ऐसा मंदिर जिसमे शिवलिंग हवा में स्थित था- सोमनाथ मंदिर, जानिए क्या है इसकी कहानी

भारत का यह आद्य ज्योतिर्लिंग सोमनाथ असंख्य भक्तों की आस्था का केंद्र है। सोमनाथ मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था। जिसका उल्लेख ऋग्वेद में है। इस पवित्र और वैभवशाली मंदिर के उत्थान और पतन का सिलसिला वर्षों तक चलता रहा। गुजरात प्रदेश के वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित, संसार भर में प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत, स्कन्द पुराण और ऋग्वेद में वर्णित है।

कहते हैं कि सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। यह एक कौतुहल का विषय था। जानकारों के अनुसार यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। इसका शिवलिंग चुम्बक की शक्ति से हवा में ही स्थि‍त था। भगवान शिव के इस विशाल और प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियो धर्मी  गुण हैं जो पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन अच्छे से बनाए रखते हैं। कहते हैं कि महमूद गजनबी इसे देखकर हतप्रभ रह गया था। रेडियोएक्टिव के  कारण तो बहुत बाद में पता चला। ऐसा कहा जाता है कि, भारत यात्रा पर आए एक अरबी यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतांत में, सोमनाथ मंदिर की भव्यता और संपन्नता का वर्णन किया है। ऐसा कहा जाता है की आगरा में रखे देव द्वार सोमनाथ मंदिर के ही हैं, जिसे महमूद गजनवी उठाकर ले गया था।

स्कन्द पुराण के प्रभास खंड में  सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है।चंद्रमा ने दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह करके एकमात्र रोहिणी में इतनी आसक्ति और अनुराग दिखाया कि अन्य छब्बीस अपने को उपेक्षित और अपमानित अनुभव करने लगीं। उन्होंने अपने पति से निराश होकर अपने पिता से शिकायत की तो पुत्रियों की वेदना से पीड़ित दक्ष ने अपने दामाद चंद्रमा को दो बार समझाने का प्रयास किया, परंतु चंद्रमा ने नहीं माना। प्रयास विफल हो जाने पर दक्ष ने चंद्रमा को ‘क्षयी’ होने का शाप दे दिया। सभी देवता चंद्रमा की व्यथा से व्यथित होकर ब्रह्मा जी के पास जाकर उनसे शाप निवारण का उपाय पूछने लगे। ब्रह्मा जी ने प्रभास क्षेत्र में महामृत्युंजय के जाप से वृण्भध्वज शंकर की उपासना करना एक मात्र उपाय बताया। चंद्रमा के छः मास तक पूजा करने पर शंकर जी प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को एक पक्ष में प्रतिदिन उनकी एक-एक कला नष्ट होने और दूसरे पक्ष में प्रतिदिन बढ़ने का वर दिया। देवताओं पर प्रसन्न होकर उस क्षेत्र की महिमा बढ़ाने के लिए और चंद्रमा (सोम) के यश के लिए सोमेश्वर नाम से शिवजी वहाँ अवस्थित हो गए। देवताओं ने उस स्थान पर सोमेश्वर कुंड की स्थापना की।

जनश्रुति के अनुसार इस मंदिर का घंटा कभी 200 मन सोने का बना हुआ था और मंदिर के 56 खंभे हीरे, माणिक, रत्नों और बहुमूल्य पत्थरों से जड़े हुए थे। गर्भगृह में रत्नदीपों की जगमगाहट दिन-रात बनी रहती थी। और नंदादीप सदा प्रज्वलित रहता था। भंडार गृह में अनगिनत द्रव्य सुरक्षित था। इस धार्मिक संस्थान के लिए 10,000 ग्रामों की जागीर भी रहती थी, जिसकी आमदनी से परिसर का खर्च चलता था। भगवान की पूजा और अभिषेक के लिए हरिद्वार, प्रयाग और काशी से गंगोदक प्रतिदिन लाया जाता था। कश्मीर से फूल लाए जाते थे। नित्य पूजा अर्चना के लिए 1000 ब्राह्मणगण नियुक्त थे। मंदिर दरबार में चलने वाले नृत्य-गायन के लिए लगभग 350 नृत्यांगणाएं नियुक्त थीं।

श्री सोमनाथ के इस वैभव सम्पन्न पवित्र स्थान पर मुसलमानों के अनेक हमले हुए। कहा जाता है कि यह मंदिर ईसा पूर्व में भी अवस्थित था।
इस मंदिर पर सबसे पहले 725 ईस्वी में सिंध के सूबेदार अल जुनैद ने हमला किया था और इसे तुड़वा दिया था। और यहाँ से अनगिनत खजाना लूट ले गया था। फिर राजा नागभट्ट जो प्रतिहार राजा थे, उन्होंने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण कराया। इसके बाद महमूद गजनवी ने सन् 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मंदिर की रक्षा के लिए निहत्‍थे हजारों लोग मारे गए थे।इतिहास में गजनवी की इस बर्बरता को लोग कभी नहीं भूल पाएंगें। कहा जाता है कि उस दिन गजनवी ने 18 करोड़ का खजाना लूटा और अपने शहर गजनी (अफगनिस्तान) को लौटने के लिए कूच कर गया। महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।
जब दिल्ली में खिलजीवंश का शासन था, उस समय 1297 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खान ने गुजरात पर हमला कर फिर सोमनाथ मंदिर को तोड़ा। और मंदिर की अथाह धन-संपत्ति को लूटकर ले गया। फिर से हिन्दू राजाओं ने इसे बनवाया। 1395 ईस्वी में जब गुजरात में मुजफ्फरशाह का शासन था, मुजफ्फरशाह ने फिर सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और मंदिर के सारे चढ़ावे लूट ले गया। 1412 ईस्वी में मुजफ्फरशाह का बेटा अहमद शाह ने फिर से सोमनाथ मंदिर को तोड़ा और लूटा। बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।
भारत की आजादी के बाद गुजरात के महान शेर सपूत, सरदार बल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया,और महाराष्ट्र के काकासाहब गाडगीलजी की सलाह से श्री सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया। शुक्रवार दिनांक 11 मई 1951 को सुबह 6.46 में इस मंदिर में श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्राणप्रतिष्ठा उस समय के भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसादजी के कर कमलों द्वारा और वेदमूर्ति तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री जोशीजी के वेदघोष से बड़ी धूमधाम से की गई। वर्तमान में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण चालुक्य शैली में किया गया है। यह प्राचीन हिन्दू वास्तु कला का एक अद्भुत नमूना है। कैलाश महामेरु प्रासाद शैली में, इस विशाल मंदिर को पूरी तरह से तैयार होने में कई वर्ष लग गए। 1 दिसंबर 1995 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सोमनाथ मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मंदिर तीन प्रमुख भागों- गर्भगृह, सभामंडप, और नृत्यमंडप में विभाजित है। इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 150 फीट है। शिखर पर अवस्थित कलश का वजन दस टन है। इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है।
इस मंदिर का क्षेत्रफल 10 किलोमीटर है। इस क्षेत्रफल में लगभग 42 मंदिर हैं। मंदिर प्रांगण में गणेश जी की खूबसूरत भव्य प्रतिमा स्थापित है। उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति है। महाकाली और रानी अहिल्याबाई का भी बेहद सुंदर और विशाल मंदिर स्थापित है। यहाँ पर तीन नदियां हिरण, सरस्वती और कपिला का अद्भुत संगम है। इस मंदिर के दक्षिण दिशा में समुद्र के किनारे बेहद आकर्षक खंभे बने हुए हैं। जिन्हें बाण स्तंभ कहा जाता है, जिसके ऊपर एक तीर रखकर यह प्रदर्शित किया गया है कि, सोमनाथ मंदिरऔर दक्षिण ध्रुव के बीच में भूमि का कोई भी हिस्सा मौजूद नहीं है। लोककथाओं में ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर इसी स्थान पर छोड़ा था। इस मंदिर में रोज शाम में सात बजे से आठ बजे तक एक घंटे का लाइट शो होता। इस शो में हिंदुओं के इतिहास को दिखाया जाता है।सुरक्षा की दृष्टि से मुस्लिमों को इस मंदिर के दर्शन के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है। सोमनाथ मंदिर में कार्तिक, चैत्र, एवं भाद्र महीने में, श्राद्ध करने का बहुत महत्व है। इसलिए इन तीन महीनों में यहाँ ज्यादा भीड़ रहती है। यहाँ गोमती नदी है। ऐसा कहा जाता है कि इस नदी का जल सूर्योदय होने पर बढ़ता है और सूर्यास्त होने पर घटता है।
अगर आप सोमनाथ जाना चाहते हैं तो आपके लिए बस एक बहुत ही आसान और सुविधाजनक विकल्प है। बस का रूट, ट्रेन के रूट से शॉर्ट पड़ता है। भारत के सभी प्रमुख शहरों के लिए इसकी नियमित बसें हैं। लग्जरी बसें,नॉन-एसी और एसी बसें उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपने बजट के अनुसार चुन सकते हैं। दीव से सोमनाथ लगभग 85 किमी दूरी पर है। जहाँ बस से करीब 2 से 2.5 घंटे में आप सोमनाथ पहुँच सकते हैं । वेरावल से सोमनाथ सिर्फ 6 किमी की दूरी पर है। 15 से 20 मिनिट में आप सोमनाथ पहुँच सकते हैं । अहमदाबाद से सोमनाथ लगभग 420 किमी है जो करीब 8 घंटे बस के सफर के बाद आप सोमनाथ पहुँच जायेंगे । सोमनाथ का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट 90 किमी दूर दीव में है। दीव एयरपोर्ट सिर्फ मुंबई से जुड़ा है।

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