पटना साहिब संग्राम – एसी कमरे में भी चल रहे हैं उम्मीदवारों के पसीने, रोमांचक लड़ाई को अपने पाले में करने की आखिरी कोशिश

जब देश के कद्दावर नेता एक सीट से चुनाव लड़ रहे हों, और उस पर भी दोनो ऐसे नेता जो एक हीं समाज से हों, और उसी समाज के वोट पर हार-जीत का ठीकरा हो तो निश्चय हीं स्थिति काफी रोमांचक हो जाती है। वैसे तो अभी मौसम गर्म है, परन्तु पटना साहिब का तापमान एसी कमरे में भी पसीने चलाने के लिए काफी है।
पिछले दो चुनावों में भारी मतों से जीत हासिल करने वाले सिने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा क्या इस बार जीत की हैट्रीक लगा पायेंगे ? हालांकि यह कहना बहुत मुश्किल का काम होगा। भाजपा की ओर से इस चुनाव में दमदार केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद हैं।

भाजपा के रविशंकर प्रसाद जहाँ अपनी सरकार के द्वारा किये गये विकास के कार्यों और पीएम नरेन्द्र मोदी की छवि और राष्ट्रभक्ति को लेकर मैदान में हैं, तो वहीं दुसरी ओर भाजपा के पुराने दिग्गज और वर्त्तमान में कांग्रेस के उम्मीदवार शत्रुध्न सिन्हा अपनी दमदार छवि और अपने लोकसभा क्षेत्र में किये कार्यों को लेकर मैदान में हैं।
कायस्थ बहुल पटना साहिब की सीट रविशंकर प्रसाद के लिए बहुत आसान दिखती है। इसका पहला कारण तो यह है कि यह सीट भाजपा की परम्परागत सीट रही है। पिछले कई चुनावों से यह सीट भाजपा के खाते में है। पर जैसे-जैसे चुनाव की तिथि नजदीक आ रही है वैसे-वैसे स्थितियाँ बदलने लगी हैं। कांग्रेस प्रत्याशी शत्रुध्न सिन्हा ने अपनी पुरी ताकत झोंक दी है।
कांग्रेस को शत्रुध्न सिन्हा के रूप में एक दमदार उम्मीदवार मिला है जिसे वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहेगी। यही कारण है कि प्रचार के अंतिम दौर में कांग्रेस के बड़े नेताओं के रोड शो के अतिरिक्त विभिन्न जगहों पर सभाएँ और बैठकों का आयोजन किया।

दुसरी ओर भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी पटना साहिब में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और फायर ब्रान्ड नेता योगी आदित्यनाथ, भोजपुरी फिल्मों के सभी भाजपा समर्थित स्टार को मैदान में उतार दिया गया। भाजपा ने एक कलाकार के खिलाफ सभी कलाकारों को उतार कर शत्रुघ्न सिन्हा को यह बताने का कार्य किया कि ‘‘तु डाल-डाल, तो मैं पात-पात’’। हालांकि एक स्टार होने के बावजूद भी शत्रुघ्न सिन्हा के पक्ष में किसी फिल्मी सितारे ने कोई कार्यक्रम नहीं किया।
भाजपा के बैक बोन उनके दल के हजारों कार्यकर्त्ता हैं जो निःस्वार्थ भाव से अपने प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद के लिए कार्य कर रहें है। पर्ची बांटने से लेकर जनसम्पर्क अभियान तक में सभी जगह भाजपा के लोग कांग्रेस से आगे हैं। पुरे लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने विधानसभा क्षेत्रों में अधिकतर भाजपा के हीं विधायक हैं। सभी विधायक अपनी तरफ से एड़ी-चोटी लगायें हुए हैं।

वहीं दुसरी ओर शत्रुघ्न सिन्हा का नाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए संजीवनी का काम कर रहा है। सुसप्तावस्था में पड़े कांग्रेसियों में एक जान आ गयी है। यही कारण है कि पिछले चुनावों के मुकाबले इस चुनाव में किये जा रहे प्रचार में दमखम लगाया जा रहा है। यहाँ रविशंकर प्रसाद के लिए एक झटके की खबर यह है कि पटना नगर निगम के कायस्थ पार्षदों का झुकाव शत्रुघ्न सिन्हा की तरफ दिख रहा हैं, जो पार्षद शहरी वोटरों को बांटने का कार्य कर सकते हैं। ये सभी पार्षद कायस्थ बहुल क्षेत्रों से आते हैं और इनकी पकड़ भी काफी मजबूत है। दबंग अजय वर्मा खुल कर शत्रुघ्न सिन्हा के साथ नजर आ रहे हैं। अजय वर्मा अपने स्वयं के बलबूते अपने परिवार के सदस्य को न सिर्फ पार्षद बनावाने का दम रखते हैं बल्कि अन्य पार्षदों के चुनाव में भी अपनी प्रभाव छोड़ते हैं।

पटना नगर निगम के पूर्व उपमहापौर और पटना साहिब विधान सभा में पूर्व में राजद के उम्मीदवार संतोष मेहता भी अपने क्षेत्र में भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं।


इधर कायस्थ संगठनों की बैठकों में राष्ट्रीय स्तर के कायस्थ नेताओं सुबोधकान्त सहाय, यशवन्त सिन्हा भी लगातार शामिल हो रहे हैं। वीआईपी पार्टी के मुकेश साहनी के द्वारा रोड शो कर शत्रुघ्न सिन्हा के पक्ष में एक खास जाति के वोटों को अपनी ओर करने में कितना सफल हो पायेंगे ये कहना मुश्किल है, पर यह भाजपा के उम्मीदवार के लिए चिन्ता की बात हो सकती है।
वैसे तो परिणाम 23 मई को आने वाला है पर स्थितियाँ बहुत कुछ 19 मई को स्पष्ट हो जायेंगी। यदि शहरी क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत कम और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक हुआ तो यह भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। क्योंकि शहरी क्षेत्रों में भाजपा की जीत का अंतर अधिक रहता है और यही अंतर लोकसभा चुनाव में सभी क्षेत्रों पर भारी पड़ता है। भाजपा को चुनाव जीतना है तो सचेत रहना पड़ेगा। उन्हें मोदी समर्थक मतदाताओं को किसी भी प्रकार वोट देने के लिए घरों से निकालना पड़ेगा।
परिणाम जो भी हो पर पटना साहिब की जनता को इतना तो संतोष जरूर हो रहा होगा कि दशकों से हवा-हवाई चुनाव देखने के बाद इस बार चुनाव में उम्मीदवार या उनके समर्थक इस भीषण गर्मी में भी उनके दरवाजों तक तो पहुँच हीं रहे हैं।

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