पटना,नारी जगत के पटल पर महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी तेरापंथ की गौरवशाली साध्वी प्रमुखाओं की परंपरा में आठवीं साध्वी प्रमुखा है।साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी का जन्म 22 जूलाई 1941को कोलकाता महानगर में हुआ। उनके पिता का नाम सुरजमल जी बैद व माता का नाम छोटी देवी था।
बचपन से ही वे गंभीर प्रकृति की बालिका दी।15 वर्ष की आयु में उन्होंने पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश किया।चार वर्ष के संसथाकाल में उन्होंने मेधावी छात्रा के रूप में उभरकर आई। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ने 19 वर्ष की आयु में आचार्य के करकमलों से दीक्षा ग्रहण की। एकाग्रता, नियमितता,पापभीरूता ,दढ़ संकल्प,कठोर परिश्रम,अंतर्मुखता ,अथक परिश्रम आपके व्यक्तित्व की ऐसी विशेषताएं रही है जो हर पल आपके जीवन को निखारती रही। आपने हिंदी,संस्कृत, प्राकृत भाषा पर अधिकार प्राप्त किया,आगम, दर्शन,कोश, व्याकरण एवं साहित्य आदि विविध विषयों का तलस्पर्शी अध्ययन किया।
आपकी विनम्रता, व्यवहार कुशलता एवं अनुशासनप्रियता जैसे गुणों से प्रभावित होकर आचार्य तुलसी ने 30 वर्ष की आयु में विशाल साध्वी संघ का दायित्व सौंपा और उन्हें साध्वी प्रमुखा के पद पर नियुक्त किया।
लेखन और कवित्व के साथ उनकी वक्तृत्व शैली भी अपनी पहचान रखती है। आपकी रची हुई कविताओं का संग्रह सांसों का इकतारा और धूप-छांव में जीवंत दर्शन की अभिव्यंजना की है।वे साध्वी समाज के विकास के लिए नित नई कल्पनाएं संजोती रही।शिक्षा ,कला, साहित्य,साधना सेवा, समर्पण, सहयोग विभिन्न पहलुओं से वे एक तेजस्वी और प्राणवान साध्वी संघ देखना चाहा।आपका व्यक्तित्व समस्त नारी जाति के लिए अनुपम उदाहरण है। नारी जाति के मंगल कल्याण की उर्मियां उनके अंतस में हिलोरें लेती रही। नारी जाति को अपनी अस्मिता की पहचान कराने के लिए उन्होंने जीवन भर प्रयास किया है।
आज साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी जीवन के नौवें दशक में पहुंच चुकी है।आज भी वह साध्वी संघ का सशक्त नेतृत्व कर रही है आपके निर्देशन में साध्वी समाज ने अभूतपूर्व प्रगति की है। आपके साध्वी प्रमुखा पद के मनोनयन वर्ष को आचार्य महाश्रमण जी ने साध्वी प्रमुखा अमृतवर्ष के नाम से घोषित किया है।आप नारी जाति के लिए आदर्श है।