( अनुभव की बात, अनुभव के साथ )
कुछ राज्यों को छोड़ दें तो लगभग पूरे देश में दुर्गा पूजा का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। मंगलवार रात्रि सप्तमी के दिन हर जगह पूजा पंडालों में माता के दर्शन के लिए पट खोल दिया गया। पट खुलते ही माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लग गई। जय माता दी के नारों से पूजा पंडाल गूंज उठे। लाउडस्पीकर पर भक्तिमय गानों से माहौल भक्तिमय हो गया है। कल नवमी के दिन हर जगह कुमारी कन्याओं को माता का रूप मानते हुए उनकी पूजा की जाएगी और उन्हें भोजन करवाया जाएगा।
वहीं दूसरी ओर केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को भगवान अयप्पा के दर्शन करने देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य में घमासान मचा हुआ है। बताते चलें कि सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश निषेध है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस आयु वर्ग की महिला श्रद्धालुओं को भी मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आदर करते हुए सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की हरी झंडी दे दी है।
महिलाओं का सम्मान और उत्थान करने का दम्भ भरने वाली भारतीय जनता पार्टी की केरल इकाई ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए राज्य में धर्म के नाम पर राजनीति शुरू कर दी है। भारतीय जनता पार्टी की केरल इकाई का यह मानना है कि मंदिर में 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश निषेध होना ही चाहिए। जैसी की परंपरा चली आ रही है। यह भारतीय जनता पार्टी की महिला संबंधी मानसिकता को दर्शाता है। राज्य की भाजपा इकाई ने इस पर पुनर्विचार करने के लिए राज्य सरकार को कल चौबीस घंटे का अल्टीमेटम भी दिया हुआ है। राज्य की कुछ जनजातियाँ भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रही है।
वहीं भगवान अय्यप्पा के हजारों महिला भक्त उनके दर्शन के लिए शांतिपूर्वक मार्च कर रही हैं।वर्तमान स्थिति काफी तनावपूर्ण है। केंद्र सरकार समेत तमाम महिला संगठन और मानवाधिकार संगठन इस मुद्दे पर मौन है। सुषमा, मेनका और स्मृति जैसी भाजपा नेत्री मौन हैं। कहने को एक ओर हम महिलाओं को बराबरी का हक देते हैं, लेकिन जब बात व्यवहार की आती है तो वहां पुरुषवादी मानसिकता हावी हो जाती है।
क्या ऐसे भी कोई भगवान हो सकते हैं जिन्हें 10 से 50 वर्ष की महिलाओं से नफरत हो ? नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता।निश्चित रूप से ये परम्परा किसी सनकी पुरूष के द्वारा बनाई गई होगी, जिसका निर्वाह आज तक हो रहा है।समय के साथ आज वक्त है कि इस परंपरा में बदलाव हो।सुप्रीम कोर्ट ने तो अपना फैसला दे दिया है, अब आवश्यक है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर इस फैसले को बहाल करे।नवरात्रि की सही पूजा तभी हो पाएगी ,जब हम महिलाओं को उचित सम्मान दे पाएंगे।न्यायालय के फैसले का विरोध करने वाले को सोंचना होगा कि भक्त से ही भगवान होते हैं, भगवान से भक्त नहीं।