सहरसा, बिहार। बिहार प्रदेश के सहरसा जिले में प्रसिद्ध महिषी ग्राम में माँ उग्रतारा का सिद्धपीठ विद्यमान है। वहाँ तारा, एकजटा तथा नीलसरस्वती की तीनों मूर्तियों एक साथ हैं। मध्य में बड़ी मूर्ति व दोनों तरफ छोटी मूर्तियाँ हैं। बाबा-भागलपुर वर्ष 1998 से निरन्तर इस शक्ति स्थल पर साधना हेतु समय-समय पर जाते रहते हैं। चूंकि बाबा-भागलपुर का माँ उग्रतारा के प्रति श्रद्धा-भक्ति ही अद्भुत है। इसी क्रम में 14 अक्टूबर 2020 (बुधवार) को माता उग्रतारा शक्ति स्थल पर पहुँच कर बाबा-भागलपुर ने दर्शन-पूजन कर माता उग्रतारा से याचना कि हे माता! विश्व मानव समुदाय का कल्याण हो, शीघ्रताशीघ वैश्विक महामारी कोरोना का शमन हो तथा बिहार विधानसभा का चुनाव निष्पक्ष व शान्तिपूर्वक ढंग से सफल हो।
माँ तारा का उग्र रूप ही उग्रतारा
घण्टों तपस्या के बाद बाबा-भागलपुर उग्रतारा स्थान, महिषि, सहरसा से अपने साधना स्थल, भागलपुर के लिए प्रस्थान कर गये। माता उग्रतारा के सम्बन्ध में बाबा-भागलपुर ने बतलाया कि माँ तारा का उग्र रूप ही उग्रतारा है। तारा महाविद्या साधना दुर्गा तंत्र में दस महाविद्याओं को शक्ति के दस प्रधान स्वरूपों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। ये दस महाविद्याएँ हैं श्रीकाली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा श्रीबग्लासिद्धिविद्या च मातंगी कमलात्मिका एता दशमहाविद्या: सिद्धि विद्या प्रकीर्तिता:।।
महाविद्याओं को दो कुलों में बांटा गया है….
महाविद्याओं को दो कुलों में बांटा गया है:- पहला काली कुल तथा दूसरा श्रीकुल। काली कुल की प्रमुख महाविद्या है तारा। इस साधना से कुछ भी असम्भव नहीं है। इस महाविद्या के साधकों में जहाँ महर्षि वशिष्ठ जैसे प्राचीन साधक रहे हैं, वहीं वामाखेपा जैसे साधक वर्तमान युग में बंगाल प्रांत में हो चुके हैं। विश्व प्रसिद्ध तांत्रिक तथा लेखक गोपीनाथ कविराज के आदरणीय गुरुदेव स्वामी विशुद्धानंद जी तारा साधक थे। इस साधना के बल पर उन्होंने अपनी नाभी से कमल की उत्पत्ति करके दिखाया था।
कोरोना के शमन हेतु मौनव्रत साधना
यहाँ यह कहना उचित प्रतीत हो रहा है कि अन्तररार्ष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग्य शोध केन्द्र बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौंधरी उर्फ बाबा-भागलपुर 24 मार्च 2020 से अनवरत 03 अगस्त 2020 तक वैश्विक महामारी कोरोना के शमन हेतु मौनव्रत साधना में थे। इनकी एक के बाद एक यानी अनेकानेक भविष्यवाणी सही हुई और इतिहास के पन्ने में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गई। ऐसे में कह सकते हैं कि बाबा-भागलपुर की भविष्यवाणी को ऐसा गौरव मिला जिसे इतिहास कभी भूला नहीं सकेगा।