( कोरोनाकाल की कैद ने उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर स्तंभ लेखन के लिए प्रेरित किया, जिसमें प्रियंका तथा परिजनाें का बहुमुखी योगदान रहा। माता कौशल्या तथा पिता रामकुमार के आदर्शों से प्रेरित होकर रचनात्मक लेखन में पदार्पित हुए डॉ.सौरभ मानते कि भले ही वे कविताएं आदि लिखते रहे हैैं, किंतु साहित्य में दोहा ही उनकी प्रिय विधा रही है। आलेख, निबंध तथा फीचर लेखन उनकी अभिव्यक्ति के अन्य प्रमुख रूप हैं)
करीब डेढ़ दशक पहले हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी ने विद्यार्थियों तथा शिक्षकों के दो वर्गों में काव्य पाठ तथा स्लोगन लेखन प्रतियोगिता के प्रदेशभर से चयनित प्रतिनिधियों को फाइनल मुकाबले के लिए बोर्ड में आमंत्रित किया था, जहां राज्य कवि उदयभानु ‘हंस’ सहित वरिष्ठ रचनाकारों को निर्णायक मंडल में शामिल किया गया था। संयोगवश शिक्षक वर्ग के उक्त दोनों प्रतियोगिताओं में मुझे राज्यभर में प्रथम घोषित किया गया। कार्यक्रम के बाद जलपान के समय छात्र वर्ग के सांत्वना पुरस्कार से अलंकृत एक छात्र ने अपनी कॉपी मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा कि सर अपना पूरा पता लिख दो, मैं आपके लेख व रचनाएं दैनिक ट्रिब्यून सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता रहता हूं। एक सप्ताह बाद ही उस छात्र का पत्र मुझे प्राप्त हुआ कि उनका पहला काव्य संग्रह ‘यादें’ प्रेस में जाने वाला है, कृपया शुभाशीष व संदेश का एक पृष्ठ लिख दें। भिवानी के उनके काव्य पाठ को भूमिका में रखकर मैंने शुभकामनाएंँ प्रेषित कर दीं।
कुछ दिनों बाद संबंधित काव्य संग्रह प्रकाशित होकर पहुंचा, उनके किशोर मन के भाव कविता के रूप में पाकर अभिभूत हो गया, उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु पचास प्रतियांँ भी खरीदीं तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इस बालकवि के हौसलों को रेखांकित भी किया। आज उसी बच्चे को जब एक सफल रचनाकार तथा स्तंभकार के रूप में देखता हूं तो अत्यंत खुशी होती है। डॉ सत्यवान वर्मा सौरभ आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है, एक दोहाकार के रूप में जहां उनकी दोहा सतसई ‘तितली है का खामोश’ के अलावा हजारों दोहे प्रकाशित हो चुके हैं, वह दैनिक स्तंभकार के रूप में राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों संपादकीय पृष्ठों पर पर प्रमुखता से प्रकाशित हो रहे हैं। लेखन की रूचि-अभिरुचि से जुड़ी अर्धांगिनी प्रियंका के जीवन में आने के बाद उनकी लेखकीय साधना व प्रतिभा निरंतर नई धार मिली है। आजकल इस सौरभ दिव्य-दंपति की लेखनी का समसामयिकी पर दैनिक लेखन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणापुंज है। प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इनके स्तंभ अंग्रेजी तथा हिंदी भाषाओं में करीब चार हजार वेबपोर्टल न्यूज़पेपर्स में प्रतिदिन देश और दुनिया में प्रकाशित हो रहे हैं। इससे दोनों की चिंतनशीलता, लेखकीय दक्षता तथा नियमितता के प्रति समर्पण व साधना का ही प्रतिफल कहा जाएगा कि सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर केंद्रित राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहुआयामी लेखन मौलिक सूझबूझ के साथ हो रहा है।
हरियाणा प्रदेश के लिए भी यह गर्व का विषय है कि एक गांव से प्रदेश, देश व दुनिया को चिंतक व विचारक की दृष्टि से देखा जा रहा है। जहां डॉक्टर सत्यवान प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग में वेटरनरी इंस्पेक्टर के तौर पर सेवारत हैं, वहीं परास्नातक कर चुकी मेधावी प्रियंका आजकल शोध की तैयारी में हैं। एक ओर जहां यह जोड़ी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी में जुटी है, वहीं वे दोनों अपने नवाचारी प्रकल्प आरके फीचर्स के माध्यम से स्तंभ लेखन में निरंतर नए आयाम रचते जा रहे हैं।
एक सवाल के जवाब में डॉ. सौरभ बताते हैं कि लिखते तो वे बचपन से ही रहे हैं, किंतु कोरोना काल की कैद ने उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर स्तंभ लेखन के लिए प्रेरित किया, जिसमें प्रियंका तथा परिजनाें का बहुमुखी योगदान रहा। माता कौशल्या तथा पिता रामकुमार के आदर्शों से प्रेरित होकर रचनात्मक लेखन में पदार्पित हुए डॉ.सौरभ मानते कि भले ही वे कविताएं आदि लिखते रहे हैैं, किंतु साहित्य में दोहा ही उनकी प्रिय विधा रही है। आलेख, निबंध तथा फीचर लेखन उनकी अभिव्यक्ति के अन्य प्रमुख रूप हैं।
साहित्य एवं स्तंभ लेखन के लिए उत्तर प्रदेश की राष्ट्रभाषा रत्न पुरस्कार, साहित्य साधक सम्मान के अलावा हिसार के प्रेरणा पुरस्कार, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की भिवानी शाखा तथा आईपीएस मानव मुक्त मानव पुरस्कार से अलंकृत डॉ सौरभ कम उम्र में परिपक्व लेखन से विशिष्ट पहचान बना चुके हैैं। आकाशवाणी दूरदर्शन तथा इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स पर पैनलिस्ट के तौर पर भी उनकी मौलिकता प्रेरक रही है। युवाओं के नाम अपने संदेश में वे कहते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से निष्पक्ष मूल्यांकन करते हुए रचनात्मकता से क्षेत्र विशेष में कार्य करें आपको सफलता अवश्य मिलेगी।
सत्यवीर नाहड़िया
साहित्यकार, हरियाणा
साहित्यकार, हरियाणा
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी और मौलिक हैं)