भारतीय स्वाधीनता में कला-संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका : राजीव रंजन प्रसाद
रांची, पटना ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) झारखंड कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के सौजन्य से ‘भारतीय स्वाधीनता में कला-संस्कृति की भूमिका’ पर आधारित ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जहां देशभर से प्रबुद्ध वक्ताओं ने इसमें अपने विचार व्यक्त किये जो विविधता से परिपूर्ण और नई पीढ़ी के लिए भी काफी ज्ञानवर्द्धक साबित हुये।
विद्वजन जब कभी भी एक मंच पर एकत्रित होते हैं तो वह समागम अक्सर अद्वितीय साबित हो आता है; और जब उस माला को किसी सुन्दर संचालन के साथ पिरोया जाए तो प्रस्तुति ज्ञानवर्द्धक और लयबद्ध हो आती है। ऐसा ही हुआ संगोष्ठी कार्यक्रम में जहां अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) के झारखंड कला-संस्कृति प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित ऑनलाइन संगोष्ठी का ओयोजन किया जा रहा था। संगोष्ठी का विषय था – ‘भारतीय स्वाधीनता में कला-संस्कृति की भूमिका’। देशभर से प्रबुद्ध वक्ताओं ने इसमें अपने विचार व्यक्त किये जो विविधता से परिपूर्ण और नई पीढ़ी के लिए भी काफी ज्ञानवर्द्धक साबित हुए। यह जीकेसी-संगोष्ठी कोई दो घंटे तक चली जहां 900 से अधिक लाइव श्रोताओं ने इसे सुना सराहा लाभान्वित हुए।
संगोष्ठी कार्यक्रम का ऑनलाइन संचालन जीकेसी डिजिटल तकनीकी प्रकोष्ठ महासचिव सौरभ श्रीवास्तव ने किया। संगोष्ठी-संचालन कर रही थीं प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना, शिक्षाविद् एवं विदुषी संचालिका श्रीमती श्वेता सुमन। विषय पर अपनी प्रस्तावना पढ़ने से पहले उन्होंने संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और अध्यक्ष श्री राजीव रंजन प्रसाद, ग्लोबल अध्यक्ष, जीकेसी से विषय प्रवेश की अनुमति ली और विषय पर उनके सम्भाषण के लिए प्रथमतः उन्हें ही मंच पर आमंत्रित किया।
संगोष्ठी का विधिवत आरंभ कर श्री राजीव रंजन प्रसाद ने आगत सभी प्रबुद्ध वक्ताओं का स्वागत करते हुए अपने सम्भाषण के साथ विषय प्रवेश किया। अपने संप्रेषण में उन्होंने कहा कि आज एक ऐसे विषय को संगोष्ठी के लिए रखा गया है जिसमें भारतीय स्वाधीनता के दौरान अनाम योद्धओं को भी हमें याद करने का मौका मिला। समाज के विभिन्न विधाओं के क्षेत्रों के लोग चाहे वे कला संस्कृति, अध्यात्म, पत्रकार, साहित्यकार हों, सबने अपना अपना योगदान दिया जो अविस्मरणीय है। निसंदेह हम उनकी चर्चा के बगैर स्वाधीनता संग्राम को ना सही परिपेक्ष्य में जान पाएंगे ना हम ख्यातिप्राप्त और अनाम शहीदों को याद ही कर पाएंगे। और पूरे संग्राम में वैचारिक एकता स्थापित करने उसका प्रवाह करने में कला-संस्कृति से रचनाकारों, नाट्यकर्मियों, वादकों, गायकों का योगदान अतुल्य है, अमूल्य है।इससे पूर्व श्रीमती श्वेता सुमन ने अपनी विषय प्रवेश प्रस्तावना में कहा कि विश्व की सबसे प्राचीन इतिहास में संस्कृति का पर्याय है भारत। भारत की संस्कृति उदयीमान सूर्य के समान वसुधैव कुटुम्बकम का अनुकरण करती हुई अनेकता में एकता की विशिष्टता को मूर्तरूप से जीती है।
देश की आजादी तक के काल चक्र में भारत की कला संस्कृति का विशेष योगदान रहा है। प्रस्तावना में संस्कृति संरक्षण का संदेश देती हुई स्वरचित पंक्तियां को श्वेता सुमन ने कुछ यूं उकेरा-
….तुम भूल न जाना उस योगदान को/उन योद्धा के गौरव गान को
अपनी कलम से जिसे उकेरा है /कला संस्कृति के स्वाभिमान को
बाजार में मोल लगा न देना /भारत के सम्मान को
व्यापार की भेंट चढ़ा न देना/अश्लील इसे बना न देना,
इसका जो मोल लगाओगे/क्या स्वाभिमान बेच के खाओगे ,
ये हाल रहा तो शायद इक दिन/आत्मसामान ही गिरवी पाओगे
सशक्त चेतना का संचार हो जिससे/वो साधन कहाँ से लाओगे
संस्कृति कैसे बचोगे/नई पीढ़ी को क्या सिखलाओगे…
इसके बाद जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री प्रेम कुमार को मंच पर आमंत्रित किया गया जहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि से लेकर परिणति तक की चर्चा करते हुए कहा कि समाज को कला-विधाएं ही प्रेरित करती आ रही हैं। हमारे युवाओं को भी इससे लाभन्वित होना चाहिए।वहीं वरिष्ठ साहित्यकार, अधिवक्ता, पूर्व शिक्षिका और महिला उत्थान पर प्रगतिशील महिलाओं की प्रेरणाश्रोत श्रीमति माधुरी सिन्हा जी ने अपना सम्प्रेषण यह कहते हुए आरंभ किया कि ‘हरि अनंत हरिकथा अनंता’। वास्तुकला, चित्रकला एवं अन्य विभिन्न कला विधाओं पर व उनके योगदान पर विस्तुत चर्चा की। बताया कि कैसे अंग्रेजकाल में आम व्यक्ति के मुंह पर ताला लगा दिया गया था तुरंत अरेस्ट कर लिया जाता था तो यही कलाकारों व कला विधाओं ने जनजागरण का काम किया था स्वतंत्रा संग्राम में। अनेक सत्य उदाहरणों के माध्यम से इस बात पर बल दिया कि हमें फिर से एकजुट होने की आवश्यकता है। वहीं संचालिका ने इनके वक्तव्य से ‘टके सेर खाजा टके सेर भाजा’ को उद्धरित करते हुए कहा कि आज कलाकारों के लिए परिवेश ऐसा ही हो गयाा है जो चिंतनीय है।
इसके पश्चात् अनेक सम्मानप्राप्त शिक्षिका, प्रस्तोता व साहित्यकार श्रीमति गीता कुमारी ने विषय पर अपने सम्पेषण पाठ में स्वाधीनता संगाम में योगदान देनेवाले अनेक कला साधको की चर्चा की जिसमें कायस्त मूल के राजाओं से लेकर साहित्यकारो, समाजसुधारकों संतो व कलाकारों के नाम विशेष तौर पर उद्धरित किये।फिर श्रीमति कस्तूरी सिन्हा, जानीमानी कवियत्री, रंगकर्मी एवं प्रस्तोता ने अपनी व अन्य साहित्य विभूतियों की रचनाओं को पाठ करते हुए कहा कि कैसे आजादी की अलख जगाने में नाट्यकर्मी और रचनाकार समग्र उत्थान के लिए काम करते थे। नारी शिक्षा में तब की महिलाओं का भी काफी योगदान रहा जो स्वाधीनता संग्राम में वैचारिक परिपक्वता का बड़ा कारण बना। उदाहरणस्वरूप बताया कि कैसे उनकी नानी ने सामाजिक और पारिवारिक विद्रोह का सामना करते हुए भी उस जमाने में भी शिक्ष ग्रहण की और चंपारण की प्रथम महिला शिक्षिका नियुक्त हुईं।
सारतः उन्होने महिला सशस्त्रीकरण व स्वतंत्रता संग्राम में दूसरी आबादी की महत्ता पर जोर दिया।वहीं सिंगरोली से शिक्षाविद्, साहित्यकार व शास्त्रीय नृत्यकला में निपुण पेशे से शिक्षिका श्रीमति वैशाली तरूण ने कहा कि साझा प्रयास ही स्वाधीनता का मुख्य कारण बना जिसमें कलाकारों, चिंतकों, साहित्यकारों से लेकर साधू व संतों का भी योगदान है। अपने झारखंड के बिरसा मुंडा की देश की स्वतंत्रता को पाने में योगदान और झारखंडभूमि से अन्य क्रांतिकारियों की भी चर्चा की।जीकेसी के झारखंड कला संस्कृति सचिव श्री रजत नाथ ने अपने विषय पाठ में स्वाधीनता संग्राम के बदलते हुए परिवेश व स्वरूप पर चर्चा की कि कैसे कालांतर में आजादी का स्वरूप में बदलाव आया। मंगल पांडे से आरंभ आजादी की जंग जो शक्ति पर आधारित थी अंत में वो महात्मा गांधी की अहिंसात्मक आंदोलन में परिणित हो गया।
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की पुस्तक ‘सोजे वतन’ वह पहला साहित्यिक पहल था जो साहित्य के माध्यम से अंग्रेजो के विरूद्ध बिगूल फूंकने के काम किया।उसके बाद उन्होने संचालन के लिए श्रीमति श्वेता सुमन का आभार प्रकट किया और धन्यवाद दिया। झारखंड सचिव ने कहा कि झारखंड इकाई का गठन हुए अभी मात्र सप्ताह हुआ। हमलोगों ने इस कार्यक्रम की परिकल्पना की। इसमें हमें सशक्त सहयोगियों का साथ मिला। झारखंड इकाई ने ऐसे आयोजन प्रति माह करने का निर्णय लिया है।अंतिम वक्ता के रूप में जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व झारखंड प्रभारी श्री पूर्णेन्दु पुष्पेश ने अपने अति संक्षिप्त संबोधन में बस इतना कहा कि कला-संस्कृति ही वैचारिक परिपक्वता लाने में सक्षम हैं।
स्वाधीनता संग्राम में गरम दल हो या नरम दल दोनो ने कला विधाओं का भरपूर सहयोग लिया था। त्रासदी है कि आज कला व कलाकारों के महत्व को मानो नकारा जा रहा है और जिस पर प्रबुद्ध कलाकारों को काम करने की जरूरत है।अंत में धन्यवाद ज्ञापन चर्चित उपन्यासकार व जीकेसी झारखंड कला-संस्कृति महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्षा श्रीमति अनिता रश्मि ने किया। सभी वक्ताओं के संबोधनों से उक्तियां उद्धरित करते हुए सबको व्यक्तिगत तौर पर धन्यवाद दिया। मुख्य अतिथि और जीकेसी के सरसंचालक श्री राजीव रंजन जी का मंच देने के लिए धन्यवाद किया, संचालिका को सराहते हुए उपस्थित सभी ऑनलाइन दर्शकों-श्रोताओ का धन्यवाद किया।