बांग्लादेशी महिला की वतनवापसी के इस मामले पर मैंने 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे के अगले दिन यानी 15 फरवरी को पहल की थी क्योंकि “हर जरुरतमंद” का भी मैं वैलेंटाइन हूँ और वो मेरे।
यह 16 फरवरी 2020 का दैनिक “हिन्दुस्तान”,पटना की खबर है।दूसरी खबर “दैनिक आईनेक्स्ट”,पटना (20 फरवरी)की है।(सभी प्रमुख समाचार पत्रों में मेरे इस मिशन की खबर आई थी।इन समाचारपत्रों का उल्लेख सिर्फ प्रसंगवश किया जा रहा है।)
इस मामले में पहल करने के लिये दैनिक “हिन्दुस्तान” की रिपोर्टर सविता ने अनुरोध किया था-आप उसे वापस करवा सकते हैं सर!लोगों का यह भरोसा ही मुझे “विशाल दफ्तुआर” बनाता है।
देवों के देव “महादेव” और माता “पार्वती” ने मुझ जैसे अदना सा इंसान को “बेताज बादशाह” बना कर “महर्षि दधीचि” की तरह जनकल्याण और जरूरतमंदों की मदद के लिये मेरे जीवन को समर्पित करवा दिया है।
मेरे नेतृत्व में वैश्विक स्तर की संस्था “ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन-एचआरयूएफ ने अपने इस तीसरे ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय मिशन में डंके की चोट पर जबरदस्त सफलता प्राप्त की।
बांग्लादेश सरकार ने लिखित में न सिर्फ हमारे काम की तारीफ की बल्कि इस कार्य के कार्डिनेशन की सारी जिम्मेदारी भी मुझे दे दी।मेरे पास मेरे नाम से भेजे गये पत्र की कापी को सेक्रेट्री गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय,नई दिल्ली को भेजा गया जो कि मेरे लिये एक अभूतपूर्व उपलब्धि थी।
इसके साथ सवेरा बेगम को पासपोर्ट के एवज में बांग्लादेश के माननीय राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गये “ट्रैवल परमिट आर्डर” पर सवेरा बेगम की फोटो,हस्ताक्षर, अंगूठे के निशान को अभिप्रमाणित करने की अप्रत्याशित आथरिटी भी बांग्लादेश सरकार के द्वारा मुझे प्रदान की गई
ऐसी शानदार ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय सफलता सदैव उत्साहित, प्रोत्साहित और जोशखरोश से लबरेज कर देती है।
“बिना ताज” के तो इतना कर दिया और अगर कभी “ताज बादशाह” बन गया तो जनहित में क्या-क्या कर सकता हूँ……!!
दरअसल जहाँ पर सरकार और उसका सरकारी तंत्र जरूरतमंदों और गरीबों की उपेक्षा करता है वहाँ से मेरे सार्थक और सफल पहल की शुरुआत होती है।