आज की सैर झंडे वाली माता की !

कमल की कलम से !

यदि आप दिल्ली में रहते हैं तो आपने झण्डे वाली माता मन्दिर का नाम अवश्य सुना होगा पर यदि यहाँ गये नहीं होंगे तो इस मंदिर का महत्व नहीं जान पायेंगे. आपको आश्चर्य होगा कि यह मन्दिर दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाके में मौजूद होते हुए भी पर्वत पर मौजूद है. क्योंकि झंडेवालान इलाका अरावली पर्वत माला पर स्थित है.ये एक जमाने में पहाड़ी और हरा भरा इलाका हुआ करता था. ऊंचाई पर होने की वजह से उस वक्त लोग यहां घूमने आते थे.

झंडेवालान माता का यह सिद्धपीठ मंदिर दिल्ल के लगभग मध्य और भीड़भाड़ वाले क्षेत्र करोल बाग में , देश बंधु गुप्ता रोड पर झंडेवालान एक्सटेंशन में मौजूद है.माता झंडेवाली लक्ष्मी का स्वरूप हैं जिनके एक तरफ माँ काली हैं और दूसरी तरफ मां सरस्वती.

अब यदि हम इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो आधिकारिक तौर पर इस मंदिर का इतिहास 18वीं सदी का यानी आज से मात्र 125 वर्ष पुराना ही बताया जाता है.
वहीं इतिहास से ये जानकारी भी मिलती है कि यह ‘झंडेवालान मंदिर’ नाम शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान दिया गया था.अब प्रश्न यह उठता है कि अगर शाहजहाँ का शासनकाल आज से करीब 420 वर्ष पहले तक यानी सन 1628 से 1658 के बीच का रहा है तो फिर किसे सच माना जाय.

गुगल पर जानकारी लिया जाय तो जो तथ्य और प्रमाण मौजूद हैं उनको अगर आधार मान कर चलें तो हैरानी होती है. जब गुगल पर सर्च किया कि दिल्ली पर सबसे पहला मुगल आक्रमण कब हुआ तो इसके उत्तर में गुगल बताता है कि 12 नवंबर 1736 में मराठा सेना दिल्ली पर आक्रमण के लिए आई थी अब सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि मराठाओं की सेना भला इस मंदिर को कैसे तोड़ सकती है जो खुद भी देवी के उपासक हैं. ऐसे में अब सवाल यह भी उठता है कि इस देवी मंदिर को किसने ध्वस्त किया होगा ?

खैर हमलोग बिना इस बहस में उलझे इस मंदिर से जुड़ी अन्य जानकारी लेते हैं और आते हैं इसके निर्माण पर.चाँदनी चौक के एक बड़े कपड़ा व्यापारी बद्री दास जी अक्सर इस पहाड़ी पर आते थे जो माँ वैष्णों देवी के भक्त थे. वो यहाँ बैठकर ध्यान में लीन हुआ करते थे तो एक बार ध्यान करते समय उन्हें पहाड़ी में एक मंदिर होने का आभास हुआ. उन्हें लगा कि यहाँ कोई प्राचीन मंदिर है.

उन्होंने इस जमीन को खरीद कर खुदाई शुरू करबाया. खुदाई में यहाँ एक प्राचीन मंदिर के शिखर का झंडा मिला और बाद में माता की मूर्ति मिली.माता की मूर्ति के बाद कुछ दूरी पर एक शिवलिंग भी मिला. इस तरह इस मंदिर की खोज हुई.इस मंदिर में विराजित माता को झंडे वाली माता के नाम से पहचाना जाने लगा और एक दिन अनायास ही किसी ने इसे नाम दे दिया ‘‘झंडेवाली माता’’.

वर्तमान समय में इस झंडेवालान या झंडेवाली माता मंदिर के गर्भगृह में जिस लक्ष्मी स्वरूप पवित्र प्रतिमा के दर्शन होते हैं वह प्रतिमा वहाँ से प्राप्त मूल प्रतिमा नहीं है बल्कि मंदिर निर्माण के बाद इस मूर्ति को यहां स्थापित किया गया था. जबकि वहां से प्राप्त वह मूल प्रतिमा इसी मंदिर के गर्भगृह के ठीक नीचे एक गुफा के आकर के गर्भगृह स्थपित है. यानी वर्तमान प्रतिमा के नीचे आज भी वह मूल प्रतिमा मौजूद है और नियमित रूप से आज भी उस प्रतिमा की आरती की जाती है. आप आज भी उनके दर्शन कर सकते हैं.

इस मंदिर में झंडेवाली माता के मुख्य मंदिर के अलावा एक संतोषी दरबार भी बनाया गया। जहां संतोषी माता, वैष्णो माता, शीतला माता, लक्ष्मी माता, गणेश जी और हनुमान जी की प्रतिमायें हैं.मंदिर के बाहर शिवालय और काली माता का मंदिर है. इसके अलावा मंदिर की गुफा में पिछले 11 दशकों से अखण्ड ज्योति भी प्रज्जवलित है.

यहाँ किसी भी तरह का प्रसाद या चुनरी ले जाना मना है पर प्रसाद मन्दिर द्वारा ही दिया जाता है.

दर्शन का समय :

गर्मी
सुबह की मंगल आरती सूखी मेवा सुवह 5:30
शृंगार आरती चीले, चने, दूध, नारियल सुवह 9:00
भोग आरती चावल, दालें, रोटी सुवह 12:00
सायंकालीन आरती का जाप शाम 7:30
रात्रि आरती दूध रात 10:00

जाड़ा
मंगल आरती शुष्क मेवा सुवह 6:00
श्रृंगार आरती चीले, चने, दूध, नारियल सुवह 9:00
भोग आरती चावल, दालें, रोटी सुवह12:00
सायंकालीन आरती का जाप सुवह 7:00
रात्रि आरती दूध सुवह 9:30
प्रार्थना / प्रसाद

रविवार, मंगलवार और अष्टमी की दोपहर में भी मन्दिर खुला रहता है.

मेट्रो स्टेशन : झंडेवालान यहाँ से आप ई रिक्शा से पहुँच सकते हैं जो 1 किलोमीटर से थोड़ा ज्यादा है.

बस स्टैंड : झंडेवालान यहाँ से 751 ,951 , 309EXT 917 , 910 , 157A , 100 , 318 , 3 07 ,88A 181A , 156 , 894CL गुजरती है.

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