“बात करती शिलाएं” कवयित्री, प्राध्यापिका, संगीत में रची बसी डॉ नीलम श्रीवास्तव जी का गीत संग्रह मेरे हाथों में है।
प्रायः पारंपरिक शैली में रचे गए इन गीतों को पढ़ते हुए अनायास ही अधरों पर गुनगुनाहट उभर आती है।
“बात करती हैं शिलाएं, मुस्कुराती हैं दिशाएं
प्रीत के संगीत पर जब, नृत्य करती कामनाएं”
ऐसी पंक्तियों को पढ़ते हुए सहज ही ध्यान में आ जाता है सर्वज्ञाता प्रभु, भगवान राम का व्याकुल प्रश्न
“हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी
तुम देखी सीता मृगनयनी”
प्रेम तो निर्जीव में भी गति, भाव, लय, ताल जगा देता है और नीलम श्रीवास्तव जी के अधिकांश गीतों में निबद्ध राग भाव किसी बैरागी के मनमानस में भी प्रेम के प्रति भावनात्मक आलोड़न उतपन्न करने में सर्वथा सक्षम हैं।
“रागिनी थी बजी स्वप्न में गीत की घुंघरुओं की झनक में थी लय प्रीत की
किन्तु –
शूल ऐसे चुभे पग थिरक ना सके
गान की अब कसक दिल में पलती नहीं।
इन गीतों का छंद विधान निर्दोष है और कसे हुए शिल्प के चलते इनमें एक सहज प्रवाह, एक रवानी है। भाषा प्रायः शुद्ध, प्रांजल और मोहक है, यह आजकल कम ही कवियों के गीतों में देखने को मिलता है।
प्रेम गीतों के अतिरिक्त मानवीय मूल्यों से जुड़े, अपने राज्य बिहार, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के प्रति, महाप्राण निराला के प्रति, योग की महत्ता, संस्कृत भाषा, भक्ति गीत, कारगिल के शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि, राष्ट्रीय सामाजिक विसंगतियों के प्रति, देशभक्ति आदि विषयों पर कुल चौंसठ गीत इस संग्रह में सम्मिलित हैं।
संग्रह की विस्तृत भूमिका श्री ओम नीरव ने लिखी है और फ्लैप पर कवयित्री ने मेरे लिखे संक्षिप्त लेख को स्थान दिया है।
समीक्षा प्रकाशन से प्रकाशित कुल 118 पृष्ठ के इस गीत संग्रह का मूल्य रुपये एक सौ पचास रखा गया है।
मुझे आशा है कि इस गीत संग्रह को पाठकों का भरपूर स्नेह प्राप्त होगा।
अनन्त शुभकामनाएं
डॉ सरिता शर्मा
पुनश्च : मेरे प्रिय ग़ज़लकार श्री Astitwa Ankur नीलम जी के पुत्र हैं।