(28 साल पहले एक कानून के माध्यम से इस पर प्रतिबंध लगाने एवं तकनीकी प्रगति के बावजूद, मानव अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता पैदा करने वाली , मैनुअल स्कैवेंजिंग भारत में बनी हुई है। मैनुअल स्कैवेंजिंग का तात्पर्य किसी भी तरीके से मैन्युअल रूप से सफाई करने, शुष्क शौचालयों और सीवरों से मानव उत्सर्जन ले जाने, निपटाने या संभालने के अभ्यास से है। अब जबकि पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान के जरिए साफ-सफाई पर जोर-शोर से चर्चा हो रही है तो यह जरूरी है कि इस अमानवीय पेशे के उन्मूलन के लिए गंभीर प्रयास किए जाएं।)
अधिकांश सेप्टिक टैंक मैन्युअल रूप से भारतीय शहरों में खाली किए जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत के 80% सीवेज क्लीनर विभिन्न संक्रामक रोगों के कारण 60 की उम्र से पहले मर जाते हैं। ये दुर्घटनाएँ शहरी इलाकों में अधिक हैं और क्योंकि देश के 8000 शहरी क्षेत्र हैं और 6 लाख गाँव के बड़े हिस्से में सीवेज प्लांट नहीं हैं। मैनुअल स्केवेंजिंग मुख्य रूप से जाति व्यवस्था से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। इस सबसे बड़े अमानवीय पेशे को खत्म करने के लिए समाज द्वारा समर्थन का अभाव भी इसके बने रहने के पीछे एक कारण है। वैसे भी शिक्षा और मानवता का अभाव आज भारत के कई हिस्सों में गायब है। इनके बारे में एक सटीक सर्वे भी नहीं हो पा रहा है क्योंकि डेटा स्व-रोजगार लेने के लिए मैनुअल मैला ढोने वालों की जानकारी सामाजिक अभिशाप होने की वजह से सामने नहीं आ पाती। इसके लिए एक सरकारी पहल की सख्त जरूरत है. 1993 में संसद द्वारा ड्राई स्केवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिंस (निषेध) अधिनियम को पारित किया गया था,जिसके तहत एक व्यक्ति को मैनुअल स्कैवेंजिंग करने के लिए एक वर्ष तक का कारावास और 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था। मैनुअल स्कैवेंजर्स (एसआरएमएस) के पुनर्वास के लिए स्व रोजगार योजना, समयबद्ध तरीके से एक उत्तराधिकारी योजना (स्केवेंजर्स और उनके आश्रितों की मुक्ति और पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय योजना), 2007 में वैकल्पिक स्कैवेंजरों और उनके आश्रितों को वैकल्पिक व्यवसायों में पुनर्वासित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
स्वच्छ भारत अभियान जैसे ऑपरेशन में अच्छी तरह से इस पहलू पर थोड़ा ध्यान देना आवश्यक है.
मैनहोल में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के लिए तकनीकी उन्नति का सहारा लिया जाये. ऐसे कार्यों में लगे लगे लोगों के कलंक और भेदभाव से इतर आजीविका को सुरक्षित करने के लिए पूर्व या मुक्त मैनुअल मैला ढोने वालों के लिए तरीका ढूँढा जाये. इनके पुनर्वास के लिए बजट समर्थन और उच्च आवंटन का प्रभावी उपयोगएवं प्रबंध किया जाये। मैनहोल में आखिर इनको क्यों उतरना पड़ता है इस स्थिति के लिए जिम्मेदार लोगों को पकड़ा जाये और उन पर जुर्माना लगाया जाये। आखिर क्यों सेप्टिक टैंक बुरी तरह से डिजाइन किए जाते हैं। उनके इंजीनियरिंग दोष को ढूंढकर पकड़ा जाये कि आखिर क्यों एक मशीन इसे साफ नहीं कर सकती है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्रामीण भारत में लाखों सेप्टिक टैंक बनाए जा रहे हैं। इनको आधुनिक तकनीक पर बनाया जाये ताकि भविष्य में मानव हस्तक्षेप की कम जरूरत पड़े.
कई शहरों में सीवरेज नहीं है जो पूरे शहर को कवर करता है। कभी-कभी, सीवेज लाइनें तूफान के पानी की नालियों से जुड़ी होती हैं जो कि घिस जाती हैं और मानव हस्तक्षेप की मांग करती हैं। खुली नालियाँ भी बुरी तरह से डिज़ाइन की गई हैं, जिससे लोगों को ठोस कचरा डंप करने की अनुमति मिलती है, जो समस्या को बढ़ाता है।
सैनिटरी नैपकिन, डायपर आदि का अनुचित निपटान नालियों को रोक देता है, जो मशीनें साफ नहीं कर सकती हैं। इन सबका एक अलग समाधान खोजने की जरूरत है. हमें मैला प्रथा के मूल कारणों पर प्रहार करने की आवश्यकता है – जातिगत पूर्वाग्रह को खत्म करने की भी जरूरत है क्योंकि राजा राम मोहन राय ने कहा कि परिवर्तन समाज से ही होना चाहिए। इसलिए अब स्मार्ट शहरों को नियमावली को ध्यान में रखते हुए योजना बनाई जानी चाहिए। महिलाओं को कौशल विकास और आजीविका प्रशिक्षण प्रदान करके भेदभाव मुक्त, सुरक्षित और वैकल्पिक आजीविका सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए। सामुदायिक जागरूकता और स्थानीय प्रशासन की संवेदनशीलता के माध्यम से एक अनुकूल वातावरण बनाएं जाने की भी जरूरत है। इसको रोकने के लिए पुनर्वास प्रयासों और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए समुदाय की क्षमता का निर्माण करना और दलित महिलाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ समुदाय में नेतृत्व का निर्माण करना भी अत्यंत आवश्यक है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के मुताबिक केवल 16 राज्यों ने ही सिर पर मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध के कानून को अपनाया है और किसी ने भी इसे पूरी तरह लागू नहीं किया है। श्रम मंत्रालय के ‘कर्मचारी क्षतिपूर्ति कानून’ को भी सिर्फ 6 राज्यों ने लागू किया है। इसलिए अब आगे ऐसा न करके एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो आय सृजन का विस्तार करने या ऋण प्रदान करने से आगे बढे जिससे मुक्त मैनुअल मैला ढोने वालों की अगली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। स्वच्छता के अभाव में पुरानी सुविधाओं को ध्वस्त और पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। मैनुअल सफाई में लगे लोगों में आत्मविश्वास का स्तर बढ़ाना महत्वपूर्ण है। इस अमानवीय प्रथा को मिटाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति अहम भूमिका अदा कर सकती है।