संचार क्रांति के इस युग में अब नहीं आती कहीं से भी अपनों की चिट्ठी-पत्री। बदलते दौर में घर से जाते समय अब कोई नहीं कहता कि पहुंतें ही चिट्ठी लिखना। आज की नयी पीढ़ी पत्र लेखन की कला से कोसो दूर है। वास्तव में नयी पीढ़ी यह भी नयी जानती कि डाकिया भी कोई होता है। चैटिंग के इस ज़माने में न ही उसे पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र व लिफाफ की जानकारी है। आज इंटरनेट, फोन व मोबाइल ने अब लगभग चिट्ठी लिखने की परंपरा को समाप्त कर दिया है।…
Read MoreCategory: सम्पादकीय पन्ना
बुजुर्ग हमारे वजूद है न कि बोझ
(बदलते परिवेश में एकल परिवार बुजुर्गों को घर की दहलीज से दूर कर रहें है. बच्चों को दादी- नानी की कहानी की बजाय पबजी अच्छा लगने लगा है, बुजुर्ग अपने बच्चों से बातों को तरस गए है. वो घर के किसी कोने में अकेलेपन का शिकार हो रहें है. ऐसे में इनकी मानसिक-आर्थिक-सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है. महँगाई के आगे पेंशन कम होती जा रही है. आयुष्मान योजना में बुजुर्गों को शामिल कर उनके स्वास्थ्य देखभाल के साथ बुजर्गों के लिए अलग से योजनाएं लाने की सख्त जरूरत है.) हमारे देश में बुजुर्ग तेजी से बढ़ते जा रहे…
Read Moreलड़कियों को लड़कों से कमतर आंकना समाज की भूल है
हमेशा देश में 10वीं और 12वीं कक्षा के रिजल्ट में लड़कियां ही पहले पायदान पर रहती हैं। चाहे आईएएस बनने की होड़ हो, विमान या लड़ाकू जहाज उड़ाने की या फिर मैट्रो चलाने की, लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं। कौन कहता है कि लड़कियां बोझ है? आज की लड़की अपना बोझ तो क्या, परिवार का बोझ भी अपने कंधों पर उठाने की हिम्मत रखती है। बेटों की तरह वह भी पूरी निष्ठा के साथ जिम्मेदारियां संभाल रही है। देश की बेटियां अब सिर्फ सिलाई-…
Read Moreभारत में कैंसर के बढ़ते मामले, समाज के स्वास्थ्य पर बोझ
लोगों को अपने खान-पान के प्रति सचेत रहना चाहिए और किसी न किसी प्रकार का व्यायाम नियमित रूप से करना चाहिए। इसमें योग अहम भूमिका निभाता है। मरीजों को लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और नियमित जांच करानी चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण तंत्र का तत्काल आधार पर पालन किया जाना चाहिए। कैंसर को रोकने के लिए सक्रिय कदम उठाना महत्वपूर्ण है। सरकार को कैंसर की दवाओं की कीमतों को सीमित करना चाहिए क्योंकि ये बहुत महंगी हैं। अंत में, आहार में परिवर्तन कैंसर की रोकथाम में एक बड़ा बदलाव ला सकता…
Read More21 सितंबर – अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस, केवल प्यार ही घृणा को दूर कर सकता है
एक शांतिपूर्ण वातावरण सामंजस्यपूर्ण जीवन सुनिश्चित करता है और आपसी समझ के लिए मार्ग प्रदान करता है। यह समझ बातचीत, चर्चा, क्रॉस-सांस्कृतिक आदान-प्रदान आदि के माध्यम से शांति को और मजबूत करती है। इस प्रकार एक पुण्य चक्र बनाया जाता है। दूसरी ओर, यदि बल द्वारा शांति थोपी जाती है, तो प्रतिस्पर्धी व्यक्तियों, समूहों, राज्यों आदि के बीच अविश्वास और शत्रुता की भावनाएँ पैदा होंगी। यहाँ कोई भी छोटी-सी गलतफहमी संघर्ष में बदल सकती है, जिससे परस्पर विरोधी दलों को नुकसान हो सकता है। इसलिए यह स्पष्ट है कि लंबे…
Read More