जगतपति की वीरता और बहादुरी को बयां कर रहा पटना का शहीद स्मारक
औरंगाबाद । 1942 की अगस्त क्रांति के दौरान पटना में बिहार विधानसभा के सामने 7 शहीदों में एक ‘औरंगाबाद गौरव ‘ जगतपति कुमार के शहादत दिवस के अवसर पर उन्हें 11 अगस्त को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाएगा और ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस समेत विभिन्न संगठनों द्वारा ‘शहीद जगतपति के सम्मान में ‘ कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा |
जिले में उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण तथा श्रद्धा सुमन अर्पित करने के कार्यक्रम को लेकर गत रविवार की रात ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस के राष्ट्रीय प्रवक्ता कमल किशोर की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई । बैठक में निर्णय लिया गया कि कार्यक्रम की शुरुआत औरंगाबाद नगर भवन परिसर तथा रमेश चौक के निकट शहीद जगतपति की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण से होगी और इसके बाद संस्था से जुड़े लोग 21 चारपहिया वाहनों से उनके पैतृक गांव खरांटी (ओबरा ) जायेंगे । जगतपति पार्क में उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे ।
इस मौके पर शहीद जगतपति के सम्मान में पौधारोपण भी किया जाएगा । इस बैठक में महासभा के महासचिव अजय कुमार वर्मा, प्रान्तीय सचिव अजय श्रीवास्तव, महेन्द्र प्रसाद सिन्हा, मधुसूदन प्रसाद सिन्हा, सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव राजू रंजन सिन्हा, चिकित्सा प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव राजेश सिन्हा, कोषाध्यक्ष सूर्यकांत सिन्हा, श्रीराम अम्बष्ट, अभय सिन्हा , सुनील सिन्हा, सुनील कुमार, मुकेश सिन्हा, अनिल वर्मा, प्रशांत कुमार सिन्हा, संजीव सिन्हा के अलावे ग्लोबल कायस्थ कांफ्रेंस के जिला मीडिया प्रभारी दीपक बलजोरी मौजूद थे।
औरंगाबाद में उनके नाम पर एक भी संस्थान का नहीं होना दुखद
गौरतलब है कि 11 अगस्त 1942 को देश की आजादी की लड़ाई के क्रम में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बिहार विधानसभा के सामने अपने छह अन्य साथियों के साथ झंडा फहराने जाते हुए जगतपति कुमार अंग्रेजों की गोलियों से शहीद हो गए थे । पटना में बिहार विधानसभा के सामने शहीद स्मारक आज भी उनकी बहादुरी, वीरता तथा आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को बयां कर रहा है। उस वक्त जगतपति कुमार बीएन कॉलेज पटना के स्नातक के द्वितीय वर्ष के छात्र थे और आजादी की लड़ाई में अपने साथियों के साथ विशिष्ट योगदान दे रहे थे ।जीकेसी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने बताया कि आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति दे देने वाले शहीद जगतपति को पूरे राज्य और अपने गृह जिले में जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पाया है । औरंगाबाद जिला मुख्यालय में उनकी स्मृति में एक भी संस्थान का नहीं होना अत्यंत दुखद है ।