( अनुभव की बात, अनुभव के साथ )
जन्म लेने के बाद बच्चे जब नासमझ ही होते हैं या उन्हें थोड़ी बहुत समझ होती है। तभी से हम उनको, उनके कुछ शारीरिक अंगों को लेकर ऐसा कुछ कह देते हैं, ऐसा कुछ कर देते हैं कि बच्चा उन शारीरिक अंगों को सार्वजनिक रूप से छूने में,खुजलाने में या फिर कोई समस्या होने पर उनके बारे में बात करने में संकोच महसूस करता है। हम ऐसा कुछ करने पर “गंदी बात” कह कर बच्चे को समझाते हैं, डाँटते हैं। फिर यहीं से समस्या शुरू हो जाती है, जो आगे चलकर बच्चे के जीवन में काफी उथल-पुथल मचा देती है। इसका नाजायज फायदा परिवार के, समाज के वह लोग उठाते हैं जो गलत मानसिकता वाले होते हैं। उन्हें यह लगता है कि यदि हम बच्चे के साथ कुछ गलत करते भी हैं तो यह कहेगा क्या, यह करेगा क्या ?
शारीरिक शोषण सिर्फ लड़कियों का होता है ऐसा नहीं है। शारीरिक शोषण मेल चाइल्ड का भी होता है, वह भी गलत मानसिकता वाले लोगों का शिकार बनते हैं। फर्क यह है कि लड़कियों के मामले में समाज ज्यादा सक्रिय है। वह मामले चर्चा में होते हैं, लेकिन मेल चाइल्ड के मामले दब जाते हैं। इसलिए कि वह बच्चा कल को समाज में मजाक का पात्र ना बन जाए।
इस गंभीर विषय पर बिहार के बांका जिले के रहने वाले युवा फिल्म निर्देशक शिवप्रिय आलोक एक फिल्म का निर्माण कर रहे हैं। फिल्म का नाम है “गंदी बात”। शिवप्रिय आलोक बताते हैं कि बचपन में वह जब एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे, तब वह इस दुर्घटना के शिकार हुए थे। जिस वजह से काफी लंबे समय तक वह डिप्रेशन में रहे। इस दुर्घटना से उबरने में उन्हें बीस-बाइस साल लग गए।शिवप्रिय आलोक ने बताया कि 2007 में महिला बाल कल्याण विभाग का एक सर्वे आया था। जिसमें बताया गया था कि यदि एक सौ बच्चे यौन शोषण का शिकार होते हैं, तो उनमें 53 लड़के होते हैं जबकि 47 लड़कियां होती है। आज से ग्यारह साल पहले का यह सर्वे हमें चौंकाता है। निश्चित रूप से वर्तमान सर्वे और भी बुरी स्थिति को दर्शाने वाला होगा। दूसरी ओर सरकार ने भी लड़कों के मामले में कानून को थोड़ा लचीला बनाया हुआ है, जबकि लड़कियों के मामले में सख्त।
खैर उससे क्या ? कानून बनाना एक बात होती है , जबकि कानून का सही रूप से पालन होना अलग बात होती है।मुझे नहीं लगता कि कानून के सहारे हम इस मानसिकता को बदल पाएंगे। कानून तो हमने काफी सख्त बना दिए हैं,लेकिन फिर भी यौन हिंसा के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसके लिए निश्चित रूप से समाज को जागना होगा। समाज के हर शख्स को जागना होगा। इस प्रकार की घटना को अंजाम देने वालों का सामाजिक रूप से, पारिवारिक रूप से बहिष्कार होगा। तभी कुछ सुधार की संभावना नजर आती है।