क्यों नारी बेचैन- सत्यवान ‘सौरभ’

      सत्यवान ‘सौरभ’

नारी मूरत प्यार की, ममता का भंडार ।

सेवा को सुख मानती, बांटे खूब दुलार ।।

 

अपना सब कुछ त्याग के, हरती नारी पीर ।

फिर क्यों आँखों में भरा, आज उसी के नीर ।।

 

रोज कहीं पर लुट रही, अस्मत है बेहाल ।

खूब मना नारी दिवस, गुजर गया फिर साल ।।

 

थानों में जब रेप हो, लूट रहे दरबार ।

तब ‘सौरभ’ नारी दिवस, लगता है बेकार ।।

 

सिसक रही हैं बेटियां, ले परदे की ओट ।

गलती करे समाज है, मढ़ते उस पर खोट ।।

 

नहीं सुरक्षित आबरू, क्या दिन हो क्या रात ।

काँप रहें हम देखकर, कैसे ये हालात ।।

 

महक उठे कैसे भला, बेला आधी रात ।

मसल रहे हैवान जो, पल-पल उसका गात ।।

 

जरा सोच कर देखिये, किसकी है ये देन ।

अपने ही घर में दिखे, क्यों नारी बेचैन ।।

 

रोज कराहें घण्टियाँ, बिलखे रोज अजान ।

लुटती नारी द्वार पर, चुप बैठे भगवान ।।

 

नारी तन को बेचती, ये है कैसा दौर ।

मूरत अब वो प्यार की, दिखती है कुछ और ।।

 

नई सुबह से कामना, करिये बारम्बार ।

हर बच्ची बेख़ौफ़ हो, पाये नारी प्यार ।।

 

– सत्यवान ‘सौरभ’

रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, 

आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

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