श्री गणेश चतुर्थी,भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी/जन्मोत्सव

पौराणिक कथा अनुसार गणेश जी का जन्म भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न में हुआ था, इसलिए गणेश जी की पूजा दोपहर में की जाती है।

गणेश जी को बुद्धि, विवेक, धन-धान्य, रिद्धि-सिद्धि का कारक माना जाता है. गणेश चतुर्थी पर उनकी पूजा करने से शुभ लाभ की प्राप्ति होती है. और समृद्धि के साथ धन वृद्धि भी होती है।

गणेश जी की पूजा सभी देवताओं में सबसे सरल मानी जाती है. गणेश चतुर्थी के दिन घर-घर में गाय के गोबर से एवं मिट्टी के गणेश जी स्थापित किये जाते हैं. मान्यता है कि हमारा शरीर पंचतत्व से बना है और उसी में विलीन हो जायेगा. इसी मान्यता के आधार पर गणपति जी को अनंत चौदस के दिन विसर्जित कर दिया जाता है।

धार्मिक कथा अनुसार महर्षि वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश जी को लगातार १० दिनों तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरशः लिखा था।

१० दिन पश्चात् जब वेदव्यास जी ने आँखें खोली तो पाया कि १० दिन की अथक परिश्रम के पश्चात् गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया है. वेदव्यास जी ने श्री गणेश जी के शरीर का तापमान न बढ़े इसलिए उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया. लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गयी और माटी झरने लगी. तब वेदव्यास जी ने गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर ठण्डा किया था।

इस बीच वेदव्यास जी ने १० दिनों तक श्री गणेश जी को मन पसंद आहार अर्पित किये तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और १० दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है।

मान्यता है कि जिन घरों में बप्पा का स्वागत किया जाता है और १० दिनों तक उनकी पूजा होती है, उन घरों पर बप्पा की विशेष कृपा होती है. गणेश जी की कृपा से सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते हैं तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

बप्पा की पूजा इस
प्रकार से करें।
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एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थान दें. उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें. चौकी के पास ही एक कलश में जल भरकर उसके ऊपर नारियल रखकर रख थे. दोनों समय गणपति की आरती, चालीसा का पाठ करें।

“ऊं गं गणपतये नमः” इस मंत्र का जाप करें. पान, सुपारी, सिंदूर, लड्डू और दूर्वा से बप्पा की पूजा करें।

पूजा का शुभ मुहूर्त
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चतुर्थी तिथि प्रारंभ : १८ सितम्बर २०२३ को दोपहर बाद ०२:०९ बजे.

चतुर्थी तिथि समाप्त : १८ सितम्बर २०२३ को दोपहर बाद ०३:१३ बजे तक।

गणेश चतुर्थी व्रत
पूजन की उदय तिथि :
१९ सितम्बर, २०२३
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गणेश प्रतिमा की स्थापना का शुभ मुहूर्त १९ सितम्बर को प्रातः ११ बजकर ०७ मिनट से दोपहर ०१ बजकर ३४ मिनट तक है।

मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए. यदि भूलवश चन्द्रमा के दर्शन कर भी लें तो उसके निवारणार्थ इस मंत्र का जाप करें।

सिह: प्रसेनम् अवधीत् सिंहो जाम्बवता हत:

सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तक:

या फिर भूमि से एक पत्थर का टुकड़ा उठाकर पीछे की ओर फेंक दें।

गणेश चतुर्थी आज
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इस चतुर्थी को कलंक
चौथ भी कहा जाता है
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धार्मिक मान्यता के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस गणेश चौथ को कलंक चौथ भी कहा जाता है।

श्रद्धा-भक्ति के साथ विधि अनुसार इस गणेश चतुर्थी का व्रत एवं पूजन करने से धन, बुद्धि, शक्ति, यश, सौभाग्य में वृद्धि और निर्विघ्न कार्यसिद्धि होती है। भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता हैं। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी, कलंक चतुर्थी और ड़ण्का चौथ के नाम से भी जाना जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था। भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय सिंह लग्न में स्वाति नक्षत्र में गणेश जी का जन्म हुआ था।

गणेश चतुर्थी की तिथि
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इस वर्ष गणेश चतुर्थी १९ सितम्बर, २०२३ मंगलवार के दिन मनाई जायेगी।

गणेश चतुर्थी व्रत
एवं पूजन की विधि
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गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन और व्रत किया जाता हैं। इस दिन घर के पूजास्थान और घर के द्वार पर स्थापित गणेश जी की प्रतिमा की पूजा जाती हैं।

०१. गणेश चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मो से निवृत्त होकर सोने, चाँदी, तांबे, संगमरमर या मिट्टी की गणेश की मूर्ति लें और यदि आपके घर में पूजास्थान पर पहले से ही मूर्ति स्थापित हो तो उसी मूर्ति की पूजा करें।

०२. एक चौकी लेकर उसपर कप‌ड़ा बिछाकर एक कलश में जल भरकर रखें।

०३. उस चौकी पर एक छोटे पाटे पर या थाल पर गणेश जी की प्रतिमा को विराजमान करें।

०४. गणेश जी के प्रतिमा पर सर्वप्रथम दूध चढायें। फिर जल चढ़ायें।

०५. अगर आपके पास संगमरमर या मिट्टी की गणेश जी की प्रतिमा हो तो उस पर सिंदूर और घी को मिलाकर लेप (चोला चढ़ाये) करें और चाँदी का बर्क लगायें। रोली चावल से तिलक करें। वस्त्र चढ़ायें। और अगर धातु की प्रतिमा हो तो उस पर थोड़ा सा सिंदूर लगाकर रोली चावल से तिलक करके वस्त्र चढ़ायें।

०६. गणेश जी को
जनेऊ चढ़ायें।

०७. तत्पश्चात गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें और पुष्प अर्पित करें।

०८. लकड़ी या चाँदी के ड़ण्के गणेश जी को अर्पित करें।

०९. फिर गणेशजी को गुड़धानी (गुड़ या चीनी की) और लडडुओं का भोग चढ़ायें।

१०. इसके बाद गणेश चतुर्थी की कहानी एवं महात्म्य का पाठ करें या सुनें।

११. तत्पश्चात गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें, गणेश गायत्री मंत्र का जाप करके गणेश जी की आरती गायें।

१२. इस सबके बाद भगवान गणेश जी की तीन परिक्रमा लगायें। अगर परिक्रमा करने के लिये जगह ना हो तो अपनी जगह पर ही तीन बार घूम लें।

१३. इस दिन इस बात का ध्यान रखें कि आप चंद्रमा के दर्शन नही करें। क्योकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से मिथ्या कलंक दोष लगता हैं।

गणेश चतुर्थी पर चंद्र
दर्शन के दोष निवारण
के उपाय
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हिंदु मान्यता के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन नहीं करने चाहिए क्योकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने वाला कलंक का भागी होता हैं। यदि कोई गलती से चन्द्रमा का दर्शन कर ले तो उसे इस दोष का निवारण करने के लिये इस मंत्र का ५४ बार या १०८ बार जाप करना चाहिये।

सिंह प्रसेनमवधीत्सिंहो
जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव
ह्येष स्यमन्तकः॥

ऐसा करने से चंद्रमा
देखने के दोष का
निवारण होता हैं।
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चन्द्र दर्शन के दोष के निवारण के लिये स्यमंतक मणि की कहानी भी कही या सुनी जा सकती हैं। ऐसी मान्यता है कि स्यमंतक मणि की कहानी सुनने से गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा देखने से जो दोष लगता है उसका निवारण हो जाता हैं।

गणेश चतुर्थी की पूजा में
गलती से भी यह ना करें
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गणेश जी पर तुलसी पत्र नही चढ़ाया जाता। इसीलिये इस बात का विशेष रूप से ख्याल रखें और गणेश जी को तुलसी का पत्ता अर्पित ना करें।
जैसा की उपरोक्त में लेख है की चंद्रमा का दर्शन ना करें। गणेश जी के श्राप के कारण इस दिन चंद्र दर्शन करने वाले को कलंक लगता हैं।

गणेश चतुर्थी की कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार एक समय भगवान शंकर कैलाश पर्वत से किसी कार्यवश अन्यत्र कही गये हुये थे। तब भगवान शंकर के वहाँ ना होने के कारण माता पार्वती ने सुरक्षा के लिये अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण ड़ालकर उसे जीवित कर दिया। फिर उन्होने जो पुतला बनाया उसका नाम गणेश रखा। माता पार्वती ने गणेश जी को मुदग्ल देकर उन्हे बाहर पहरा देने को कहा। माता पार्वती ने गणेश जी से कहा कि मैं स्नान के लिय जा रही हूँ, तुम किसी को अंदर प्रवेश मत करने देना।

भाग्यवश तभी भगवान शंकर वहाँ पर आ पहुँचे और अंदर जाने लगे तो गणेश जी ने उन्हे अंदर जाने से रोक दिया। इस पर भगवान शंकर को क्रोध आ गया और उन्होने अपने त्रिशूल से गणेश जी का मस्तक काट दिया। जब माता पार्वती को पता चला तो बहुत दुखी हुई और उन्हे बहुत क्रोध भी आया। उन्होने भगवान शंकर को बताया कि वो उनका पुत्र गणेश था और वो उन्ही की आज्ञा का पालन कर रहा था।

तब सभी देवता वहाँ आ गये और भगवान विष्णु जी एक नवजात हाथी के बच्चे का मस्तक लेकर आये। उस मस्तक को भगवान शंकर ने गणेश जी के धड़ पर लगा दिया। और उनमें पुन: प्राण फूँक दिये। तब कहीं जाकर माता पार्वती का दुख और क्रोध समाप्त हुआ।

गणेश चतुर्थी के विषय
में प्रचलित अन्य कथा
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एक प्रचलित पौराणिक कथानुसार भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह को बहुत समय बीत चुका था, परंतु उनके कोई संतान नही हुई तब माता पार्वती ने भगवान श्री कृष्ण का व्रत किया और उस व्रत के प्रभाव से उन्हे पुत्र की प्राप्ति हुई। उन्होने उसका नाम गणेश रखा। सभी देवी देवता भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र के दर्शन के लिये वहाँ पहुँचे। तब शनि देव की दृष्टि से गणेश जी का मस्तक कट गया। तब भगवान विष्णु ने नवजात हाथी के बच्चे का सिर लाकर गणेश जी के धड़ से जोड़ कर उन्हे पुन: जीवित करा।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान परशुराम कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन हेतू पहुँचे। तब गणेश जी बाहर पहरा दे रहे थे और शंकर जी और पार्वती जी शयन कर रहे थे। गणेश जी ने परशुराम जी को बाहर ही रोक दिया। इस पर उन दोनों में युद्ध आरम्भ हो गया और परशुराम जी के परशु के प्रहार से गणेश जी का एक दाँत कट गया। तब से गणेश जी को एकदंत भी कहा जाने लगा।

एक कथा के अनुसार गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन करने के कारण स्वयं भगवान श्री कृष्ण को भी स्यमंतक मणि की चोरी का कलंक लगा था। उस कलंक को हटाने के लिये उन्होने उस मणि को ढ़ूंढ़कर सत्राजित को दिया और उस मिथ्या कलंक से मुक्ति पायी।

गणेश जी से जुड़ी
कुछ बातें
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गणेश जी की पूजा के बिना किसी भी शुभ कार्य का आरम्भ नही किया जाता। शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती हैं।

वैदिक काल से गणेश जी की पूजा होती रही हैं। गणेश जी के मंत्रो का उल्लेख हमको ऋग्वेद-यजुर्वेद में भी मिलता हैं।

हिन्दू धर्म के पाँच प्रमुख देवताओं में भगवन शिव, भगवान विष्णु, भगवान सूर्य, माता दुर्गा के साथ भगवान गणेश जी भी हैं।

गणेश शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, गण + ईश। ‘गण’ शब्द का अर्थ होता है – वृंद, समुदाय, समूह, आदि और ‘ईश’ शब्द का अर्थ होता है – ईश्वर, मालिक, स्वामी, आदि।

गणेश जी के पिता शंकर जी, माता पार्वती जी, भाई कार्तिकेय जी, पत्नियाँ ऋद्धि-सिद्धि और पुत्र शुभ और लाभ हैं।

शास्त्रों में वर्णित भगवान
गणेश के १२ नाम:
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०१. सुमुख, ०२. एकदंत, ०३. कपिल, ०४. गजकर्ण, ०५. लम्बोदर, ०६. विकट, ०७. विघ्नविनाशन, ०८. विनायक, ०९. धूमकेतु, १०. गणाध्यक्ष, ११. भालचंद्र, १२. गजानन।

महाकाव्य महाभारत के वक्ता वेदव्यास जी थे और उसको लिखा भगवान गणेश ने था।

गणेश चतुर्थी का महत्व
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हिंदु धर्म में गणेश जी का विशेष स्थान है। गणेश जी को सुखकर्ता, दुखहर्ता, मंगलकर्ता, विघ्नहर्ता, विघ्न-विनाशक, विद्या देने वाला, बुद्धि प्रदान करने वाला, रिद्धि-सिद्धि के दाता, सुख-समृद्धि, शक्ति और सम्मान प्रदान करने वाला माना जाता है। हर माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को “संकष्टी गणेश चतुर्थी” और शुक्लपक्ष की चतुर्थी को “विनायक गणेश चतुर्थी” कहा जाता हैं। इन चतुर्थी पर भी भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं। इन सब चतुर्थी में गणेश चतुर्थी बहुत महत्वपूर्ण और अत्यंत शुभ फलदायी हैं।

यदि गणेश चतुर्थी मंगलवार के दिन हो तो उसे अंगारक चतुर्थी कहा जाता हैं। इस दिन व्रत और पूजन करने जातक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं।

और यही गणेश चतुर्थी यदि रविवार के दिन हो तो बहुत ही शुभ और श्रेष्ठ फलदायीनी मानी जाती हैं।

भारत देश में हर स्थान पर गणेश चतुर्थी का पूजन किया जाता हैं। महाराष्ट्र में यह त्यौहार बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता हैं। महाराष्ट्र में गणेशोत्सव में इस दिन घर-घर में गणेश की स्थापना की जाती हैं। यह गणेशोत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है और दस दिनों के बाद अनंत चतुर्दशी की तिथि के दिन गणेश विसर्जन किया जाता हैं। विसर्जन के लिये जाते समय लोग नाचते-गाते, ढोल-नगाड़े के साथ गणेश की सवारी निकालते हैं। फिर उनका जल में विसर्जन कर देते हैं।

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
ज्योतिर्विद, वास्तुविद, व संगीत मय श्री रामकथा , श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्री धाम श्री अयोध्या जी संपर्क सूत्र:-9044741252

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