भक्ति – जन.. जागरण का केन्द्र—–निरोगधाम

जन.. जागरण का केन्द्र—–निरोगधाम
राजधानी पटना से सटे 13 किलोमीटर की दूरी पर पुनपुन नदी के तट पर अवस्थित ब्रह्म बाबा मंदिर अलावलपुर निरोगधाम सैकड़ों गांव का आस्था का केंद्र है।करीब 400 वर्ष पूर्व राजपूताना, राजस्थान से चलकर पाटलिपुत्र की धरती पर पुनपुन नदी के किनारे जहां फिलहाल ब्रह्म बाबा मंदिर स्थित है सूरज चंद्र देव एवं भावा चंद्र देव नामक दो भाईयों ने आकर अपना बसेरा बनाया था।

दोनों भाईयों ने मिलकर मिट्टी का मंदिर का निर्माण किया। ब्रह्म बाबा सेवा एवं शोध संस्थान के संस्थापक सह संयोजक संजय कुमार सिंह ने बताया कि निरोगधाम ब्रह्म बाबा मंदिर धर्मान्धता, अंधविश्वास, पाखंड, कुरुतियों, रुढिवादिता, पंरपरा के खिलाफ जन.. जागरण का केंद्र है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की स्थापना वृक्ष के रुप मे किया गया है।

औषधीय पौधा से लैस ब्रह्म बाबा मंदिर श्रद्धालु भक्तों का आकर्षण का केंद्र हैबना हुआ है। इस क्षेत्र के गौ पालक सैकड़ों बर्षो से मंदिर का भभूत लगाकर अपनी जानवरों का ईलाज करते है, इसलिए इस मंदिर का नाम निरोगधाम रखा गया है। यहां का दर्शनीय वृक्ष कल्पवृक्ष है,शास्त्रों के वर्णन के अनुसार इस वृक्ष की प्राप्ति समुद्र मंथन से हुआ है, जिसकी वैज्ञानिक मान्यता है कि इस वृक्ष का उम्र पांच से छह हजार बर्ष आंका गया है। जिसके निचे साधना करने से आपकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है।

बाबा के असीम अनुकंपा से इस मंदिर का कोई चंदा और चठावा नही होता है और न हीं इस मंदिर में कोई पंड़ा और पूजारी है, फिर भी यह मंदिर अपने आप में व्यवस्थित है। इस मंदिर के आसपास तीन किलोमीटर मे कोई गांव नहीं है, सैकड़ों वर्षों से पगडंडियों के सहारे श्रद्धालु भक्त पहुंच कर बाबा का दर्शन करते थे और खिर लिट्टी का प्रसाद बनाकर चठाते है।

ब्रह्म बाबा की कृपा से सूवे बिहार के सभी सडक मार्ग से यह मंदिर जुड़ गया है। इस मंदिर में सूरज चंद्र देव पुस्तकालय भी है और यहां से ब्रह्म ज्योति भी प्रकाशित होती है। भविष्य में यहां बह्म बाबा सेवा एवं शोध संस्थान द्वारा निःशुल्क विधालय, अस्पताल एवं कोचिंग संस्थान निर्माण की योजना है। इस गांव का ब्रह्म स्थान वहां के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व करता है।

बदलते भौतिकवादी युग में एक बार पुनः ब्रह्म के महत्व एवं ऐसे स्थानों के संरक्षण के नाम पर लोगों को एक प्रगतिशील सोच के साथ एकजुट होना पडेगा। गांव से लेकर शहर तक ब्रह्म स्थान के नाम पर अंकित सार्वजनिक भूमि का एक बडा हिस्सा अतिक्रमण किया हुआ है। ऐसे स्थानों के अध्यात्मिक महता जहां गांव से बाहर पीपल बरगद जैसे वृक्षों को ब्रह्म का निमित्त मानकर लोग पूजा एंव प्रार्थना करते है, जिसके माध्यम से आपसी एकता तथा धार्मिक एकात्मवाद को मजबूती मिलती है। जन आस्था का केन्द्र राज्य भर के श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है।
ब्रह्म भूमि यह जग कहलाता,
परारव्ध बस नर आ पाता…..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *