कविता- “खोया खोया सा रहता हूं”

Blocking the sunset on a perfect afternoon

              अंकुर सिंह

आजकल जीवन बड़ा मुझको,
अकेला अकेला सा लगता है।
तुम्हारे साथ ना होने से,
जीवन खाली खाली सा लगता है।।

जब जब तन्हा होता हूँ मैं,
तुझ बिन बैचैन सा रोता हूँ मैं।
बन्द आँखों से देख तुम्हे मैं,
तुममें खोया सा रहता हूँ मैं।।

बिन तुम इस जीवन में,
अकेला अकेला सा रहता हूँ।
किसे बताऊँ मन की व्यथा,
ख़ुद में खोया खोया सा रहता हूँ।।

कमी खलती है मुझको भी तेरी
दूर रहकर उर में बसती तू मेरी।
कैसे करू तुम बिन मैं कल्पना,
मैं पतंग और तुम हो डोरी मेरी।।

भले दूर हो तुम आज मुझसे,
देखता मैं तुम्हे बन्द चक्षु से।
रहती तुम आज बड़े महलों में,
हर पल पाता तुझको मैं दिल से।।

पपीहा तड़पे स्वाति नक्षत्र को,
मैं भटकूँ तुमसे मिलन को।
आजकल खोया खोया सा रहता हूँ,
जन जन में निहारू मैं तुझको।।

एक बार तू ज़रा लौट के आ,
मुझको नींद की थपकी दे जा।
इस भोले भाले मेरे दिल को,
अपने घर का पता बता जा।।

तुम बिन खाली खाली सा लगता हूँ,
तुम बिन तड़प तड़प कर जीता हूँ।
प्रेम मिलन के बगिया में आ जा प्रिया,
तुम बिन खोया खोया सा रहता हूँ।।

अंकुर सिंह
चंदवक, जौनपुर,
उत्तर प्रदेश- 222129

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