चलिए आज चले चलते हैं दिल्ली के कण कण में बसे ऐतिहासिक जगहों में एक महरौली की ओर।

अतुल्य भारत

चलिए आज चले चलते हैं दिल्ली के कण कण में बसे ऐतिहासिक जगहों में एक महरौली की ओर।

दिल्ली सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय मानसून उत्सव का कल समापन हो गया जो महरौली के आम बाग , जहाज महल और झरना में आयोजित हुआ था।
इस उत्सव का मकसद था महरौली के छुपे ऐतिहासिक विरासतों से सबको रूबरू कराना।

हम आपको महरौली के हर विरासत के बारे में विस्तार से बताएंगे पर आज सुनिए इससे जुड़े कुछ दिलचस्प बातें।
महरौली का इतिहास लगभग हजार साल पुराना है।

कहा जाता है कि वास्तव में यहाँ मानसून मेला अकबर शाह सानी के शासन काल में ही शुरू हो गया था और बहादुर शाह तक चला था। यह उत्सव एक महीने का होता था।उत्सव में कई तरह की प्रतियोगिताएं होती थी जिसमें रानी और राजकुमारी सब भी भाग लिया करती थी। जैसे आम चुनने की प्रतियोगिता। इन आमों का बाद में अँचार बनाती थी।

इसकी नकल बाद में अंग्रेजों ने भी किया।

आप शाहजहाँ को अवश्य जानते होंगे। उसके समय में यहाँ भव्य मेले का आयोजन होता था जिसमें दूर दूर से लोग परिवार संग बैलगाड़ी से आया करते थे साथ में तम्बू लेकर।क्योंकि मेला स्थल पर ही दो चार दिन रुक भी जाते थे।अच्छी खासी खरीदारी होती थी जो लगभग साल भर के लिए होता था।

उस वक्त का मेला स्थल ये आम बाग आज का छतरपुर मेट्रो स्टेशन था। आम का बगान बहादुर शाह के दादाजी का लगवाया हुआ था। दो गाँव हुआ करते थे।अंधेरिया और अमराईयाँ।
अंधेरिया का अस्तित्व तो आज भी है पर अमराईयाँ समय के गर्भ में समा चुका है।

कैसी लगी आपलोगों को ये कहानी महरौली की !
कॉमेंट द्वारा आप हमें अवश्य बतायें।

मेरे अगले लेख में आपको जहाज महल के इतिहास के बारे में रु ब रु होने का मौका मिलेगा।

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