‘तेरे मेरे बीच में क्या था, पूछ रहा है दिल मुझसे
पनडुब्बी का पैराशूट से रिश्ता ढूँढ रहा हूँ मैं’
लोकप्रिय युवा शायर समीर परिमल की इन पंक्तियों पर पूरा सभागार तालियों से गूँज उठा। मौक़ा था बिहार सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग जे अंतर्गत उर्दू निदेशालय द्वारा आयोजित उर्दू-हिंदी कवि-सम्मेलन सह मुशायरे का। अभिलेख भवन में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता शफ़ी मशहदी ने की तथा स्वागत भाषण एवं परिचय उर्दू निदेशालय के निदेशक अहमद महमूद ने दिया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा किताब ‘बिहार का उर्दू अदब’ का विमोचन किया गया। प्रथम सत्र में ‘उर्दू-हिंदी के विकास में भाषायी सद्भावना का महत्व’ विषय पर परिचर्चा हुई। द्वितीय सत्र में बिहार के 40 से अधिक हिंदी-उर्दू के कवियों-शायरों ने काव्य-पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन असलम जावेदां ने किया और मुशायरे का संचालन फ़रदुल हसन ने किया।
इस कार्यक्रम में क़ासिम खुर्शीद, ख़ुर्शीद अकबर, रमेश कंवल, संजय कुमार कुंदन, समीर परिमल, शमीम क़ासमी, नाशाद औरंगाबादी, कुंदन आनंद, अनिल कुमार सिंह, मुकेश प्रत्यूष, प्रेम किरण, बद्र मोहम्मदी, मोईन गिरीडीहवी, असर फ़रीदी, चोंच गयावी आदि कई मशहूर रचनाकारों ने अपनी कविता-ग़ज़ल सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
क़ासिम ख़ुर्शीद ने सुनाया –
लकीरें न खींचो मुहब्बत में तुम
ज़रा सरहदों के निशां से निकल
ख़ुर्शीद अकबर ने सुनाया –
कितनी बीमार हो गई दुनिया
और हम आख़िरी अनार हुए
मुकेश प्रत्यूष ने सुनाया –
लिखने से पहले शब्द तय करता है कोई हाशिए के लिए जगह
कभी-कभी भूल जाते हैं छोड़ने वाले हाशिया हाशिए पर ही दिए जाते हैं अंक
परिणाम तय करता है हाशिया ही
संजय कुमार कुंदन ने सुनाया –
मेरी शराफ़त के दायरे में ज़रा सी बेअदबियाँ मिलेंगी
सुकूते-सत्हे-बह्र जो पलटो तो कितनी हलचल रवाँ मिलेंगी
प्रेम किरण ने सुनाया –
मैं देखूं कि उसको सुनूं शब ढले तक
सरापा ग़ज़ल ख़ुद ग़ज़ल गा रही है