प्रदेश की राजनीति से खत्म हो गया कास्ट फैक्टर ?

(अनुभव की बात,अनुभव के साथ)

अब जबकि 17वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आ चुके हैं, बड़े नेता से लेकर कार्यकर्ताओं तक में इस परिणाम की चर्चा हो रही है।एक ओर जहां राजग प्रत्याशियों के समर्थकों का उत्साह चरम पर है, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशियों के समर्थक सदमे में हैं। चुनाव विश्लेषकों से लेकर बड़े-बड़े चुनावी पंडित भी इस चुनाव परिणाम से अचंभित हैं। हो भी क्यों नहीं, प्रदेश की कुल 40 लोकसभा सीटों में विपक्ष के हिस्से में मात्र किशनगंज की एक सीट आई है। जबकि बाकी के 39 सीटों पर राजग ने बाजी मार ली है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए हथियार उठाने की बात करने वाले रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी की हम, मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, अरुण कुमार सिंह, कम्युनिस्ट पार्टियां, शरद यादव समेत राष्ट्रीय जनता दल का प्रदेश में खाता भी नहीं खुल सका।

चुनाव परिणाम को देखकर एक बात की तो खुशी हो रही है कि पिछले करीब चार दशकों के बाद प्रदेश के मतदाताओं ने जाति और धर्म के नाम पर मतदान नहीं किया। प्रदेश के मतदाताओं ने जातीय तिलिस्म को तोड़कर मतदान किया। प्रदेश के मतदाताओं ने राजनेताओं को यह चेतावनी दे दी है कि अब हम जाति और धर्म के नाम पर नहीं लड़ेंगे। जाति के नाम पर राजनीति कर के राजनेता अपना तो विकास कर लेते हैं,परंतु उनके भाई,बंधु और समाज के लोग जहां के तहां ही रह जाते हैं।

प्रदेश में यदि लालू प्रसाद यादव ने 15 वर्षों तक शासन किया तो ये जातीय समीकरण की बदौलत ही संभव हो सका। उसके बाद के चुनावों में भी ऐसा ही कुछ नजर आता रहा है।

उपेंद्र कुशवाहा,जीतन राम मांझी,पप्पू यादव,मुकेश साहनी समेत कई अन्य राजनेता हैं जिन्होंने खुद को अपनी जाति का रहनुमा बनाने का प्रयास किया।लेकिन इस चुनाव में जनता ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया।

बिहार के लिए यह शुभ संकेत है।यदि हम प्रदेश के तमाम लोकसभा सीटों की बात करें तो साफ तौर पर यह नजर आता है कि मतदाता जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर उठ चुके हैं। प्रदेश के मतदाता अब होशियार हो चुके हैं।बीते दशकों में हमने प्रदेश में कई जातीय नरसंहार देखा है।हमने नरसंहार में सैंकड़ों को मरते देखा है। हमने देखा है कि राजनेता जाति और धर्म के नाम पर समाज को बांटकर कैसे अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं। पूरे देश में बिहार और उत्तर प्रदेश इसके लिए हमेशा से बदनाम रहा है। बिहार के माथे पर यह बदनुमा दाग रहा है, लेकिन 17 वीं लोकसभा के चुनाव में बिहार वासियों ने इस कलंक को अपने माथे से धो दिया,लगता है। निश्चित रूप से समस्त बिहारवासी इसके लिए बधाई के पात्र हैं।उम्मीद है कि जाति और धर्म के बंधन को तोड़ता बिहार अब विकास की नई गाथा लिखेगा और आने वाले चुनावों में भी अपने इस संकल्प पर खड़ा उतरेगा।

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