हमारे धार्मिक ग्रंथों में लिखा है – त्रेतायुग का मुख्य तीर्थ स्थल पुष्कर, द्वापरयुग का मुख्य तीर्थ स्थल कुरूक्षेत्र, कलयुग का मुख्य

तीर्थ स्थल गंगा और सतयुग का मुख्य तीर्थ स्थल नैमिषारण्य धाम। तो आइए आज हम आपको लेकर चलते हैं नैमिषारण्य धाम जिसे स्थानीय लोग नीमसार भी कहते हैं।
नैमिषारण्य धाम @ नीमसार उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थल है, जो लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी के तट पर स्थित है। यह स्थल विभिन्न पुराणों में उल्लेखित है। इसे ऋषि-मुनियों की तपःस्थली माना गया है।
वराह पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने निमिष मात्र से दानवों का संहार किया, जिससे इस क्षेत्र को ‘नैमिषारण्य’ कहा गया। वायु पुराण और कूर्म पुराण के अनुसार भगवान के चक्र की नेमि (बाहरी परिधि) इसी स्थान पर गिरी थी, जिससे यह ‘नैमिषारण्य’ कहलाया। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस क्षेत्र में अधिक मात्रा में पाए जाने वाले ‘निमिष’ नामक फल के कारण इसे नैमिष कहा गया।
मार्कण्डेय पुराण में नैमिषारण्य का उल्लेख 88,000 ऋषियों की तपःस्थली के रूप में आता है। महर्षि लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा ने यहीं पर ऋषियों को पौराणिक कथाएँ सुनाई थीं। महर्षि शौनक ने यहाँ दीर्घकालीन ज्ञान सत्र का आयोजन किया था। ब्रह्माजी द्वारा दिए गए चक्र की नेमि जहाँ गिरी, वहीं पर आश्रम स्थापित किया गया और यह स्थल ‘नैमिषारण्य’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
आइए अब हम जानते हैं नैमिषारण्य धाम में मौजूद कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में।
चक्रतीर्थ
नैमिषारण्य का प्रमुख तीर्थ स्थल चक्रतीर्थ है, जहाँ एक षट्कोणीय जलकुंड है। यह माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा द्वारा छोड़ा गया चक्र इसी स्थान पर गिरा और यहाँ एक जलधारा प्रकट हुई। ऐसा माना जाता है कि इसके जल में स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
ललिता देवी मंदिर
पुराणों में नैमिषारण्य में लिंग धारिणी नाम से देवी का वर्णन है, लेकिन अब यह ललिता देवी के नाम से विख्यात है। देवी भागवत में भी एक श्लोक है – वाराणसयां विशालाक्षी नैमिषेलिंग धारिणी, प्रयागे ललिता देवी कामुका गंध मादने….। नैमिषारण्य में ललिता देवी का वर्णन 108 देवी पीठों में आता है। देवी भागवत में लिखा है की देवी, दक्ष द्वारा अपने पति के अपमान को न सह सकीं और आहत होकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। तब भगवान् शंकर जी ने अपने गणों के साथ यज्ञ को नष्ट कर डाला और सती के शव को लेकर इधर-उधर विचरण करने लगे। उनको नरसंहार से विरत ना होते देखकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के 108 टुकड़े कर डाले। शव के अंश जिन-जिन स्थान पर गिरे वहां पर देवी पीठ बनी बना ।नैमिषारण्य धाम में सती का हृदय गिरा था, जिससे यह स्थान भी एक प्रसिद्ध सिद्ध पीठ बना।
हनुमान गढ़ी
नैमिषारण्य धाम में स्थित चक्र तीर्थ के बाएं और लगभग आधे किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंचे टीले पर लगभग 12 फीट लंबे दक्षिण मुखी श्री हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है। श्री हनुमान जी को समर्पित यह नैमिषारण्य में यह एक अति प्राचीन पवित्र स्थल है, जिसका एक समृद्ध पौराणिक महत्व है। इस मंदिर की स्थापना एक महत्वपूर्ण पौराणिक घटना है जो पाताल से भगवान हनुमान के उद्भव को दर्शाती है। इस आयोजन में उनके साथ भगवान श्री राम और लक्ष्मण भी दृश्यमान होते हैं । यह एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जहां श्री हनुमान जी की पत्थर की मूर्ति है जो प्रभु श्री राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर ले जा रही है। इस मंदिर को दक्षिणेश्वर मंदिर भी कहते हैं
सूत गद्दी एबं व्यास गद्दी
– यह वह स्थान है जहाँ सूतजी ने महर्षि शौनक सहित 88,000 ऋषियों को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी। यहाँ एक मंदिर भी स्थित है, जहाँ राधा-कृष्ण और बलरामजी की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। व्यास गद्दी के बारे में मान्यता है कि यहाँ महर्षि व्यास ने वेदों और पुराणों का संकलन किया था।
अक्षय वट वृक्ष
नैमिषारण्य में ही पांच हजार साल से भी ज्यादा पुराना एक वट वृक्ष है जिसके नीचे ऐसा कहा जाता है,वेद व्यास जी ने चारों वेद, भागवत गीता, श्री मद्भागवत, 6 शास्त्र, 18 पुराणों के उपदेश दिए थे।
नैमिषारण्य में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस की एक चौपाई लिखी हुई है – तीरथवर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिद्धिदाता। यहां स्थित अक्षय वट वृक्ष के नीचे महर्षि वेदव्यास के शिष्य महर्षि जैमिनी ने वर्षो तपस्या की थी।
भूतेश्वर नाथ मंदिर
यह बहुत ही पुराना स्वयंभू मंदिर है।जो चक्रतीर्थ परिसर में स्थापित है। माना जाता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है । ऐसा कहा जाता है कि बाबा भूतनाथ इस मंदिर में प्रातः बाल रूप में , दोपहर में रौद्र रूप में तथा संध्या काल में दयालु रूप में रहते हैं।
श्रृंगी ऋषि
श्रृंगी ऋषि को समर्पित एक छोटा सा मंदिर चक्र तीर्थ परिसर में ही मौजूद है जहां उन्होंने साधना की थी। इस मंदिर में श्रृंगी ऋषि की एक अनोखी प्रतिमा है। इस प्रतिमा में मुख्यतः उनका शीश है जिसके दोनों और दो बड़े-बड़े सींग हैं । इसके साथ ही यहां श्रृंगी ऋषि और माता शांता की संगमरमर की प्रतिमाएं हैं
पांडव किला
द्वापर युग में आज़ से लगभग 5500 वर्ष पहले पाण्डवों द्वारा पातालपुरी हनुमान मंदिर स्थापित किया गया था, जिसका वर्णन स्कंद पुराण में है। अपने अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों ने यहीं पर हनुमान जी की पूजा अर्चना की थी एवं अज्ञातवास का समय बिताया था।इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और पांडवों की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
रूद्रावर्त मन्दिर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सीतापुर के नैमिषारण्य में रूद्रावर्त नामक स्थान पर गोमती नदी के किनारे बने एक कुण्ड के अन्दर स्थित शिवलिंग को बाबा रूद्रावर्त के नाम से जाना जाता है। वहीं कुण्ड के बाहर कुछ ही दूरी पर एक मन्दिर भी है जिसमें भगवान शिव का रूद्र अवतार के रूप में शिवलिंग स्थापित है। रूद्रावर्त की मान्यता इस वजह से और बढ़ जाती है, कि यहाँ एक निश्चित स्थान पर ही बेलपत्र जल के अन्दर जाती है और इसके लिए भक्तों को पहले “ॐ नमः शिवाय” का जप करना होता है। रूद्रावत में बेलपत्र ही नहीं गाय के दूध को इस कुण्ड के जल में अन्दर तक एक ही धार के साथ जाते हुए भी देखा जाता है। रूद्रावर्त में हैरान कर देने वाली तस्वीरें तब दिखाई देती है ,जब भगवान शिव को अर्पित किये गये फलों को जल में डालने पर चन्द क्षणों में प्रसाद के रूप में उनमें से एक या दो फल वापस जल में ऊपर आकर तैरने लगते है। जिसको श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
दधीचि कुंड (मिश्रित तीर्थ)
यह नैमिषारण्य से कुछ दूरी पर स्थित है। इस कुंड का निर्माण राजा विक्रमादित्य के काल का माना जाता है I बाद में रानी अहिल्याबाई ने इसका जीर्णोधार करवाया I दधीची कुंड के बीच में एक कुआँ है I दधीची कुंड के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर समस्त तीर्थो का ज़ल एकत्रित किया गया था I पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि दधीचि ने वृत्तासुर के वध के लिए इंद्र को अपनी अस्थियाँ दान करने से पहले यहाँ स्नान किया था। इसे ‘साढ़े तीन करोड़ तीर्थों’ का संगम स्थल माना जाता है।
पिप्पलाद
पीप्पलाद महर्षि दधीचि के पुत्र थे। महर्षि दधीचि के अस्थि दान के उपरांत उनकी पत्नी के द्वारा काया त्याग से पूर्व गर्भस्थ शिशु को योग द्वारा स्वयं से पृथक कर पीपल के छत्रछाया में रखा गया था। पीपल के एक डाल का दुग्धपान करने के कारण पीपल पेड़ की छत्रछाया में पालन पोषण होने की वजह से शिशु का नाम पीप्पलाद पड़ा। आज़ भी पीपल का यह प्राचीन पेड़ वहां मौजूद है।
नैमिषारण्य धाम में 84 कोस की परिक्रमा की जाती है। माना जाता है कि इस परिक्रमा से समस्त तीर्थों और 33 कोटि देवताओं के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। जब हम वहां पहुंचे थे तो यह परिक्रमा चल रही थी। परिक्रमा समाप्ति से पहले एक निश्चित जगह पर पड़ाव डाला जाता है। परिक्रमा मार्ग और पड़ाव पहले से ही तय रहता है। लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ परिक्रमा के दौरान यहां उमड़ती है।
देश-विदेश से श्रद्धालु इस पवित्र यात्रा में भाग लेते हैंI
नैमिषारण्य धाम केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे समस्त तीर्थों का सार कहा जाता है। यहाँ की यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास किया जाता है। नैमिषारण्य न केवल एक पौराणिक तीर्थ स्थल है, बल्कि यह सनातन धर्म की महान परंपराओं और ऋषि संस्कृति का सजीव प्रतीक भी है। यहाँ स्थित विभिन्न मंदिर, तीर्थ और कुंड भक्तों को आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।
✒️ मनीश वर्मा’मनु’