सउदी अरब ने पाकिस्तान के साथ अपने दशकों पुरानें संबंधों को खत्म करने का ऐलान कर दिया है. अपने ही खास दोस्त को आंख दिखाना पाकिस्तान को इतना महंगा पड़ेगा, उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा. सऊदी अरब अब पाकिस्तान को न तो कर्ज देगा और न ही उसे तेल की सप्लाई करेगा. इतना ही नहीं, सऊदी ने तो वसूली भी शुरू कर दी है. कश्मीर पर दरअसल विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के एक विवादित बयान के बाद ही दोनों देशों के संबंधों में खटास आनी शुरू हो गई थी. एआरवाई चैनल पर कुरैशी को यह कहते हुए दिखा गया कि यदि आप इस मामले में आगे नहीं आते हैं तो मैं प्रधानमंत्री इमरान खान से उन इस्लामिक देशों की बैठक बुलाने के लिए मजबूर होऊंगा जो कश्मीर के मुद्दे पर हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं. सउदी अरब से साथ न मिलने के बाद कुरैशी ने एक विवादित बयान दिया था, जिसके बाद रियाद ने यह फैसला लिया है. दो दिन पहले ही रियाद ने इस्लामाबाद को कच्चे तेल की सप्लाई और लोन देने पर रोक लगा दी थी. मीडिल ईस्ट रिपोर्टर की एक खबर के अनुसार रियाद द्वारा लिए गए एकतरफा फैसले के बाद अब पाकिस्तान ने भी संबंधों को खत्म करने के लिए कह दिया है.
सऊदी अरब ने अब साफ तौर पर तेल की सप्लाई करने और कर्ज देने से मना कर दिया है. इतना ही नहीं, पाकिस्तान को उसे दिया गया 1 अरब डॉलर का कर्ज चुकाने पर मजबूर होना पड़ा, जो साल 2018 में सऊदी ने पाकिस्तान को 6.2 अरब डॉलर का कर्ज दिया था, उसी का हिस्सा है. दरअसल, नवंबर, 2018 में सऊदी अरब द्वारा घोषित 6.2 बिलियन डॉलर के पैकेज में कुल 3 बिलियन डॉलर का ऋण और 3.2 बिलियन डॉलर की एक ऑयल क्रेडिट सुविधा शामिल थी.
पाकिस्तान को ये झटका उस समय लगा है, जब उसे आईएमएफ से भी कोई मदद नहीं मिल पा रही है, क्योंकि आईएमएफ ने पिछले पांच महीने से किसी को भी मदद नहीं दी है. ऐसे में सऊदी अरब को पैसे लौटाने के साथ ही अब तेल की खरीदी से पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक पर बुरा असर पड़ रहा है, जो पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है.
दरअसल, जब से भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया है, तब से ही पाकिस्तान भारत के इस कदम के खिलाफ इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक करवाना चाहता है और इसके लिए लगातार दबाव बना रहा है. 22 मई को कश्मीर मसले पर ओआईसी के सदस्यों से समर्थन जुटाने में पाकिस्तान विफल रहने के बाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि इसका कारण यह है कि हमारे पास कोई आवाज नहीं है और हम बंट चुके हैं. बता दें कि इस्लामाबाद, इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए जोर दे रहा है क्योंकि भारत द्वारा पिछले साल ही आर्टिकल 370 को निरस्त कर दिया था, जिसने जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा दिया था.