बदल रहे हर रोज ही, हैं मौसम के रूप !
ठेठ सर्द में हो रही, गर्मी जैसी धूप !!
सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश !
जुगनूं की बारात से, गायब है अब जोश !!
दें सुनाई अब कहाँ, कोयल की आवाज़ !
बूढा पीपल सूखकर, ठूंठ खड़ा है आज !!
जब से की बाजार ने, हरियाली से प्रीत !
पंछी डूबे दर्द में, फूटे गम के गीत !!
फीके-फीके हो गए, जंगल के सब खेल !
हरियाली को रौंदती, गुजरी जब से रेल !!
नहीं रहें मुंडेर पर, तोते-कौवे -मोर !
लिए मशीनी शोर है, होती अब तो भोर !!
सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव !
पंछी उड़े प्रदेश को, बांधे अपने पाँव !!
हरे पेड़ सब कट चलें, पड़ता रोज अकाल !
हरियाली का गाँव में, रखता कौन ख्याल !!
वाहन दिन भर दिन बढ़ें, खूब मचाये शोर !
हवा विषैली हो गई, धुंआ चारों ओर !!
बिन हरियाली बढ़ रहा,अब धरती का ताप !
जीव-जगत नित भोगता, प्राकृतिक संताप !!
जीना दूबर है हुआ, फैलें लाखों रोग !
जब से हमने है किया, हरियाली का भोग !!
डॉo सत्यवान सौरभ