भाग- २०
राव दूदाजी अब अस्वस्थ रहने लगे थे। अपना अंत समय समीप जानकर उनकी ममता मीरा पर अधिक बढ़ गई थी। उसके मुख से भजन सुने बिना उन्हें दिन सूना लगता। मीरा भी समय मिलते ही दूदाजी के पास जा बैठती। उनके साथ भगवत चर्चा करती। अपने और अन्य संतो के रचे हुए पद सुनाती ।
ऐसे ही उस दिन मीरा गिरधर की सेवा पूजा कर बैठी ही थी कि गंगा ने बताया कि दूदा जी ने आपको याद फरमाया है। मीरा ने जाकर देखा तो उनके पलंग के पास पाँचों पुत्र, दीवान जी, राजपुरोहित और राजवैद्य जी सब वहीं थे।
सहसा आँखें खोल कर दूदाजी ने पुकारा,” मीरा “जी मैं हाजिर हूँ बाबोसा।” मीरा उनके पास आ बोली। “मीरा भजन गाओ बेटी !”
मीरा ने ठाकुर जी की भक्त वत्सलता का एक पद गाया। पद पूरा होने पर दूदा जी ने चारभुजानाथ के दर्शन की इच्छा प्रकट की। तुरन्त पालकी मंगवाई गई। उन्हें पालकी में पौढ़ा कर चारों पुत्र कहार बने। वीरमदेव जी छत्र लेकर पिता जी के साथ चले। दो घड़ी तक दर्शन करते रहे। पुजारी जी ने चरणामृत, तुलसी माला और प्रसाद दिया। वहाँ से लौटते श्याम कुन्ज में गिरधर गोपाल के दर्शन किए और मन ही मन कहा,” अब चल रहा हूँ स्वामी ! अपनी मीरा को संभाल लेना प्रभु ।”
महल में वापिस लौट कर थोड़ी देर आँखें मूंद कर लेटे रहे। फिर अपनी तलवार वीरमदेव जी को देते हुए कहा,” प्रजा की रक्षा का और राज्य के संचालन का पूर्ण दायित्व तुम्हारे सबल स्कन्ध वाहन करे।” मीरा और जयमल को पास बुला कर आशीर्वाद देते हुए कहने लगे,” प्रभु कृपा से, तुम दोनों के शौर्य व भक्ति से मेड़तिया कुल का यश संसार में गाया जायेगा। भारत की भक्त माल में तुम दोनों का सुयश पढ़ सुनकर लोग भक्ति और शौर्य पथ पर चलने का उत्साह पाएंगे। उनकी
आँखों से मानों आशीर्वाद स्वरूप आँसू झरने लगे।
वीरमदेव जी ने दूदाजी से विनम्रता से पूछा,” आपकी कोई इच्छा हो तो आज्ञा दें।”
“बेटा ! सारा जीवन संत सेवा का सौभाग्य मिलता रहा। अब संसार छोड़ते समय बस संत दर्शन की ही लालसा है। पर यह तो प्रभु के हाथ की बात है।” वीरमदेव जी ने उसी समय पुष्कर की ओर सवार दौड़ाये संत की खोज में । मीरा आज्ञा पाकर गाने लगी
नहीं ऐसो जनम बारम्बार।
क्या जानूँ कुछ पुण्य
प्रगटे मानुसा अवतार॥
बढ़त पल पल घटत
दिन दिन जात न लागे बार।
बिरछ के ज्यों पात टूटे
लगे नहिं पुनि डार॥
भवसागर अति जोर
कहिए विषम ऊंडी धार।
राम नाम का बाँध
बेड़ा उतर परले पार॥
ज्ञान चौसर मँडी चौहटे
सुरत पासा सार।
या दुनिया में रची बाजी
जीत भावै हार॥
साधु संत मंहत ज्ञानी
चलत करत पुकार।
दास मीरा लाल गिरधर
जीवणा दिन चार॥
पद पूरा करके मीरा ने अभी तानपुरा रखा ही था कि द्वारपाल ने आकर निवेदन किया – “अन्नदाता ! दक्षिण से श्री चैतन्यदास नाम के संत पधारे है।”
उसकी बात सुनने ही दूदाजी एकदम चैतन्य हो गये ।मानो बुझते हुए दीपक की लौ भभक उठी हो। आँख खोल कर उन्होंने संत को सम्मान से पधराने का संकेत किया। सब राजपुरोहित जी के साथ उनके स्वागत के लिया बढ़े ही थे कि द्वार पर गम्भीर और मधुर स्वर सुनाई दिया राधेश्याम !
क्रमश:
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी सरस् श्रीरामकथा व श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्रीधाम श्री अयोध्या जी संपर्क सूत्र 9044741252