(अनुभव की बात, अनुभव के साथ)
आंध्र प्रदेश कि सरकार ने सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हुए दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना एक्ट के तहत सीबीआई को राज्य के भीतर जांच के लिए दी गई शक्ति को खत्म कर दिया है। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने भी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के रास्ते पर चलते हुए शुक्रवार को बंगाल में किसी भी मामले की जांच के लिए सीबीआई को राज्य सरकार से अनुमति लेने की अधिसूचना जारी कर दी है।इस अधिसूचना के बाद दोनों प्रदेश में किसी भी मामले की चल रही सीबीआई जांच प्रभावित होने की पूरी संभावना है।दोनों राज्यों में अधिसूचना जारी होने के बाद अब हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट से आदेश मिलने के बाद ही सीबीआई को सरकार से आदेश लेने की आवश्यकता नहीं होगी। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा है कि देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई अब भरोसे के लायक नहीं रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी चंद्रबाबू नायडू की बातों में अपनी सहमति जताई है।
सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने- अपने तरीके से अपनी- अपनी दलील दे रहे हैं। आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। इन सब को देखकर सर्वोच्च न्यायालय का वह बयान याद आता है जब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ” सीबीआई पिंजरे का बंद तोता है।” ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब सीबीआई पर उंगली उठ रही है। वर्षों से सीबीआई पर केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे हैं। परंतु इस बार मामला काफी गंभीर नजर आ रहा है। सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।मीट कारोबारी मोइन कुरैशी सहित कई अन्य लोगों से सीबीआई के संबंध होने और उससे जाँच प्रभावित होने के आरोप लग रहे हैं।
वहीं कांग्रेस ने इस पूरे मामले को राफेल से जोड़ दिया है। राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि सीबीआई चीफ आलोक वर्मा राफेल घोटाले के कागजात इकट्ठा कर रहे थे, इसलिए जबरन उन्हें छुट्टी पर भेज कर जांच को प्रभावित किया गया है। भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को लेकर भी राहुल गांधी ने सरकार और सीबीआई पर उंगली उठाई है। राहुल ने कहा कि सरकार की मिलीभगत से सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर ए के शर्मा ने लुकआउट नोटिस को कमजोर किया।
सीबीआई पर उंगली उठाने वालों की लिस्ट काफी लंबी है। देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी अब आमजन के भरोसे के लायक भी नहीं रही, जो काफी खतरनाक है। सीबीआई का अस्तित्व खतरे में है। सीबीआई की विश्वसनीयता बहाल करने के लिए जो कुछ भी संभव हो वह सरकार को करना चाहिए। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि भविष्य में कुछ और प्रदेश भी आंध्र प्रदेश और बंगाल की तरह का फैसला ले सकते हैं और अपने प्रदेश में प्रवेश के लिए सीबीआई को रोक सकते हैं।जो देश हित में कदापि अच्छा नहीं होगा।