी। जीवन जीना भी । वक़्त कहाँ रूका है किसी के लिए ।
यही हक़ीक़त है।
कड़वी सच्चाई, मगर अटल।

आज किसी और की बारी है,
कल हमारी भी होगी।
इस चक्र से कोई नहीं बचा है — न बच पाएगा।
चिताएँ सजती रहेंगी, जलती रहेंगी । व्यक्ति जो ख़ुद को सर्वशक्तिमान मानने का भ्रम पाले बैठा है देखें कब उसकी सत्ता को चुनौती दे अपनी मुहर लगा पाता है ।
ॐॐॐ

मनीश वर्मा ‘ मनु ‘

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