मदर्स डे यानी मातृ दिवस के छद्म पर…

माता-पिता ने हमें पूरा जीवन दिया, लेकिन हम उन्हें एक दिन में समेटने के लिए तत्पर हैं। उस एक दिन को भी मदर्स डे और फादर्स डे का नाम देकर बाज़ार के हाथों में सौंप देना चाहते हैं।

यह विशुद्ध पश्चिमी स्टाइल है, जिसकी संस्कृति हमसे बिल्कुल अलग है। वहां आए दिन बच्चों के मां-बाप अदलते-बदलते रहते हैं। बच्चों की मां पार्टनर बदल लेती है, तो बच्चों के बाप भी बदल जाते हैं। और जब बच्चों के बाप अपना पार्टनर बदल लेते हैं, तो बच्चों की मां भी बदल जाती है।

इस प्रकार पश्चिम में बच्चों के कई-कई मां-बाप हो जाते हैं। इसलिए उन लोगों ने अपने जैविक मां-बाप को याद करने की खानापूर्ति के लिए मदर्स डे और फादर्स डे नाम से एक-एक दिन रख दिया है।

लेकिन हम भारतीय मदर्स डे और फादर्स डे का क्या करें? हमारे यहां तो हर रोज़ मातृ दिवस और पितृ दिवस है। तैत्तिरीय उपनिषद में कहा गया है–

“मातृ देवो भव। पितृ देवो भव।”

भगवान गणेश को सनातन संस्कृति में प्रथम पूज्य माना ही इसलिए गया, क्योंकि उन्होंने बताया कि माता और पिता में ही तीनों लोक समाहित हैं।

रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास लिखते हैं–

प्रातकाल उठि कै रघुनाथा।
मातु पिता गुरु नावहि माथा।

यानी भगवान श्री राम प्रतिदिन सुबह उठकर माता, पिता और गुरु के चरणों में अपना शीश झुकाते हैं।

लेकिन आज हमारी संस्कृति पर लगातार आक्रमण हो रहा है। पश्चिमी संस्कृति, अंग्रेज़ी, बाज़ार और चमक-दमक के प्रभाव में बच्चे और नौजवान रास्ता भटक रहे हैं।

देश की अर्थव्यवस्था का ढांचा बदलने से तो यह भटकाव अब फ़्री फॉल की स्थिति में आ गया है। जैसे-जैसे भारत की कृषि प्रधानता खत्म हो रही है, वैसे-वैसे संयुक्त परिवार भी समाप्ति की ओर अग्रसर हैं। न्यूक्लियर परिवारों से परिवार का मूल तत्व नदारद है। माँ-बाप, भाई-बहन, बेटे-बहुएं – सभी अपनी-अपनी मर्यादाएं भूलते जा रहे हैं।

चाचा-चाची, चचेरे भाई-बहन तो बिहार की बोली में अब “गोतिया” ही बन चुके हैं! उनके बीच लड़ाइयां भी इतनी हैं कि अनेक परिवार आज पुलिस और कोर्ट के मोहताज हो गए हैं। अनेक परिवारों में आपसी संवाद तक नहीं है। शादी-ब्याह, मुंडन-जनेऊ, जन्म-मृत्यु, पर्व-त्यौहारों तक पर लोग एक दूसरे के साथ मिलने-जुलने और गिले-शिकवे मिटाने को तैयार नहीं हैं।

कुछ दिन पहले जब मैंने परिवार के क्षरण और रिश्तों की मर्यादाएं टूटने पर अमादा होते जा रहे हैं तो ज़्यादातर लोगों से बातचीत करने से स्पष्ट हो गया कि आज अधिकांश परिवारों में प्रेम, त्याग, कृतज्ञता, सद्भावना का नहीं; विद्वेष, स्वार्थ, कृतघ्नता और दुर्भावना का डेरा बन चुका है।

कैसी विडंबना है कि हर पिता चाहता है कि उसके बच्चों के बीच प्रेम बना रहे, बंटवारा न हो; लेकिन वह स्वयं अपने सहोदर भाइयों से बांटकर अलग हो चुका है। वह भी अपने माता-पिता की आंखों के सामने। झगड़े कर रहा है सो अलग। दिमाग में एक-दूसरे के प्रति नफरत और ज़हर भरे कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने से भी नहीं चूक रहा।

ऐसे परिदृश्य में चंद भावुक लोग मुझसे कहते हैं कि आप लेखक हैं, समाज के पथ-प्रदर्शक हैं, आप परिवार की आलोचना न करें, समाज में गलत संदेश जाएगा। क्या वे यह कहना चाहते हैं कि समाज में कथित रूप से गलत संदेश न जाए, इसके लिए गलत बातें देखकर भी आंखें बंद किये रहूं?

मैं तो दुनिया का पहला आदमी होऊंगा, जो कहेगा कि सब कुछ त्याग कर भी परिवार को बचा लीजिए, उसका प्रेम तत्व खत्म न होने दीजिए। उसमें एक-दूसरे के प्रति आदर और लिहाज बचे रहने दीजिए। क्योंकि परिवार ही वह बुनियादी इकाई है, जिसके बचे रहने से यह देश बचा रहेगा, हमारी संस्कृति बची रहेगी, हमारा धर्म बचा रहेगा, हमारे समाज में मानवता बची रहेगी।

आज जो भी मां-बाप अपने बच्चों के बीच प्रेम बनाए रखना चाहते हैं, उन सभी से मैं एक ही बात कहना चाहता हूं कि पहले आप स्वयं अपने भाइयों-बहनों से प्रेम बहाल कीजिए। यदि आप स्वयं झगड़ते रहेंगे, तो आपके बच्चे भी आपस में नहीं झगड़ेंगे, यह सम्भव ही नहीं है। आप जो बोएंगे, वही काटेगे वही फलेगा– यह सृष्टि का अकाट्य नियम है।

इसलिए परिवार में यदि कोई विवाद हो, तो मैं चाहता हूं कि उसे बातचीत से सुलझाया जाए। बातचीत का बुनियादी सिद्धांत है कि एक कदम आप पीछे हटें, एक कदम हम पीछे हटें। हम आपकी बात समझें, आप हमारी बात समझें। बातचीत में नकारात्मकता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

और सबसे बड़ी बात– बातचीत में हमेशा यह ध्यान रखें कि हम एक ही माता-पिता के बच्चे हैं, एक ही हमारा खून है, बचपन में हम एक-दूसरे के साथ खेले-खाए, हंसे-रोए हैं। चोट एक को लगती थी, तो दर्द दूसरे को होता था। फिर आज हम एक-दूसरे को चोट पहुंचाने का खयाल भी अपने मन में कैसे ला सकते हैं?

खैर, आइए फिर से मातृ दिवस और पितृ दिवस की बात पर। मेरा तो एक ही सिद्धांत है– मां-बाप ने जन्म दे दिया, और हमें क्या चाहिए उनसे? यह जीवन उन्हीं का है। उनके लिए जो भी बन पड़ेगा, करते रहेंगे।

आशा है, इन विचारों से आप लोग भी सहमत होंगे।
धन्यवाद।

आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
श्रीरामकथा, व श्रीमद्भभागवत कथा व्यास
श्रीधाम अयोध्या जी संपर्क सूत्र-9044741252

Related posts

Leave a Comment