दुनिया भर में लॉकडाउन के चलते सभी स्कूलों को भी बंद कर दिया गया है। भारत के स्कूलों में मार्च में परीक्षाएं हो जाती है और अप्रैल में फिर ने नयी कक्षाएं शुरू हो जाती है। लेकिन स्कूल बंद होने के कारण इस बार बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाई है। इस समस्या का खासकर प्राइवेट स्कूलों ने डिजिटल माध्यम से बच्चों को शिक्षा देने का उपाय निकाला। जिसमें ऑनलाइन क्लासेस वाट्सएप ग्रुप बना कर बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। लेकिन इन माध्यमों में जो पठन सामग्री बनाई गयी है या भेजी जा रही है वो बच्चों को ध्यान में रखते हुये नहीं बनाई गयी है।
उचित पाठ्य सामग्री का अभाव
ज्यादातर स्कूल पुराने अपलोडेड वीडियो जगह-जगह से उठाकर बच्चों को शेयर कर रहे है। सामग्री पाठ्यक्रम अनुरूप न होने के कारण इसे समझने में बच्चों को परेशानी हो रही है। वैसे तो देश के कई स्कूल ऑन लाइन पढ़ाई करवा रहे हैं। लेकिन तमाम स्कूल ऐसे भी हैं जो सुविधा सम्पन्न नहीं है, ऐसे में वो ऑनलाइन पढ़ाई करवा पाने में असमर्थ हैं। वैसे भी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बच्चों के पास भी तो मोबाईल और लैपटॉप की व्यवस्था होनी जरूरी है। जब भारत में केवल 24 फीसदी घरों तक ही इंटरनेट की उपलब्धता है तो ऑनलाइन शिक्षा की सार्थकता पर स्वयं सवाल उठ जाते हैं।
ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा से वंचित छात्रों के अभिवावकों का चिंतित होना स्वाभाविक है। असल में स्कूल प्रबंधन चाह रहा है कि लाॅकडाउन के दौरान बच्चे शिक्षा से विमुख न हो। वो नयी क्लास के हिसाब से अपना पाठयक्रम पढ़े। ऑनलाइन पढ़ाई में कई व्यवाहारिक दिक्कतें भी हैं, लेकिन लाॅकडाउन में जब स्कूल खोलना खतरे से खाली नहीं है, ऐसे में ऑनलाइन क्लास ही बड़ा सहारा है। ऑनलाइन पढाई के दौरान घर में बच्चों को स्क्रीन पर घंटो बैठना पड़ रहा है। बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
उपकरण एवं इंटरनेट की समस्या
ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों का शिक्षा माध्यम अंग्रेजी है जिसे स्वंय से समझना इन बच्चों के लिए बहुत मुश्किल है. दूसरी बड़ी चुनौती इन बच्चों के ऑनलाइन क्लासेस के लिए आवश्यक संशाधनों का न होना है. ऑनलाइन क्लासेस के लिए एंड्रयाईड फोन/कम्प्यूटर/ टेबलेट, ब्राडबैंड कनेक्शन,प्रिंटर आदि की जरुरत होती है. ज्यादातर ग्रामीण बच्चों के परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं होती उसके चलते उनके पास डिजिटल क्लासेस के लिए आवश्यक उपकरण नहीं होते हैं. जिसके कारण ये क्लास नहीं कर पा रहे जबकि इस समय इन बच्चों के क्लास के अन्य साथी ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से पढाई कर रहे हैं. गिनने लायक परिवार ही ऐसे होगें जिनके पास ये उपकरण उपलब्ध होंगे .
लोकल सर्कल नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने एक सर्वे किया है जिसमें 203 ज़िलों के 23 हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया. जिनमें से 43% लोगों ने कहा कि बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस के लिए उनके पास कम्प्यूटर, टेबलेट, प्रिंटर, राउटर जैसी चीज़ें नहीं है. ग्लोबल अध्ययन से पता चलताहै कि केवल 24% भारतीयों के पास स्मार्टफोन है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट 17-18 के अनुसार 11% परिवारों के पास डेस्कटॉप कंप्यूटर/ लैपटॉप/नोटबुक/ नेटबुक/ पामटॉप्स या टैबलेट हैं. इस सर्वे के अनुसार केवल 24% भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा है, जिसमें शहरी घरों में इसका प्रतिशत 42 और ग्रामीण घरों में केवल 15% ही इंटरनेट सेवाओं की पहुँच है.
इंटरनेट की उपयोगिता भी राज्य दर राज्य अलग होती है जैसे दिल्ली, केरल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में 40% से अधिक घरों में इंटरनेट का उपयोग होता है वही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में यह अनुपात 20% से कम है.स्कूलों द्वारा डिजिटल पढ़ाई के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाये जा रहे हैं और उसमें स्कूल रिकार्ड में बच्चों के दिए गए नंबरों को जोड़ा जा रहा है लेकिन इन बच्चों के पास फ़ोन ही नहीं है, रिकार्ड में जो नम्बर होते हैं वो परिवार के किसी बड़े के होते है. क्योंकि इन बच्चों के अपने फ़ोन तो होते नहीं हैं बल्कि कई बार ये भी होता है कि पूरे घर के लिए एक फ़ोन होता है और जिसका सबसे ज्यादा उपयोग परिवार का मुखिया करता है, या फोन में वाट्सएप ही नहीं है तो बच्चे कैसे पढ़ पायेंगे.
ग्रामीण इलाकों के बच्चों की दिक्क्तें
एक दिक्कत नेटवर्क की भी सामने आ रही है. लॉकडाउन के कारण अभी इंटरनेट का उपयोग बहुत हो रहा है, जिसके चलते स्पीड कम हो गयी है, इन बच्चों के परिवार के पास नेट प्लान भी कम राशि का होता है, जिससे नेट में बार-बार रुकावट आती है, पठन सामग्री डाउनलोड होने में ज्यादा समय ले रही है, क्वालिटी भी खराब होती है जिससे उसे पढ़ना और समझना बच्चों के लिए मुश्किल होता है. क्यू.एस. के सर्वे के अनुसार नेटवर्क की दिक्कत को देखें तो ब्रॉडबैंड/मोबाइल में सबसे ज्यादा प्रॉबलम खराब कनेक्टिविटी की ही आ रही है ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की अनुपलब्धता भी एक रुकावट है. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2017-18 में गांवों किये सर्वेक्षण के आधार पर भारत के केवल 47% परिवारों को 12 घंटे से अधिक जबकि 33% को 9-12 घंटे बिजली मिलती है और 16% परिवारों को रोजाना एक से आठ घंटे बिजली मिलती है.
हां, एक बात जरुर है कि निजी शिक्षा संस्थान अभिभावकों पर दबाव बनाकर इसका शुल्क वसूल कर रहे हैं। निजी स्कूलों ने अभिभावकों पर नयी पुस्तकें खरीदने और फिर फीस जमा करने के लिए नोटिस जारी कर दिया है। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर भी अभिभावकों के द्वारा फीस का विरोध किया जा रहा है। मानव एवं संसाधन विकास मंत्रालय को यह विषय गंभीरता से लेना चाहिए। ये बात सही है कि संस्थान के प्रबन्धन को भी वेतन सहित अन्य खर्चे वहन करना पड़ रहे हैं किन्तु विद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षण कार्य नही होने से काफी खर्च घटे भी होंगे। सरकार को समन्वय स्थापित करते हुए दोनों पक्षों के आर्थिक हित सुरक्षित रखने संबंधी प्रबंध करना चाहिए।
मानसिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं
इन सबके अलावा ऑनलाइन पढाई से बच्चों में आंखों में समस्या होने लगी है। याद करने की शक्ति भी कम हो रही है। क्योंकि बच्चा हर चीज कंप्यूटर पर सेव कर लेता है। किताब से तो कोई पढ़ाई हो नहीं रही, जिसमें बच्चा याद भी करे। शिक्षक मूल्यांकन के अभाव में बच्चे ऑनलाइन पाठ्यक्रम में उस रूचि से काम नहीं कर पा रहे जिस रूचि से वो विद्यालय में करते है। जिस तरह मोबाइल आने से हमें नंबर याद होना बंद हो गया है। उसी तरह से ऑनलाइन पढ़ाई से बच्चों की मेमोरी लॉस हो रही है।
क्या किया जाए अब ??
मनोविश्लेषकों का मानना है कि ऑनलाइन पढ़ाई माध्यमिक कक्षा के बच्चों के लिए ठीक है, लेकिन कई प्ले स्कूल एवं प्रारंभिक स्कूलों द्वारा भी छोटे उम्र के बच्चों के लिए भी ऑनलाइन माध्यम से पाठ्यक्रम शुरू की गई है। ऐसे में अभिभावकों को विशेष रूप से सजग रहने की जरूरत है। बड़े उम्र के बच्चों पर भी नजर रखे जाने की जरूरत है। लॉकडाउन को दो माह से अधिक समय बीत चुका है। घरों में अधिकांश समय मोबाइल और लैपटॉप से चिपके रहने के कारण बच्चों की रचनात्मक क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसका सीधा असर बच्चों के मानसिक विकास पर होगा।
प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
(उपयुक्त आलेख में दिए गये तथ्य और विचार लेखक के निजी हैं)