नीतीश कुमार के बदले अंदाज और उनकी चुप्पी से बिहार की सियासत में सस्पेंस पैदा हो गया है. इस सस्पेंस से जितने घबराये जेडीयू के नेता हैं, उससे कम आशंकित सरकार के सहयोगी दल भाजपा वाले भी नहीं हैं. 2017 के बाद पहली बार इफ्तार के बहाने राबड़ी आवास पर नीतीश कुमार का जाना, कानून मंत्रालय द्वारा दिल्ली में आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में उनका शरीक न होना और लाउड स्पीकर के बारे में यूपी के माडल की सर्वत्र हो रही तारीफ को बकवास और बेकार ठहराना सस्पेंस की खास वजहों में शुमार है.
हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब नीतीश कुमार अपने बयानों या आचरण से भाजपा या उसके नेतृत्वाली केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ कदम उठा रहे हैं. सीएए, एनआरसी और कामन सिविल कोड पर वह भाजपा के स्टैंड के खिलाफ रहे हैं. उनकी मुखालफत का अंदाज अब भी बरकरार है. लेकिन इफ्तार के बहाने राबड़ी आवास उनका सात साल बाद जाना और कुछ मुद्दों पर आरजेडी के स्टैंड से उनके स्टैंड का मेल खाना राजनीतिक पंडितों के साथ गठबंधन के प्रमुख दोनों दलों- भाजपा और जेडीयू के नेताओं को असमंजस में डाल दिया है. जातीय जनगणना के मुद्दे पर जेडीयू और आरजेडी का समान स्टैंड है.
भाजपा के नेता समय-समय पर नीतीश को यह एहसास कराने से नहीं चूकते कि नीतीश कुमार उनकी वजह से मुख्यमंत्री हैं. भाजपा सांसद छेदी पासवान और विधायक विनय बिहारी ने तो नीतीश की जगह भाजपा के मुख्यमंत्री की मांग कर दी है. नीतीश सरकार को समय-समय पर बढ़ते अपराध, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति और दारूबंदी के सवाल पर भी भाजपा के नेता कठघरे में खड़ा करते रहे हैं. इस पर नीतीश की सीधी कोई प्रतिक्रिया तो कभी सामने नहीं आती है, लेकिन उनकी खिन्नता स्वाभाविक है. इफ्तार में राबड़ी आवास पैदल ही नीतीश का जाना और नीतीश के आवास पर तेजस्वी-तेजप्रताप के आने के बारे में माना जा रहा है कि भाजपा को नीतीश द्वारा आईना दिखाने की रणनीति का यह हिस्सा है.
कामन सिविल कोड लागू करने की प्रतिबद्धता जब केंद्रीय गृहमंत्री ने हाल ही में जतायी तो नीतीश की ओर से कोई बयान तो नहीं आया, लेकिन जेडीयू के कद्दावर नेताओं में शुमार उपेंद्र कुशवाहा ने साफ कर दिया कि बिहार में इसकी कोई जरूरत नहीं है. उसी तरह भाजपा के जनक राम जैसे कुछ नेताओं ने धर्मस्थलों से लाउड स्पीकर हटाने या उसकी आवाज कम करने के यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ माडल को लागू करने की जब मांग की तो नीतीश ने इसे बेकार और बकवास बता कर सिरे से खारिज कर दिया. सीएए के सवाल पर भी नीतीश का स्टैंड जेडीयू के तत्कालीन और अब निवर्तमान उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर से बाहर आया था कि बिहार में इसे लागू नहीं किया जायेगा.
विधायकों के संख्या बल के हिसाब से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू भले ही बिहार में तीसरे नंबर पर है, लेकिन प्रेसर पालिटिक्स से नीतीश अपना रुतबा नंबर वन का बनाये हुए हैं. जब उन्हें सीएम पद से हटाने की मांग भाजपा के कुछ नेता कर रहे हैं और बार-बार यह एहसास करा रहे हैं कि भाजपा की वजह से ही वे सीएम की कुर्सी पर हैं तो ऐसी स्थिति में संभव है कि वे राजद से रिश्ता बढ़ाने का सीन क्रियेट कर भाजपा पर दबाव बनाने की चाल चल रहे हों. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यह बात अच्छी तरह जानता है कि बिहार में अभी सत्ता तक अपने बूते पहुंचना उसके लिए मुश्किल है. उसे एक ऐसे सहयोगी की जरूरत है, जिससे उसका तालमेल बना रहे. इसलिए केंद्रीय नेतृत्व चाहते हुए भी फिलहाल नीतीश को नजरअंदाज नहीं करना चाहेगा. नीतीश भी यह बात अच्छी तरह समझते हैं. यही वजह है कि लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद चुनावों में सीटों की हिस्सेदारी में नीतीश बराबर के भागीदार बनाने पर भाजपा को मजबूर करते आये हैं.
इधर बोचहा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार की हार और विधान परिषद चुनाव में पहले की सीटें बरकरार न रख पाने में भाजपा की नाकामी से पार्टी में वनवास भोग रहे सुशील कुमार मोदी को प्रदेश भाजपा पर उंगली उठाने का मौका मिल गया है. मोदी को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है. नीतीश के साथ उन्होंने उपमुख्यमंत्री की लंबी पारी खेली है. बहरहाल बिहार की राजनीति में नीतीश ने फिलवक्त जो सस्पेंस पैदा किया है, वह आने वाले दिनों में क्या रूप लेगा, यह देखना बाकी है. नीतीश क्या सोचते हैं और क्या करते हैं, इसके बारे में उनके करीबियों को भी कुछ पता नहीं होता. इसलिए उनके सस्पेंस से न आरजेडी उत्साहित है और न भाजपा निश्चिंत.