हरियाणा में गोवंश के चारे पर भारी संकट पैदा हो गया है। प्रदेश में सबसे ज्यादा मार उन जगहों पर है जिन जिलों में गोशालाएं सबसे अधिक है। प्रदेश के सिरसा, फतेहाबाद, हिसार जिले में सबसे अधिक गोशालाएं हैं। अभी से तूड़ी के रेट 850 रुपये क्विंटल पर पहुंच गया है। परिणामस्वरूप इससे गोशालाओं का खर्च भी दोगुना हो गया है। आंकड़ों के अनुसार औसतन 2000 गाय वाली गोशाला में अकेली तूड़ी का खर्च पहले करीब 20 लाख रुपये आता था मगर अब रेट दो गुने होने से यह खर्च भी दोगुना हो गया है। पिछली बार 6000 से 7500 रुपए प्रति क्विंटल बिकी सरसों से इस बार गेहूं और तूड़े की व्यवस्था गड़बड़ा गई है। प्रदेश भर में गत वर्ष की तुलना में कम एकड़ में गेहूं की बिजाई करने से इस बार तूड़े (गेहूं की फसल के अवशेष से बने पशु चारे) के दाम भी आसमान छू रहे हैं।
इस संकट को देखते हुए पहली बार हरियाणा के कई जिला प्रशासन ने तूड़े को लेकर धारा-144 लागू कर दी है। इसके तहत पहली बार तूड़े को राज्य की सीमा से बाहर ले जाने पर रोक लगाई गई है। राज्य में सरकार ने इन आदेशों की पालना के लिए बाकायदा प्रशासनिक अधिकारियों की ड्यूटी भी लगाई गई है। गाय-भैंसों के चारे की चिंता करते हुए यह आदेश दिए गए हैं, ताकि भविष्य में ज़िलों में पशु चारे की किल्लत ना हो। इधर, तूड़े के रेट बढ़ने से पशुपालकों के साथ ही आम आदमी पर भी इसका असर पड़ा है। अभी से दूध के दामों में 5 रुपए की बढ़ोतरी हो चुकी है, जबकि घी के दाम अधिक मांगे जाने शुरू हो गए हैं तथा 50 रुपए तक की वृद्धि की संभावना भी है।
हर वर्ष फसली सीजन में गेहूं की कटाई के साथ ही अनाज मंडी में अनाज आना शुरू हो जाता है। ऐसे में लोग सालभर के लिए गेहूं खरीद लेते हैं। इन दिनों मंडी में अनाज खरीद के लिए भीड़ रहती है, मगर इस बार मंडी तक गेहूं ही नहीं पहुंच रहा। स्थिति को समझते हुए और कम गेहूं उगाने से लोग सीधे खेत से ही खरीद रहे हैं। पिछली बार गेहूं का सरकारी समर्थन मूल्य 1975 रुपए था तथा सरकार ने 4 लाख से ज्यादा बैग खरीदे थे। इस बार 2015 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य है, मगर मंडी में सरकारी बिक्री के लिए गेहूं बहुत कम पहुंचा है। जगह -जगह पर गेहूं खुली बोली में ही 2100 से 2325 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है।
दूसरी तरफ प्रदेश के गोशाला संचालकों का कहना है कि लंबे समय से चारे की समस्या गोशालाओं के सामने आ रही है। अबकि बार तूड़े की गंभीर समस्या को भांपते हुए लोग स्टाक कर रहे हैं इसके कारण रेट बढ़ गए हैं। सरकार ने तूड़ी की समस्या को देखते हुए गेहूं के अवशेष जलाने और इनको जिलों से बाहर भेजने पर पाबंदी लगा दी है। इसको लेकर कई जिला प्रशासन ने आदेश जारी किए हैं। गेंहू, सरसों के फसली अवशेषों को जलाने से होने वाले प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य व संपत्ति को होने वाले नुकसान के मद्देनजर अवशेष जलाने पर प्रतिबंध लगाया है। आने वाले दिनों में पशु चारे की कमी ना हो, इसके लिए दंड प्रक्रिया नियमावली 1973 की धारा 144 के तहत फसली अवशेषों को जलाने के साथ-साथ इन्हें जिले से बाहर भेजे जाने पर भी रोक लगाई गयी है। आदेशों की अवहेलना में यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो उसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 188, संपठित वायु एवं प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1881 के तहत कार्रवाई की जाएगी।
ईंट भट्टा, गत्ता फैक्ट्री मालिक, दूसरे राज्यों व जिलों से तूडा, भूसा व कटी फसलों के अवशेष खरीद कर अवैध रूप से अन्य राज्यों, जिले से बाहर भेजते हैं तथा वाहनों को भी ओवरलोड कर भेजा जाता है। इस कारण भविष्य में पशुओं के चारे के दामों में वृद्धि, पशुओं के लिये सूखे चारे की कमी व बरसात कम रहती है तो यह स्थिति गम्भीर हो सकती है। दूसरे प्रदेशों में अवैध रूप से तूड़ा ले जाने से प्रदेश को वित्तीय हानि भी होती है तथा ओवरलोड वाहनों के सड़काें पर चलने से सड़क दुर्घटना की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता। प्रदेश में चारे की कमी है और यहां के पशुओं का चारा बाहर जाए न जाये; ऐसे इंतजाम किये जा रहें है।
प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों अनुसार गत 3 सालों 2019-20, 2020-21 और 2021-22 को छोड़कर गेहूं का रकबा गत 21 सालों में 40 हजार हेक्टेयर से ज्यादा ही रहा है। उन सालों में मंडियों में भी गेहूं की आवक खूब रही और तूड़ा भी पर्याप्त मात्रा में हुआ है। पिछली बार भी 37.5 हेक्टेयर में गेहूं की बिजाई हुई थी, जो कि इस बार 30 हजार में ही रही। पिछली बार सरसों के दाम अच्छे मिले तो इस बार किसानों ने सरसों की बिजाई ज्यादा की। पिछली बार एक एकड़ का तूड़ा 13 से 16 हजार बिका जबकि इस बार प्रति एकड़ 25 से 28 हजार तक बिक रहा है। प्रदेश सरकार प्रत्येक पशु का एक दिन का खर्च 40 पैसे प्रति पशु के हिसाब से देती है जबकि दूसरे राज्यों राजस्थान, दिल्ली व अन्य राज्यों में 40 रुपये प्रति गाय रोजाना के हिसाब से ग्रांट दी जाती है। हरियाणा सरकार को भी ग्रांट बढ़ानी चाहिए।
देखे तो गोशालाओं के सामने चारे का भयंकर संकट है। वे आने वाले दिनों में कैसे गायों के लिए चारे का प्रबंध कर पाएंगे। सरकार की मदद के बिना ये कुछ नहीं कर सकते। वर्तमान तूड़ा संकट के चलते प्रदेश की गाेशालाओ का वार्षिक चारा बजट बिगड़ता जा रहा है। पहले से स्टॉक किया हुआ तूड़ा खत्म होने को है। इन दिनों महंगाई के चलते हरा चारा भी दान में मिलना 70 प्रतिशत तक कम हो गया है।प्रदेश भर के गोशाला संचालकों के समक्ष गोवंश का पेट भरना बड़ी चुनौती हो गई है। कुछ ही दिनों में बिना चारे की उपलब्धता के गोवंश का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा। फिर लाचारी में गोवंश सड़क पर होंगे।
-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
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