कविता- कैसा है उपहास

तुच्छ परिंदे ही सदा, करते हैं आवाज़ ।
रहते सौरभ चुप मगर, उड़ते ऊँचे बाज़ ।।
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सौरभ ऐसे लोग भी, कुछ है मेरे पास ।
जिनके दिल में जहर है, और मुंह में मिठास ।।
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ये भी कैसा दौर है, कैसा है उपहास ।
अपनों से करते दगा, गैरों पे विश्वास ।।
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मानवता के नाम पर, खूब छपे सौजन्य ।
हुए बाजारू लोग भी, देखो सौरभ धन्य ।।
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काम निकलते हो जहां, रहो उसी के संग ।
सत्य यही बस सत्य है, यही आज के ढंग ।।
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बगुले से बगुला मिले, और हंस से हंस ।
कहाँ छुपाने से छिपे, तेरी संगत, अंश ।।
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सत्यवान सौरभ

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