मनु की अपनी बात- क्रिकेट और हम

मैं कोई भी मैच जहां भारतीय टीम भी खेल रही होती है, टी वी पर बैठ कर लगातार नहीं देखता हूं। क्रिकेट तो बिल्कुल ही नहीं। जुनून

मनीश वर्मा, लेखक और विचारक

रहा है क्रिकेट मेरा। प्यार करता हूं मैं इससे। किस हद तक जुनूनी हूं, शायद मुझे भी नहीं मालूम। किसी ना किसी रूप में हमेशा अपने आप को क्रिकेट से जोड़कर देखा है मैंने। शायद यह मेरा वहम है या फ़िर अंधविश्वास, मुझे ऐसा लगता है कि अगर मैं लगातार टी वी के सामने बैठ कर मैच देखूंगा तो भारतीय टीम मैच हार जाएगी। इसी डर से मैं लगातार बैठकर टी वी पर क्रिकेट मैच चाहे वो टेस्ट हो, एक दिवसीय हो या फ़िर T20 नहीं देखता हूं। डर से कहीं ज़्यादा प्यार करता हूं मैं अपने क्रिकेट से। हार मुझे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं। माशुका है मेरी ये। कैसे इसके बारे में कुछ बुरा सोच सकता हूं। मेरे शब्दों पर मत जाएं। मेरी भावनाओं को समझें।
अभी अभी बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी के लिए भारत अस्ट्रेलिया टेस्ट मैच की श्रृंखला खत्म हुई है। भारत ने यह श्रृंखला 3-1 से गंवा दी। मैच चलने के दौरान जैसा मैंने कहा थोड़ी थोड़ी देर पर सिर्फ मैच का मै अपडेट लेता रहता हूं। अंतिम मैच के दौरान सुबह जैसे ही टीवी खोल कर मैंने देखा अभी तो अब तो वहां ट्राफियां बट रही है ।मुझे जोर का धक्का सा लगा। अरे ! अभी तो इंडिया टीम के चार खिलाड़ी आउट होने बाकी थे। उन्हें भी तो ढेरों रन बनाने थे। हमने तो प्रतिकार भी नहीं किया। उफ्फ तक नहीं कहा। मैंने सपने भी नहीं सोचा था कि भारतीय टीम इतनी जल्दी घुटने टेक देगी। टीम भारत की खेल रही है तो एक भारतीय होने के नाते मुझे बहुत पीड़ा होती है। सभी भारतियों को होती है। शायद मैं अपवाद हूं, जिसे कुछ ज़्यादा तकलीफ़ होती है। दिल पर जो ले लेता हूं। जब भारतीय टीम अपना मैच हार जाती है, तो बहाने तमाम बनाए जाते हैं।
कभी पिच को दोष दिया जाता है, तो कभी मौसम को तो कभी टीम सिलेक्शन को। हमने तो हार को ग्रेसफुली स्वीकार करना ही नहीं सीखा है । कोई प्रोफेशनलिज्म भी है या नहीं ? कभी आपने देखा है ? ऑस्ट्रेलियाई टीम हो, न्यूजीलैंड की टीम हो या फ़िर इंग्लैंड की टीम हो। वो भी हारते हैं, लेकिन हमारी तरह ठीकरा किसी और के सर नहीं फोड़ते हैं।वो बहाने नहीं बनाते हैं। एक प्रोफेशनल की तरह टीम खेलती है। एक दो मैच में उनके भी प्लेयर्स फ्लॉप करते हैं। कहां उनका लंबा फ्लॉप करने का रिकॉर्ड रहा है ? बिल्कुल सीधा और सरल सिद्धांत होना चाहिए। या तो परफोर्म करें या फ़िर दूसरों को मौका दें। क्यों Hero Worship? खेल और देश के उपर हम आपको क्यों रखें। आप शौकिया तौर पर नहीं खेल रहे हैं। आपने देश के संसाधनों का इस्तेमाल किया है और कर रहे हैं औरों की तरह, तो क्यों आपको विशेष दर्जा दिया जाए ? क्यों आपको अन्य खिलाड़ियों के उपर तरजीह दी जाए ?
बहुत ही दुःख की बात है। पांच मैचों की श्रृंखला थी। समय सबका एक जैसा नहीं रहता है। सभी के जीवन में एक बुरा वक्त आता है। खिलाड़ियों के जीवन में भी आता है। अपवाद नहीं हैं वो, पर यह कौन सी जिद है ? हम अपने आप को वक्त ही देना नहीं चाहते हैं! आखिर क्यों ? अब किस बात का डर है आपको ? क्या नहीं है आपके पास ? मान – सम्मान सब कुछ तो है, फ़िर क्या चाहिए ?
पांच मैचों की श्रृंखला और हमारे पास रोटेशन के लिए प्लेयर्स उपलब्ध नहीं।
बहुत दुःख की बात है। इस तरह से हाथ पर हाथ धरे हमारे चयनकर्ता नहीं बैठ सकते हैं। यह सिर्फ और सिर्फ हार और जीत का मसला नहीं है। क्रिकेट तो हमारे यहां धर्म जैसा है। लाखों करोड़ों लोगों की भावनाओं का सवाल है।
श्रृंखला के शुरू होने के समय से ही सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। अपुष्ट ख़बरों के मुताबिक टीम मैनेजमेंट और खिलाड़ियों के बीच में भी एक सौहार्दपूर्ण सामंजस्य नहीं दिख रहा था। टीम मैनेजमेंट,कोच, सपोर्ट स्टाफ और खिलाड़ी कहीं भी एक साथ नहीं दिखाई दे रहे थे। आपको इतना भी ख्याल नहीं रहा कि आप भारत की सरजमीं से बाहर हैं जहां आपको अपने देश की प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखना है।रही सही कसर हमारे वरिष्ठ खिलाड़ियों के परफोर्मेंस ने पुरी कर दी। हम यह भी नहीं कह सकते कि उनके परफोर्मेंस में निरंतरता का अभाव था। सच कहें तो वो खेले ही नहीं। अफ़सोस की बात है इतने बड़े देश में हम अच्छे खिलाड़ी नहीं ढूंढ पा रहे हैं जिससे हमारा बेंच स्ट्रेंथ मजबूत हो। वरिष्ठ खिलाड़ी खुद को येन केन प्रकारेन चुने जाने की प्रक्रिया से अपने आप को अलग रखने की कोशिश करते हैं। क्यों भाई ? जिस खेल ने आपको सब कुछ दिया। मान सम्मान पैसा सबकुछ। क्या आप उन सभी चीजों से परे हैं। कितनी बड़ी विडंबना है यह।
अब वक्त आ गया है कठोर निर्णय लेने का। अब नहीं तो कब! क्या इसी तरह हम अपने लाखों करोड़ों खेलप्रेमियों की भावनाओं से खिलवाड़ करते रहेंगे।
और अंत में – बॉर्डर-गावस्कर ट्राफी के लिए यह श्रृंखला खेली जा रही थी और ट्राफी देने के वक्त मंच पर सिर्फ बॉर्डर साहब उपस्थित थे। गावस्कर की गैरमौजूदगी एक बात होती, पर वो वहां मौजूद थे, पर उन्हें ट्राफी देने के वक्त मंच पर नहीं बुलाया गया। अपमानजनक बात है। अब आप कितने भी तार्किक हो लें ग़लत तो ग़लत ही होता है।

✒️ मनीश वर्मा ‘मनु’

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