सामाजिक समरसता की ज़ुबान है चौहर

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सत्ता के गलियारों में सामाजिक समानता की बात सालों से होती आ रही है, किन्तु जैसे ही हमारे जन-प्रतिनिधि सत्तासीन होते हैं, उनको सांप सूंघ जाता है। वह जनता से किये गये अपने वादे या तो भूल जाते हैं या फिर कुर्सी उन्हें अपने मोहपाष में जकड़ लेती है।
बहरहाल, तमाम अवरोधों और विरोधों को झेलने के पष्चात् आज जब हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म-‘चौहर’ दर्षकों तक पहॅुची है, तो उन्होंने इस फ़िल्म को सर ऑंखों पर बिठा लिया। षुक्रवार को रीलिज़ हुई इस फ़िल्म के माध्यम से सामाजिक समरसता का संदेष देने की कोषिष की गई है। थियेटर से निकले दर्षकों की यही प्रतिक्रया है कि ऐसी फ़िल्में सालों बाद आती हैं जो कि निष्चित रुप से किसी न किसी पुरस्कार का हक़दार है।
विदित हो कि फ़िल्म ‘चौहर’ के निर्माता श्री दिनकर भारद्वाज बेगूसराय के एक प्रसिद्ध व्यवसायी हैं, जिनकी स्वयं की छवि जनमानस में एक भले मानुष की है। इस फ़िल्म के निर्माण से इसके प्रदर्षन तक उन्हें कई सारे झंझावातों का सामना करना पड़ा। यहॉं तक कि उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई। फ़िल्म के प्रदर्षन से ठीक पहले पटना हाईकोर्ट में इसके प्रदर्षन के ख़िलाफ़ याचिका दायर की गई जिसमें कहा गया कि इस फ़िल्म में एक जाति विषेष को टार्गेट किया गया है और उसे सरेआम गाली दी गई है। हाईकोर्ट ने तत्काल ही उस याचिका पर संज्ञान लेते हुए अपना फ़ैसला सुनाया कि किस फ़िल्म में कौन से दृष्य और संवाद रहेंगे, इसका निर्णय सेंसर बोर्ड करता है।
अब आइए, एक नज़र इस फ़िल्म की कथानक पर डालते हैं जिसके चलते इतना बड़ा बवाल पैदा हो रहा है। ‘दलितों के देवता’ के रुप में अवतरित ‘बाबा चौहरमल’ की लोकगाथा से प्रेरित है, इस फ़िल्म की कहानी। बाबा चौहरमल की गाथा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी अपने समय में हुआ करती थी। समाज में दलितों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार, जिसमें कि ना तो उन्हें बराबरी का दर्ज़ा प्राप्त है और ना ही मानव मात्र से प्रेम करने का अधिकार। बस इसी कथावस्तु को आधार बना कर एक साफ़-सुथरी और सम्पूर्ण रुप से पारिवारिक फ़िल्म बनाई गई है, ‘चौहर’।
इस फ़िल्म के निर्देषक रघुबीर सिंह जी का कहना है कि इसके माध्यम से वह समाज में एक जागरुकता लाना चाहते हैं जिससे लोगों में आपसी मेल-जोल बढ़े, ऊॅंच-नीच का भेदभाव मिटे और सबसे बड़ी बात कि दलितों को उनका मानवीय हक़ मिले। यद्यपि इस फ़िल्म का बजट बहुत बड़ा नहीं है और ना ही इसमें बड़े सितारे हैं फिर भी ये फ़िल्म सभी स्तरों पर एक गहरी छाप छोड़ती है। बात चाहे निर्देषन की हो या छायांकन की, अभिनय की हो या गीत-संगीत की, हर दृष्टिकोण से फ़िल्म ‘चौहर’ बड़े बजट वाले फ़िल्मों के इस दौर में अपना एक मुकाम हासिल करने में सक्षम है।
फ़िल्म के लेखक रुपक शरर का कहना है कि जहॉं दलितों के दर्द की दास्तान है, चौहर…वहीं सामाजिक समरसता की ज़ुबान है चौहर। रुपक की मानें तो ऐसी फ़िल्मों का भविष्य दूसरे सप्ताह से तय होता है, जब दर्षकों के माध्यम से लोगों तक इसका संदेष पहुॅंचता है।
कलाकारों में चौहर बने अमित कष्यप, रिचा दीक्षित, विवेकानन्द झा, अमर ज्योति, रतन लाल और विजय सिंह पाल इन सबने बेहतरीन अभिनय का नमूना पेष किया है। इनके अभिनय से फ़िल्म में कहीं से भी बड़े सितारों की कमी नहीं खलती है। डॉ. अष्विनी कुमार ने कर्णप्रिय संगीत तैयार किया है जिसे अपनी सुमधुर आवाजें दी हैं- सुरेष वाडेकर, साधना सरगम और ऐष्वर्य निगम ने। गीत के बोल लिखे हैं- प्रफुल्ल मिश्रा, सुधीर-सरबजीत और स्व. राजेष जौहरी ने।

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