भाग 8
मीरा की भक्ति और भजन में बढ़ती रूचि देखकर रनिवास में चिन्ता व्याप्त होने लगी। एक दिन वीरमदेव जी (मीरा के सबसे बड़े काका ) को उनकी पत्नी श्री गिरिजा जी ने कहा,” मीरा दस वर्ष की हो गई है, इसकी सगाई – सम्बन्ध की चिन्ता नहीं करते आप ?”
वीरमदेव जी बोले,” चिन्ता तो होती है पर मीरा का व्यक्तित्व, प्रतिभा और रूचि असधारण है, फिर बाबोसा मीरा के ब्याह के बारे में कैसा सोचते है, पूछना पड़ेगा।”
“बेटी की रूचि साधारण हो याँ असधारण – पर विवाह तो करना ही पड़ेगा” बड़ी माँ ने कहा। “पर मीरा के योग्य कोई पात्र ध्यान में हो तो ही मैं अन्नदाता हुक्म से बात करूँ।”
“एक पात्र तो मेरे ध्यान में है। मेवाड़ के महाराज कुँवर और मेरे भतीजे भोजराज।”
“क्या कहती हो, हँसी तो नहीं कर रही ? अगर ऐसा हो जाये तो हमारी बेटी के भाग्य खुल जाये ।वैसे मीरा है भी उसी घर के योग्य।” प्रसन्न हो वीरमदेव जी ने कहा गिरिजा जी ने अपनी तरफ़ से पूर्ण प्रयत्न करने का आश्वासन दिया।
मीरा की सगाई की बात मेवाड़ के महाराज कुंवर से होने की चर्चा रनिवास में चलने लगी। मीरा ने भी सुना। वह पत्थर की मूर्ति की तरह स्थिर हो गई थोड़ी देर तक। वह सोचने लगी -माँ ने ही बताया था कि तेरा वर गिरधर गोपाल है-और अब माँ ही मेवाड़ के राजकुमार के नाम से इतनी प्रसन्न है, तब किससे पूछुँ?” वह धीमे कदमों से दूदाजी के महल की ओर चल पड़ी।
पलंग पर बैठे दूदाजी जप कर रहे थे। मीरा को यूँ अप्रसन्न सा देख बोले,” क्या बात है बेटा ?”
“बाबोसा ! एक बेटी के कितने बींद होते है ?”
दूदाजी ने स्नेह से मीरा के सिर पर हाथ रखा और हँस कर बोले,” क्यों पूछती हो बेटी ! वैसे एक बेटी के एक ही बींद होता है ।एक बींद के बहुत सी बीनणियाँ तो हो सकती है पर किसी भी तरह एक कन्या के एक से अधिक वर नहीं होते ।पर क्यों ऐसा पूछ रही हो ?”
“बाबोसा ! एक दिन मैंने बारात देख माँ से पूछा था कि मेरा बींद कौन है ? उन्होंने कहा कि तेरा बींद गिरधर गोपाल है। और आज आज।” उसने हिलकियों के साथ रोते हुए अपनी बात पूरी करते हुये कहा”-” आज भीतर सब मुझे मेवाड़ के राजकुवंर को ब्याहने की बात कर रहे है।”
दूदाजी ने अपनी लाडली को चुप कराते हुए कहा-” तूने भाबू से पूछा नहीं ? ”
“पूछा ! तो वह कहती है कि-” वह तो तुझे बहलाने के लिए कहा था। पीतल की मूरत भी कभी किसी का पति होती है ? अरी बड़ी माँ के पैर पूज।
यदि मेवाड़ की राजरानी बन गई तो भाग्य खुल गया समझ। आप ही बताईए बाबोसा ! मेरे गिरधर क्या केवल पीतल की मूरत है ? संत ने कहा था न कि यह विग्रह (मूर्ति) भगवान की प्रतीक है। प्रतीक वैसे ही तो नहीं बन जाता ? कोई हो, तो ही उसका प्रतीक बनाया जा सकता है। जैसे आपका चित्र कागज़ भले हो, पर उसे कोई भी देखते ही कह देगा कि यह दूदाजी राठौड़ है। आप है, तभी तो आपका चित्र बना है। यदि गिरधर नहीं है तो फिर उनका प्रतीक कैसा ?”
“भाबू कहती है-“भगवान को किसने देखा है ? कहाँ है? कैसे है ? मैं कहती हूँ बाबोसा वो कहीं भी हों, कैसे भी हो, पर हैं, तभी तो मूरत बनी है, चित्र बनते है । ये शास्त्र, ये संत सब झूठे है क्या ? इतनी बड़ी उम्र में आप क्यों राज्य का भार बड़े कुंवरसा पर छोड़कर माला फेरते है ? क्यों मन्दिर पधारते है ? क्यों सत्संग करते है ? क्यों लोग अपने प्रियजनों को छोड़ कर उनको पाने के लिए साधु हो जाते है ? बताईए न बाबोसा” मीरा ने रोते रोते कहा।
क्रमशः
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
सरस् श्री रामकथा व श्रीमद्भागवत कथा व्यास श्री धाम श्री अयोध्या जी