रामेश्वरम – भारत का दक्षिणतम छोर जो पौराणिक कथाओं और धार्मिक पुस्तकों में भगवान् श्री राम, उनकी लंका विजय और लंका विजय के दौरान उनकी कप्तानी में नल और नील के द्वारा पुल निर्माण, श्री हनुमान की लंबी छलांग ( हनुमान कूद ) और श्री राम
के द्वारा स्थापित शिवलिंग की अराधना एवं रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग एवं उसके वृहद गलियारों के लिए जहां विश्व प्रसिद्ध है, वहीं हालिया समय में रामेश्वरम एक ऐसे महामानव के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है जो जीते जी ही किंवदंती बन गया था और मरने के पश्चात तो वो बस अमर हो गया।
जी हां! यहां हम बातें कर रहे हैं अबुल कलाम आज़ाद की। मंदिर की बात हम फिर कभी करेंगे। आज विश्व विद्यार्थी दिवस में तो बातें होंगी सिर्फ और सिर्फ महामानव कलाम के बारे में, “ऐसे हीं कोई कलाम नहीं होता।”
कलाम साहब जिनका जन्म रामेश्वरम की मस्जिद गली में सन् 1931 की पंद्रह अक्टूबर को हुआ था। आज रामेश्वरम की वो संकरी गली पुरी तरह कलाम मय है। आसपास की लगभग सारी दुकानें कहीं ना कहीं कलाम नाम रख फख्र महसूस कर रही है। परिवार गरीब था फलस्वरूप जीवनयापन के लिए बचपन से ही मशक्कत करनी पड़ी। भाई बहनों में सबसे छोटे थे कलाम साहब। पांच भाई बहनों का भरा पुरा परिवार था। मुश्किलें थीं। सब कुछ उन्हें एक तश्तरी में रख कर नहीं मिला था, पर पढ़ाई के प्रति उनकी प्रतिबद्धता कभी कम नहीं हुई। मद्रास तकनीकी संस्थान से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।एक वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने कभी सफलता का श्रेय अपने उपर नहीं लिया। सफलता का श्रेय वो हमेशा पुरी टीम को देते थे, पर हां असफलता का श्रेय वो सार्वजनिक रूप से खुद को देते थे। क्या विराट व्यक्तित्व था उनका। धर्म और जाति से बिल्कुल परे एक निश्छल व्यक्तित्व के स्वामी कलाम साहब हमारे भारत के विभिन्न सुरक्षा/ अंतरिक्ष परियोजनाओं से जुड़े रहे। पोखरण न्यूक्लियर टेस्ट द्वितीय जो 1998 में किया गया था, उसका वो एक अहम् हिस्सा थे। एक बड़ी भूमिका उन्होंने निभाई थी।दो मुख्य अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO और DRDO से बतौर एयरोस्पेस वैज्ञानिक वो शिद्दत से जुड़े हुए थे। बैलिस्टिक मिसाइलों के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यूं ही उन्हें मिसाइल मैन ऑफ इंडिया नहीं कहा जाता है।
कई बार उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार किया और बार बार दोहराया कि एक वैज्ञानिक के रूप में उनकी प्रतिभा को निखारने का मुख्य श्रेय विक्रम साराभाई और सतीश धवन जैसे लोगों को जाता है। सरकार ने उन्हें उनकी उपलब्धियों के लिए पद्मविभूषण, पद्मश्री और अपने यहां के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया।
बाद में उनकी उपलब्धियों और उनके निर्विवाद व्यक्तित्व को देखते हुए उन्हें देश का राष्ट्रपति बनाया गया ( 2002- 2007 )। वो देश के पहले बैचलर ( कुंवारे) राष्ट्रपति थे।
राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल बाकियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। बतौर राष्ट्रपति वो राष्ट्रपति ना होकर एक शिक्षक थे। बच्चों के बीच, बच्चों के साथ समय बिताना , उनके साथ शिक्षक की तरह रहना, उन्हें पढ़ाना उन्हें बहुत पसंद था। जहां भी उन्हें मौका मिलता उनके अंदर का शिक्षक जाग जाता था।
जब रामेश्वरम प्रवास के दौरान मुझे उनके घर जाने का मौका मिला तो वहां जाकर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कोई व्यक्ति इतना सरल, और सादा जीवन भी जी सकता है। कोई आडंबर नहीं। संत थे वो। ख़ान पान बिल्कुल शाकाहारी।आश्चर्य हुआ वहां जाकर कि इतने छोटे से घर से महामानव निकल आया था।
घर का आधे से ज्यादा हिस्सा तो विभिन्न विषयों के पुस्तकों और उन्हें मिले प्रमाण पत्रों, सम्मान पत्रों एवं मेडल से भरा हुआ था।
वहां से हम उनके स्मारक को देखने पहुंचे। वहां जाकर और उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जानकर कोई भी व्यक्ति भावुक हो सकता है। बगल में गीता रख वीणा बजाते हुए एक निश्छल हंसी के साथ कलाम साहब। विभिन्न देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों से बच्चों सी मुस्कान के साथ मिलते कलाम साहब। अभिमान तो शायद उनके रास्ते कभी आया ही नहीं। उसने तो अपना रास्ता ही बदल लिया था।
अपने अंतिम समय 27/07/2015 में जब वो शिलोंग के एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए गिर पड़े थे तब भी उनके चेहरे पर उनकी चिर परिचित मुस्कान कायम थी। एक महामानव जो शिक्षा की अलघ जगाने निकला था शिक्षा की अलघ जगाने के दौरान ही इस नश्वर संसार को छोड़कर चला गया।
बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे कलाम साहब दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध संत कवि तिरूवल्लुवर द्वारा रचित पुस्तक तिरुक्कुरल ( कुरल ) जिसमें 1330 पद्य/ आयतें हैं उसके विद्वान थे। अपने लगभग हर भाषण में वो तिरुक्कुरल ( कुरल ) की आयतों को जरूर उद्धृत किया करते थे। तिरुक्कुरल ( कुरल ) एक ऐसी पुस्तक है जो किसी धर्म, विश्वास अथवा मान्यता से जुड़ी हुई नहीं है। तीन खंडों में विभाजित यह पुस्तक मुख्य तौर पर मानव चरित्र से संबंधित है।
जनता के राष्ट्रपति कलाम साहब की जन्मतिथि पंद्रह अक्टूबर के दिन को अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनाइटेड नेशंस ने उन्हें सम्मान देते हुए ” अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट दिवस ” के रूप में मनाने की घोषणा की है।
“सपने देखो, सपने देखो, सपने देखो। सपने विचारों में बदल जाते हैं और विचार कार्य में परिणत होते हैं।”
कलाम साहब के जन्मदिन पंद्रह अक्टूबर पर मेरी उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि
✒️ मनीश वर्मा’मनु’