रविवारीय- कोलकाता कांड के अनसुलझे सवाल

निर्भया कांड के बाद पूरे देश में एक अजीब सा आक्रोश दिखा था। उससे पहले भी सन् 78 में एक घटना हुई थी जिसमें नौसेना के एक अधिकारी के बेटे की हत्या कर दी गई थी और उनके बेटी को बलात्कार करने के पश्चात मार दिया गया था। उस वक्त पुरा देश इस घटना से मर्माहत और आक्रोशित था। इस घटना में रंगा और बिल्ला नाम के अपराधियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। निर्भया मामले में पूरे देश में एक आवाज उठी थी कि इस जघन्यतम मामले में दोषियों को बख़्शा नहीं जाए और उन्हें ऐसी सजा दी जाए जो नज़ीर बने, पर अफ़सोस क्या ऐसा हो पाया?

मनीश वर्मा,लेखक और विचारक

नहीं ना! उसके बाद भी बलात्कार की घटनाएं होती रहीं। कुछ घटनाएं लोगों के संज्ञान में आयीं कुछ नहीं आयीं। परिणामस्वरूप क्या होता है, बहुत से मामलों में लोक लाज और बदनामी के भय से पीड़ितों के आत्महत्या की खबरें भी आती हैं।
आज़ कोलकात्ता में जो घटना हुई है क्या आप कह सकते हैं कि ऐसी घटना दोबारा नहीं होगी। नहीं कह सकते हैं। हम सिर्फ और सिर्फ कहने के लिए बराबरी की बातें करते हैं। वास्तविकता कुछ और ही है। हमने उन्हें कमजोर समझ रखा है। जब चाहा उनके साथ जबरदस्ती कर ली। आज़ भले ही पुरे देश में कोलकात्ता कांड के खिलाफ एक जन आक्रोष है। घटना घटित होने के दो चार दिनों के भीतर ही इस कांड में शामिल अपराधियों की खोज और उन्हें उचित सजा दिलाने की ज़िम्मेदारी सी बी आई को दे दी गई है। इस घटना के बाद भी इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। उत्तर बिहार एक जिले में एक घटना घटती है जहां एक लड़की को अपराधियों ने उसके घर से उसके मां बाप के सामने से घसीट कर ले जाते हैं और बलात्कार करने के पश्चात क्रूरता पूर्ण तरीके से उसकी हत्या कर दी जाती है। बलात्कार करने के बाद हत्या कर देने के मामले बढ गए हैं। शायद यह ट्रेंड निर्भया मामले के बाद कड़े क़ानून बनाने के पश्चात हुआ है। जब सबूत ही नहीं रहेगा तो अधिकांश मामलों में तो लोग बच ही जाएंगे।
जाति, धर्म और समाज से परे देश व्यापी आंदोलन चल रहा है। आशा करते हैं कि इससे समाज में जागरूकता बढेगी। परंतु उम्मीद कम है।

कोलकात्ता का ही मामला लें। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट जो सोशल मीडिया पर आ रही हैं उसे देखकर और सुनकर क्या आपको ऐसा लगता है कि इस घटना को अंज़ाम किसी एक व्यक्ति ने दिया है। पकड़े गए व्यक्ति ने शुरुआत में कहा कि मैं दोषी हूं, मैंने ग़लत किया है बलां बलां मुझे फांसी पर चढ़ा दो। अब जो बातें आ रही हैं – मुझे फंसाया गया है । ऐसा वो कह रहा है। आखिर किसे बचाने की कोशिश हो रही है। क्या कोई व्यक्ति संस्था से बड़ा हो सकता है । आखिर क्यों लोगों की भीड़ अस्पताल में हमला कर तोड़ फोड़ मचा रही है। बहुत सारे सवाल हैं जिनका जवाब दिया जाना है। आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में स्वत: संज्ञान लेना पड़ा। क्यों बड़े बड़े वकीलों की फौज सरकार की तरफ से लगाई गई। एक महिला को बलात्कार के बाद क्रूरता पूर्ण तरीके से हत्या कर दी जाती है । मामला सिर्फ शायद यह नहीं है। कुछ और भी बातें हैं । इस रहस्य से भी पर्दा उठना है। हमारे लिए तो अस्पताल एक मंदिर है और उस मंदिर में इस तरह की घटना घट जाए । भरोसे पर चोट है।
ख़ैर! अपने आप को उस घटना से थोड़ा जोड़ कर देखें तब शायद आप पीड़िता के दर्द और उसके परिवार की व्यथा को समझ पाएंगे। घर मुहल्ले और समाज में हम थोड़ा सा अपमानित होते हैं तो घर से बाहर निकलना बंद कर देते हैं। जरा सोचिए, क्या असर पड़ता होगा पीड़ित और उसके परिवार पर।
ख़ैर! घटना तो घट चुकी है। अब हम सभी का यह प्रयास होना चाहिए कि इस तरह की घटनाएं समाज में घटित ना हों। समाज के लोग सामने आएं और सभी बातों से परे जन आंदोलन बनाए इसे। सरकार भी सभी लोगों के साथ मिल बैठकर एक ऐसा कानून बनाए ताकि लोगों में कानून का डर व्याप्त हो। अहम और निर्णायक पदों पर वैसे लोगों की पदस्थापना की जाए जो कम से कम संवेदनशील हों।

मनीष वर्मा “मनु”

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